सोमवार, 13 जनवरी 2014

सलाह,प्रमाण,सच्चाई

श्रध्देय श्री स्वामीजी महाराजका नाम हिन्दीमें लिखा जाय और 'श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके सत्संग-प्रवचनसे' या अमुक 'पुस्तक'से -अगर ऐसा लिखा जाय : तो आपका प्रयास सार्थक हो सकता है|इसमें सच्चाई भी है जो कि अत्यन्त आवश्यक है | महापुरुषोंकी तरफसे जो कुछ लिखा जाय,उसमें अत्यन्त सावधानी और सच्चाईकी जरुरत है | यह सलाह लिखना अभी अपना कर्तव्य लगा,इसलिये लिख दिया.
प्रणाम.सीताराम सीताराम.

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पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
http://dungrdasram.blogspot.com/

रविवार, 12 जनवरी 2014

गीताके अनुसार जीवन बनानेसे वास्तविक-लाभ- सेठजी श्री जयदयालजी गोयन्दका(- गीताप्रेसके संस्थापक,संरक्षक आदि सब कुछ)की 'व्यवहार सुधार और परमार्थ' नामक पुस्तकसे |

एक भाई कब्जसे बिमार था|वैद्यजीके पास गया,वैद्यजी पुस्तकमें वही प्रकरण देख रहे थे|हर्रेके सेवनसे पेटकी बिमारी दूर होती है|उसको देखकर बोले कि यह श्लोक तेरे लिये ठीक है,इस श्लोकके अनुसार साधन करो,तुम्हारी बिमारी मिट जायेगी|
कुछ दिन(के) बाद आकर वह बोला -महाराजजी! मेरी बिमारी नहीं मिटी,मैंने इसका बहुत सेवन किया|वैद्यजी बोले-कैसे सेवन किया? (उसने) कहा-रोज (उस श्लोकका)पाठ करता हूँ|वैद्यजी बोले-इसका अर्थ यह है,यह करो|
कुछ दिन(के) बाद (वह)फिर आया (और) बोला-अर्थसहित पाठ किया,(परन्तु) बिमारी नहीं मिटी|वैद्यजी बोले-इसका सेवन करो|सेवन करनेसे बिमारी मिट गयी|
यही बात गीता-पाठमें है|कोई मूल पाठ करता है,कोई अर्थसहित पाठ करता है,कोई सेवन करता है|सेवन करनेवाला ही उत्तम है|केवल पाठ करना भी उत्तम ,किन्तु गीताके अनुसार जीवन -आचरण बनाना सबसे  उत्तम है|
(गीताप्रेसके संस्थापक,संरक्षक,श्रध्देय सेठजी श्री जयदयालजी गोयन्दकाकी 'व्यवहार सुधार और परमार्थ' पुस्तकसे)|

शुक्रवार, 3 जनवरी 2014

पाप-कर्म सबसे पहले छोड़ना आवश्यक- श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके विशेष प्रवचनसे |

पाप-कर्म सबसे पहले छोड़ना आवश्यक
मुक्तिका क्रम-
1.निषिध्द(पाप)का त्याग 2.न्याय(अच्छा व्यवहार,आपसमॅ प्रेम हों आदि) 3.धर्म(शास्त्रविहित दान,पुण्य आदि)और 4.पारमार्थिक-बातें(जिससे जीवकी मुक्ति हो जाय)।[इसलिये सबसे पहले पाप-कर्म तो छोङने ही चाहिये नहीं तो मुक्तिकी तरफ चलना शुरु ही नहीं हुआ]-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके ("36- Nishidh Karmo ka tyag" नामक)  विशेष प्रवचनसे |

भगवानकी विचित्र कृपा- (भगवान् कहते हैं-) कि जो मेरा भजन करता है,उसका मैं सर्वनाश कर देता हूँ,पर फिर भी वह मेरा भजन नहीं छोड़ता तो मैं उसका दासानुदास (दासका भी दास) हो जाता हूँ- जे करे अमार आश,तार करि सर्वनाश| तबू जे ना छाड़े आश,तारे करि दासानुदास|| -श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी 'अनन्तकी ओर'पुस्त्कसे |

