शुक्रवार, 16 जनवरी 2015

प्रवचनोंकी तारीखें लिखनेका क्रम समझलें।(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके 'प्रवचन-समूह'के दिनांक समझलें)।

                     ।।श्रीहरि:।।

प्रवचनोंकी तारीखें लिखनेका क्रम समझलें।

(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके 'प्रवचन-समूह'के दिनांक समझलें)।

[4:36 PM 16-1-2015]

… जी महाराज! क्या पूछ रहे हैं,समझमें नहीं आया।तारीखें तो ऊपर लिखी ही है।
सीताराम सीताराम

[6:01 PM 16-1-2015]
…जीसंत:

Tarikh saf saf Nhi lag rhi thi pahile date ho gir mahina fir Sal to Jyada conga hoga. (16/1/2015) Fir jaisa aapko uchit lge.  Narayan Narayan

[6:04 PM 16-1-2015]

  श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके सोलह वर्षोंवाले 'प्रवचन-समूह'में  पहले वर्षकी संख्या लिखी गई है,फिर महीना और बादमें तारीख तथा उसके बाद समय लिखा गया है(उसके बाद प्रवचनका विषय लिखा गया है)।

हजारों प्रवचन होनेके कारण यही क्रम ठीक बैठा और स्वीकार किया गया।

जिन्होने उन प्रवचनोंकी सूची देखी है और उनमें कुछ खोज आदिका काम किया है,वो जानते हैं।जो जानना चाहते हैं,वो भी जान सकते हैं।

जिन खोजा तिन पाइया गहरे पानी पैठि।
मैं बपुरा डूबन डरा रहा किनारै बैठि।।

सीताराम सीताराम

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पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
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रविवार, 11 जनवरी 2015

क्या क्रियाके द्वारा भगवत्प्राप्ति नहीं होती?-(श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)।

                     ।।श्रीहरि:।।

क्या क्रियाके द्वारा भगवत्प्राप्ति नहीं होती?

(-श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)। 

(कई जने श्री स्वामीजी महाराज का सत्संग ध्यानसे नहीं सुनते हैं  और ठीकसे विचार भी नहीं करते हैं।

इसलिये अधूरी बात पकड़ कर कहने लग जाते हैं कि श्री स्वामीजी महाराज तो पाठ,पूजा,जप,ध्यान,दान,पुण्य आदिके लिये मना करते है। वे कहते हैं कि  क्रियाओंसे भगवत्प्राप्ति नहीं होती।

क्रिया तो जड़ है, जड़-शरीरकी सहायतासे होती है और भगवान चेतन है। जड़के द्वारा चेतनकी प्राप्ति कैसे हो सकती है। जड़ कर्मोंके  द्वारा चेतन परमात्माकी प्राप्ति नहीं हो सकती,आदि आदि।। 

तो क्या क्रियाके द्वारा भगवत्प्राप्ति नहीं होती? क्या कर्मोंसे भगवान नहीं मिलते?

इस बातको समझनेनेके लिये श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजका यह (दिनांक 19940512/1630 बजेका) प्रवचन सुनें-)

(किसी के द्वारा एसा प्रश्न पूछे जाने पर श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज बोले-)

स्वामीजी-

नहीं,मैं येह नहीं कहता हूँ।जप,ध्यान,कीर्तन,सत्संग,स्वाध्याय- (ये) भगवानको लेकर किये जायँ,उसको मैं कर्म और क्रिया नहीं कहता हूँ। उसको उपासना(भक्ति) कहता हूँ।

संसारके दान,पुण्य,तीर्थ,व्रत आदि- इनको तो मैं क्रिया कहता हूँ और भगवानको लेकरके जो जप-ध्यान आदि किया जाता हैं,वो कर्म नहीं है,वो उपासना है। उससे परमात्माकी प्राप्ति होती है।

क्रियाओंसे भी (भगवत्प्राप्ति) होती है,निष्काम भाव हो और उध्देश्य परमात्मप्राप्ति हो,तो मात्र क्रिया परमात्मप्राप्तिकी कारण हो जायेगी।

