||श्री हरिः||
÷सूक्ति-प्रकाश÷
(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई कहावतें आदि) सूक्ति-संख्या ११-२० तक.
सूक्ति-११.
बोरड़ीरे चौर बँधियो देखि पिणियारी रोई|
थारे सगो लागे सोई?
म्हारे सगो लागे नीं सोई,
इणरे बापरो बहनोई म्हारे लागतो नणदोई.
(यह चौर उसका बेटा था ).
सूक्ति-१२.
रामजी घणदेवाळ है .
शब्दार्थ- घणदेवाळ(ज्यादा देनेवाले,सुख देते हैं तो एक साथ ही खूब दे देते हैं और दुख देते हैं तो भी एक साथ ज्यादा दे देते हैं.).
सूक्ति-१३.
गई तिथ बाह्मणही कोनि बाँचे.
शब्दार्थ-
तिथ(तिथि,दिन,).
सूक्ति-१४.
साँचे गुरुके लागूँ पाँय,झूठे गुरुकी मूँडूँ माय|| शब्दार्थ- मूँडूँ माय(माँ को मूँडूँ,शिष्या बनाऊँ).
सूक्ति-१५.
रैगो चाले रग्ग मग्ग,तीन माथा दस पग्ग.
(खेतमें बैलोंके द्वारा हल चलाता किसान).
शब्दार्थ-
रैगो( ?). तीन माथा(तीन सिर,एक सिर तो किसानका और दौ बैलोंके-३ ). दस पग्ग(दस पैर,दौ पैर तो किसानके और आठ पैर दौनों बैलोंके-१०).
सूक्ति-१६.
गहलो गूंगो बावळो,तो भी चाकर रावळो.
शब्दार्थ- रावळो(आपका,मालिकका,राजमहलका).
सूक्ति-१७.
बाँदी तो बादशाहकी औरनकी सरदार.
शब्दार्थ- बाँदी(दासी).
सूक्ति-१८.
बाई! बिखमी बार जेज ऊपर कीजै नहीं|
शरणाई साधार कुण जग कहसी करनला!||
शब्दार्थ- बिखमी बार(संकटकी घड़ी).
सूक्ति- १९.
धोरे ऊपर बेलड़ी ऊगी थूळमथूळ|
पहले लागी काकड़ी पाछे लागो फूल||
(शायद लाँकीमूळा,जो धोरा-पठार पर फोग आदिकी जड़से पैदा होकर डण्डेकी तरह रेतके ऊपर निकलता है,उसके सब ओर पत्तियाँसी लगी रहती है,वो बादमें विकसित होती है,जिससे वो पुष्पकी तरह दीखता है).
सूक्ति-२०.
तन्त्री तार सुझाँझ पुनि जानु नगारा चार|
पञ्चम फूँकेते बजे शब्द सु पाँच प्रकार||
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