शनिवार, 18 जनवरी 2014

÷सूक्ति-प्रकाश÷(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई कहावतें आदि). सूक्ति-संख्या ४१-५० तक.

                                          ||श्री हरिः||

                                        ÷सूक्ति-प्रकाश÷

(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई कहावतें आदि). सूक्ति-संख्या ४१-५० तक.

सूक्ति-४१.
पीर तीर चकरी पथर और फकीर अमीर |
जोय-जोय राखो पुरुष ये गुण देखि सरीर ||
भावार्थ-
काम करनेवाले (नौकर अथवा सेवक) छः प्रकारके होते हैं -
१)पीर -इसे कोई काम कहें तो यह उस बातको काट देता है, २)तीर -इसे कोई काम कहें तो तीरकी तरह भाग जाता है,फिर लौटकर नहीं आता,३)चकरी-यहचक्रकी तरह चट काम करता है,फिर लौटकर आता है,फिर काम करता है|यह उत्तम नौकर होताहै,४)पथर-यह पत्थरकी तरह पड़ा रहता है,कोई काम नहीं करता,५)फकीर-यह मनमें आये तो काम करता है अथवा नहीं करता,६)अमीर-इसे कोई काम कहें तो खुद न करके दूसरेको कह देता है|
(इसलिये मनुष्यको सेवकमें ये गुण देखकर रखना चाहिये)|
श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी पुस्तक 'अनन्तकी ओर'से (इसका यह अर्थ लिखा गया).

सूक्ति-४२.
बहुत पसारा मत करो कर थोड़ेकी आस |
बहुत पसारा जिन किया तेई गये निरास ||
शब्दार्थ- पसारा(विस्तार).

सूक्ति-४३.
साधू होय संग्रह करै दूजै दिनको नीर |
तिरै न तारै औरको यूँ कहै दास कबीर ||

सूक्ति-४४.
जोरि-जोरि धन कृपनजन मान रहै मन मोद |
मधुमाखी ज्यूँ मूढ मन गिरत कालकी गोद ||
शब्दार्थ- कृपनजन(कंजूस व्यक्ति).मोद (हर्ष).

सूक्ति-४५.
कबिरा नौबत आपनी दिन दस लेहु बजाय |
यह पुर पट्टन यह गली बहुरि न देखौ आय ||
शब्दार्थ- पट्टन( .नगर).

सूक्ति-४६.
सब जग डरपै मरणसे मेरे मरण आनन्द |
कब मरियै कब भेटियै पूरण परमानन्द ||
शब्दार्थ- कब मरियै (कब मरें !). भेटियै (मिलें,प्राप्त करें ).

सूक्ति-४७.
जहाँमें जब तू आया सभी हँसते तू रोता था |
बसल कर जिन्दगी ऐसी सभी रोवै तू हँसता जा ||
शब्दार्थ- जहाँमें (जगतमें).

सूक्ति-४८.
बैठोड़ैरे ऊभोड़ो पावणों

सूक्ति-४९.
कपटी मित्र न कीजिये पेट पैठि बुधि लेत |
आगै राह दिखायकै पीछै धक्का देत ||
शब्दार्थ- पैठि (प्रवेश करके).

सूक्ति-५०.
तब लगि सबही मित्र है जब लगि पड़्यो न काम |
हेम अगिनि सुध्द होत है पीतल होत है स्याम ||
शब्दार्थ- हेम (सोना).स्याम (काला).

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