भोजन करना भी भगवानकी प्राप्तिका कारण,झाडू देना भी भगवत्प्राप्तिका कारण,चरखा चलाना भी भगवत्प्राप्तिका कारण…

…क्रियाओंसे (भगवत्प्राप्ति) नहीं होती है,भावसे होती है। क्रियाओंके द्वारा भगवानको पकड़ले-यह बात नहीं है…भावग्राही जनार्दन।

…निरर्थक काम किया जाय,फूस,कचरा बुहार कर फेंका जाय कि इस कर्मसे भगवान राजी हों,तो भक्ति हो गई वो।निकम्मा काम बिल्कुल ही।…

भगवानका जहाँ उध्देश्य हो जाता है,वो [क्रिया] कर्म नहीं रहता है,अग्निमें रखी हुई चीज सब(सब चीजें) चमकने लगती है। चाहे वो लोहा हो और चाहे पत्थर हो और चाहे ठीकरी हो और चाहे कोयला हो-सब चमकने लग जाता हैं।

ऐसे भगवानके अर्पण करनेसे सबके-सब कर्म,कर्म नहीं रहते हैं।वो सब चमकने लग जाते हैं।

इस वास्ते ऐसा मेरा [भाव] नहीं है कि जप,ध्यान [आदि क्रिया] करनेसे भगवत्प्राप्ति नहीं होती। प्रेमसे होती है,निष्काम भावसे होती है। संसारकी कामना न हो और भगवानमें प्रेम हो,तो कुछ भी करो काम,गाळी दो भले ही भगवानको(अपनापनसे)।भगवान मिल जायेंगे अपनापनसे।

- श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज द्वारा दिये गये (दिनांक 19940512/1630 बजेके) प्रवचनके कुछ अंश।

अधिक जाननेके लिये यह(ऊपर दिया गया) प्रवचन सुनें,या उसका यह अंश सुनें।

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कहीं भी जाओ,भगवानका नाम ले करके जाओ-नारायण नारायण०,घटना.(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)।

                       ।।श्रीहरि:।।

कहीं भी जाओ,भगवानका नाम ले करके जाओ-नारायण नारायण नारायण नारायण करके जाओ ,घटना. ।

(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)।

श्रध्देय सेेठजी श्री श्री जयदयालजी गोयन्दका द्वारा स्थापित ऋषिकुल ब्रह्मचर्याश्रम चूरूमें हर साल वार्षिकोत्सव होता है।

श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजने बताया कि (वो उत्सव करके) एक बार हमलोग चूरूसे लक्ष्मणगढ जा रहे थे।

जब गाड़ीमें बैठे और लाॅरी(गाड़ी) रवाना हुई तो भाईजी श्री हनुमान प्रसादजी पोद्दार बोले कि- नारायण नारायण,नारायण नारायण।

फिर भाईजी बोले कि यह बात मेरेको मालवीयजीसे मिली है।

पण्डितमदनमोहन मालवीयजीकी मेरेपर बड़ी कृपा थी।(वो अवस्थामें भाईजीसे बड़े थे)।

एक बार वो बोले कि हनुमान! मैं तेरेको एक बहुत बढिया बात बताता हूँ।

भाईजी बोले कि बताओ महाराज।

मालवीयजी कहने ले कि बहुत बढिया बात है।

भाईजी बोले कि बताओ।

मालवीयजी बोले कि बहुत बढिया है।

भाईजी बोले कि बताओ।

मालवीयजी बोले कि (वो बात) मेरी माँ की बतायी हुई है।

भाईजी बोले कि महाराज! बताइये।

मालवीयजी बोले कि बहुत ही बढिया बात है।

ऐसे कहते-कहते, इस बातकी महिमामें उन्होने काफी समय लगा दिया।(यह घटना बताते हुए भाईजीने लिखा है कि करीब आधा घंटा लगा दिया)।

