एक भाई कब्जसे बिमार था|वैद्यजीके पास गया,वैद्यजी पुस्तकमें वही प्रकरण देख रहे थे|हर्रेके सेवनसे पेटकी बिमारी दूर होती है|उसको देखकर बोले कि यह श्लोक तेरे लिये ठीक है,इस श्लोकके अनुसार साधन करो,तुम्हारी बिमारी मिट जायेगी|
कुछ दिन(के) बाद आकर वह बोला -महाराजजी! मेरी बिमारी नहीं मिटी,मैंने इसका बहुत सेवन किया|वैद्यजी बोले-कैसे सेवन किया? (उसने) कहा-रोज (उस श्लोकका)पाठ करता हूँ|वैद्यजी बोले-इसका अर्थ यह है,यह करो|
कुछ दिन(के) बाद (वह)फिर आया (और) बोला-अर्थसहित पाठ किया,(परन्तु) बिमारी नहीं मिटी|वैद्यजी बोले-इसका सेवन करो|सेवन करनेसे बिमारी मिट गयी|
यही बात गीता-पाठमें है|कोई मूल पाठ करता है,कोई अर्थसहित पाठ करता है,कोई सेवन करता है|सेवन करनेवाला ही उत्तम है|केवल पाठ करना भी उत्तम ,किन्तु गीताके अनुसार जीवन -आचरण बनाना सबसे उत्तम है|
(गीताप्रेसके संस्थापक,संरक्षक,श्रध्देय सेठजी श्री जयदयालजी गोयन्दकाकी 'व्यवहार सुधार और परमार्थ' पुस्तकसे)|
इस जगतमें अगर संत-महात्मा नहीं होते, तो मैं समझता हूँ कि बिलकुल अन्धेरा रहता अन्धेरा(अज्ञान)। श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजीमहाराज की वाणी (06- "Bhakt aur Bhagwan-1" नामक प्रवचन) से...
रविवार, 12 जनवरी 2014
गीताके अनुसार जीवन बनानेसे वास्तविक-लाभ- सेठजी श्री जयदयालजी गोयन्दका(- गीताप्रेसके संस्थापक,संरक्षक आदि सब कुछ)की 'व्यवहार सुधार और परमार्थ' नामक पुस्तकसे |
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