भगवानकी विचित्र कृपा-

(भगवान् कहते हैं-) कि जो मेरा भजन करता है,उसका मैं सर्वनाश कर देता हूँ,पर फिर भी वह मेरा भजन नहीं छोड़ता तो मैं उसका दासानुदास (दासका भी दास) हो जाता हूँ-
जे करे अमार आश,तार करि सर्वनाश|
तबू जे ना छाड़े आश,तारे करि दासानुदास||
-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी 'अनन्तकी ओर'पुस्त्कसे |

अपमानसे उन्नति- 'जब मनुष्य गुरुजनोंके कठोर शब्दोंसे युक्त वाणी द्वारा अपमानित,तिरस्कृत किये जाते हैं,तभी वे महत्त्वको प्राप्त होते हैं,अन्यथा नहीं|जैसे,मणि भी जबतक शाणपर घिसकर उज्जवल नहीं की जाती,तबतक वह राजाओंके मुकुटमें नहीं जड़ी जाती|, श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके प्रवचनसे |

अपमानसे उन्नति-

गीर्भिगुुरूुणां परुषाक्षराभिस्तिरस्कृता यान्ति नरा महत्त्वम्|
अलब्धशाणोत्कषणान्नृपाणां न जातु मौलौ मणयो वसन्ति||
(रस गंगाधर)
'जब मनुष्य गुरुजनोंके कठोर शब्दोंसे युक्त वाणी द्वारा अपमानित,तिरस्कृत किये जाते हैं,तभी वे महत्त्वको प्राप्त होते हैं,अन्यथा नहीं|जैसे,मणि भी जबतक शाणपर घिसकर उज्जवल नहीं की जाती,तबतक वह राजाओंके मुकुटमें नहीं जड़ी जाती|,
श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके प्रवचनसे |

अनुभवका उपाय-व्याकुलता- -परम श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके सत्संग-प्रवचन(१९९५०५२९/८.३०बजे) से

अनुभवका उपाय-व्याकुलता- -परम श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके सत्संग-प्रवचन(१९९५०५२९/८.३०बजे) से

दि.२९/५/१९९५;८.३०बजे का सत्संग
अनुभव(कि मैं शरीर नहीं हूँ) न हो जाय, तब तक मैं दूसरा काम (खाना,पीना सोना आदि)नहीं करूंगा

([तो]चट हो जायेगा)|

खाना,पीना नींद छोड़नेसे कुछ नहीं होगा; आप समझे कि नहीं?

- परम श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके सत्संग-प्रवचन(29-5-1995-१९९५०५२९/८.३०बजे) से

एक श्वासमें सत्तर करोड़ नाम-जप कैसे हो जाता है ?

||राम||
एक बार श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजसे किसीने (एक सफेद दाढीवाले बुजुर्गने) पूछा कि एक ही श्वासमें सत्तर(७०) करोड़ नाम-जप कैसे हो जाता है? ...कबीर एकही स्वासमें सिंवरण सित्तर किरोड़ ||
वो कौनसी विधि है?
इसका उत्तर किसी कारण वश बाकी रह गया था,वो उनकी वाणी सुनते हुए आज समझमें आया-

(प्रश्न-)   एक ही श्वासमें सत्तर करोड़ भगवन्नाम कैसे लिये जाते हैं?
(उत्तर-)  इसका रहस्य आपको श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी (दिनांक-२७-५-१९९५,१६००बजेकी) सत्संग-वाणीमें मिलेगा कि एक ही लगनसे जब रात-दिन नाम-जप किया जाता है,तो रोम-रोमसे नामका उच्चारण होने लगता है| शरीरमें साढे तीन करोड़ रोमावली(बाल) हैं,साढे तीन करोड़ रोमावलीमें एक साथ राम नामका उच्चारण होता है, कितना नाम(संख्या) होगा उनका?
(एक श्वासमें अगर बीस रामनाम लेता है तो एक श्वासमें सत्तर करोड़ हो गये)
|| सीताराम सीताराम ||