(मालवीयके इस प्रकार बार-बार कहनेसे सुननेकी उत्सुकता और बढ गयी कि ऐसी कौनसी विलक्षण बात बतायेंगे)।

फिर उन्होने यह बात बतायी कि देख हनुमान! कहीं भी जाओ,नारायण नारायण नारायण नारायण करके जाओ। (तीन या चार बार नारायण-नारायणका उच्चारण करके जाओ)।

मैंने काशीजीका विश्वविद्यालय बनवाया,(तथा और भी कई परोपरके काम किये)।तब धनकी आवश्यकता पड़ी,तो मैं कई राजा-महाराजाओंके पास गया।

उस समय मैं नारायण नारायण-भगवन्नामोच्चारण करके गया,तो मेरा काम सिध्द हुआ(धन मिल गया)।

और किसी कारणवश भूल गया-नारायण नारायण करके नहीं गया,तो मेरा काम सिध्द नहीं हुआ।

इसलिये कहीं भी जाओ,नारायण नारायण०करके जाओ-यह उन्होने अपना अनुभवकी बात बतायी।

श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज भी सत्संग-कार्यक्रम आदिके लिये कहीं जाते, तो ज्यों ही गाड़ी रवाना होती,(त्यों ही-रवाना होते ही) करते,नारायण नारायण,नारायण नारायण।

यह उनके बिना याद किये,स्वाभाविक ही हो जाता था।

उनके साथमें रहनेवाले और कई सत्संग-प्रेमियोंके भी ऐसा हो जाता-रवाना होते कि नारायण नारायण०।

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शनिवार, 10 जनवरी 2015

निवेदन('साधक-संजीवनी विचार' नामक समूहके लिये)।

                    ।।श्रीहरि:।।

'साधक-संजीवनी विचार' नामक समूहके सदस्योंसे नम्र निवेदन-

श्री मनमोहनजी महाराजने जो बार-बार आपलोगोंसे अनुरोध किया है कि सामग्री सीधे इस समूहमें न भेजें,इस पर हमलोगोंको ध्यान देना चाहिये।

इन्होने लोगोंका समय बचानेके लिये और समूहको उपयोगी बनानेके लिये, अपना समय देकर आप सबलोगोंकी सामग्रीमेंसे छाँटकर, समूहमें उपयोगी सामग्री भेजनेका काम सम्हाला है।

इसलिये आपलोगोंको 'श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'के प्रवचनों और ग्रंथोंमेंसे जो सामग्री 'साधक-संजीवनी विचार' नामक समूहमें भेजना हो,तो कृपया वो सीधे इनके नाम पर भेजदें।

आपका समय तो उतना ही लगेगा और लोगोंका समय बच जायेगा।

आप जो सामग्री भेजं,उसके नीचे अपना नाम लिखदें,जिससे पता चले कि यह किसने लिखा अथवा किसने भेजा है।(कृपया,आपने जहाँसे वो सामग्री ली है,वहाँका नाम पता जरूर लिखें)।

श्री मनमोहनजी महाराजसे निवेदन है कि आपको उचित लगे,उनका नाम सामग्रीके साथमें रहने दें।

जो नाम नहीं चाहते हों तो वो निवेदन करदें कि हमारा नाम साथमें न रखें,बिना नामके ही समूहमें प्रकाशित करेदें।

निवेदक-डुँगरदास राम

सोमवार, 5 जनवरी 2015

काम-क्रोध आदि दोष मिटानेके अनेक उपाय- (श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)।

                       ।।श्रीहरि:।।

काम-क्रोध आदि दोष मिटानेके अनेक उपाय-

(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)।

…एक तीसरा उपाय ऐसा है कि जिनके काम-क्रोध लोभ आदिक मिट गये हैं अथवा मिट रहे हैं,साधन कर रहा है,ऐसे पुरुष के पास रहनेसे बड़ा लाभ होता है, ये वृत्तियाँ शान्त होती है स्वतः ही स्वाभाविक ;वहाँ वृत्ति पैदा ही कम होती है,काम-क्रोध आदि वृत्ति पैदा ही नहीं होती;संगका बड़ा असर पड़ताहै और कामी और लोभीके पास (रहोगे)संग करो तो बड़े तेजीसे पैदा होंगे |

