शनिवार, 14 जून 2014

मेरा कोई स्थान,मठ अथवा आश्रम नहीं है। मेरी कोई गद्दी नहीं है और न ही मैंने किसीको अपना शिष्य , प्रचारक अथवा उत्तराधिकारी बनाया है । … (श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)।

कृपया ध्यान दें।

श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजका न कोई स्थान था, न कोई जमीन थी, न कोई आश्रम था और न ही कोई गद्दी थी तथा न कोई उत्तराधिकारी था।

उनकी लिखायी हुई पुस्तक ('एक संतकी वसीयत' प्रकाशक- गीताप्रेस गोरखपुर वाली) पृष्ठ संख्या 12 में लिखा है -

मैंने किसीभी व्यक्ति , संस्था, आश्रम आदिसे व्यक्तिगत सम्बन्ध नहीं जोड़ा है ।…

मेरा सदासे यह विचार रहा है कि लोग मुझमें अथवा किसी व्यक्तिविशेषमें न लग कर भगवानमें ही लगें । व्यक्तिपूजाका मैं कड़ा निषेध करता हूँ ।

मेरा कोई स्थान,मठ अथवा आश्रम नहीं है। मेरी कोई गद्दी नहीं है और न ही मैंने किसीको अपना शिष्य , प्रचारक अथवा उत्तराधिकारी बनाया है ।

... करता है, वह बड़ा पाप करता है । उसका पाप क्षमा करने योग्य नहीं है ।

(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)।

पूरी पुस्तक यहाँ(इस पते)से नि:शुल्क प्राप्त करें- http://db.tt/v4XtLpAr

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मंगलवार, 3 जून 2014

सत्यको स्वीकार करो , (आप) दुखी हो ही नहीं सकते | (-श्रध्देय स्वीमीजी श्री रामसुखदासजी महाराज के २९/०९/१९९३/८००) बजेके सत्संग-प्रवचनसे )|

                           ।।श्रीहरि।।

सत्यको स्वीकार करो , (आप) दुखी हो ही नहीं सकते |

(-श्रध्देय स्वीमीजी श्री रामसुखदासजी महाराज
के २९/०९/१९९३/८००) बजेके सत्संग-प्रवचनसे )|

('सत्य' यह बताया कि बचपनमें जो शरीर था वैसा आज नहीं है और आज जैसा है वैसा आगे नहीं रहेगाऐसे ही कितनी चीजें बदल गई,चली गई।इसलिये जानेवालेको रखनेकी इच्छा न करें। भगवानको याद रखो,बदलनेवालेकी सेवा करो और चाहो मत)।

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राधाकृष्ण रटो मन मेरे .

राधे राधे

मंगलवार, 27 मई 2014

सत्संग-यात्रासे लोगोंको आश्चर्य (-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके सत्संग-प्रवचनसे) ।

एक बार श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज सत्संग-प्रोग्रामके लिये आसाम गये।ब्रह्मपुत्रनदको पार किया। उस समय किसीने पूछा कि आप लोग कहाँ जा रहे हैं?
उत्तर मिला कि सत्संगके लिये जा रहे हैं ।
सुनकर लोगोंको बड़ा आश्चर्य हुआ कि सत्संगके लिये भी यात्रा की जाती है?
अर्थात् सत्संगके लिये इतने प्रयासकी क्या जरुरत है जो इतनी दूरसे चलाकर आयें। (-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके सत्संग-प्रवचनसे) ।

(उनको यह पता ही नहीं है कि सत्संगभी एक लाभ होता है जिसकी बराबरी दूसरा कोई भी लाभ नहीं कर सकता-)

गिरजा संत समागम सम न लाभ कछु आन ।
बिनु हिर कृपा न होइ सो गावहिं बेद पुरान ॥
रामचरितमा.उ.१२५(ख)॥

सत्संग-यात्रासे लोगोंको आश्चर्य।(-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके सत्संग-प्रवचनसे)।

                        ।।श्रीहरि:।।

सत्संग-यात्रासे लोगोंको आश्चर्य।

(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके सत्संग-प्रवचनसे)।

एक बार श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज सत्संग-प्रोग्रामके लिये आसाम गये।जहाजसे ब्रह्मपुत्रनदको पार करनेवाले थे,इस किनारे बैठे थे। उस समय एक सज्जनने पूछा कि आप लोग कहाँ जा रहे हैं?
उत्तर मिला कि सत्संगके लिये जा रहे हैं ।कह,सत्संगके लिये?
सुनकर उनको बड़ा आश्चर्य आया कि सत्संगके लिये भी मुसाफिरी होती है!(यात्रा की जाती है?)
व्यापारके लिये होती है,काम-धन्धेके लिये होती है,छौरा-छौरीके सम्बन्धके लिये मुसाफिरी होती है।सत्संगके लिये भी क्या कोई मुसाफिरी होती है?कह,होती है।
(-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज(दिनांक 19950601/830 बजे)के सत्संग-प्रवचनसे) ।

(उनको यह पता ही नहीं है कि सत्संगभी एक लाभ होता है जिसकी बराबरी दूसरा कोई भी लाभ नहीं कर सकता-)

गिरजा संत समागम सम न लाभ कछु आन ।
बिनु हिर कृपा न होइ सो गावहिं बेद पुरान ॥
रामचरितमा.उ.१२५(ख)॥

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पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
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