श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके दिनांक- १९९३१०२१/५.१८/बजेवालेे सत्संगका अश ||

(यह काम-नाशके उपायवाला प्रवचन इस पतेपर जाकर सुनें- https://db.tt/G7Hve1KQ )।

(इस प्रवचनमें श्री महाराजजीने काम वृत्ति मिटानेके एक दर्जनसे ज्यादा,बारहसे ज्यादा उपाय बताये हैं।

ये जो  कामवृत्ति मिटानेके उपाय बताये गये हैं,ये क्रोधवृत्ति मिटानेके भी उपाय हैं अर्थात् इन उपायोंसे काम मिटता है और क्रोध भी मिटता है।)||

क्रोध कैसे मिटे?

इसके लिये श्रध्देय स्वामीजी रामसुखदासजी महाराजने इस
(19960204/1500 बजेके)  प्रवचनमें भी कई उपाय बताये हैं।वो भी सुनें।

(यह क्रोध-नाशके उपायवाला प्रवचन इस पतेपर जाकर सुनें- https://db.tt/DbHHBcl2 और

लोभ-नाशके उपायवाला प्रवचन इस पतेपर जाकर सुनें- https://db.tt/D56GMblf)।

जो साधक अपने काम-क्रोध आदि दोष मिटाना चाहते हैं,उनके लिये ये उपाय बड़े कामके हैं)।

गीताजीमें भगवान कहते हैं कि काम,क्रोध और लोभ ये-तीन नरकके दरवाजे हैं(इनके वशमें होनेवाले मनुष्य नरकोंको प्राप्त करते हैं) और इनसे छूटे हुए मनुष्य परमगतिको प्राप्त करते हैं।(गीता १६।२१,२२)।

अधिक समझनेके लिये साधक-संजीवनी(लेखक-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज) ग्रंथ पढें

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बुधवार, 31 दिसंबर 2014

भगवानकी भक्तपर विशेष दया।

                       ।।श्रीहरि:।।

भगवानकी भक्तपर विशेष दया।

भगवान अपने भक्तके अवगुण,अयोग्यता आदिकी तरफ न देखकर स्वयं,अपनी तरफ दखते हैं और भक्तका पालन-पोषण करते हैं।

हृदयमें नियत अच्छी होनी चाहिये।

दीखनेमें तो चाहे भक्तकी भूल-चूक ही क्यों न दीखते हों,परन्तु वो तो भक्तके हृदयकी अच्छाई देखकर रीझ जाते हैं,खुश होजाते हैं और भक्तके गुण गाने लगते हैं।

श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज कहते हैं कि भगवानका हृदय विलक्षण है।उसमें अवगुण नहीं छपते अर्थात् भगवान भक्तके गुणोंको तो याद रखते हैं,पर अवगुणोंको याद नहीं रखते।अवगुण भूल जाते हैं,भक्तकी भूल(चूक)को भूल जाते हैं।

भूलनेका स्वभाव होनेसे भगवान अपने भक्तके हृदयकी अच्छाईको सौ बार याद करते हैं कि मैं भूल न जाऊँ।

किसीका अगर भूलनेका स्वभाव है;जैसे,कोई गीताजीका श्लोक याद करना चाहता है,याद कर भी लेता है पर भूल जाता है।तो वो अगर एक श्लोकको सौ बार रट ले,सौ बार उस श्लोककी आवृत्ति कर ले तो फिर भूलेगा नहीं,याद हो जायेगा।

ऐसे भगवान भी अपने भक्तके हृदयकी अच्छाईको सौ बार याद करते हैं कि मैं भूल न जाऊँ।मेरा भक्तकी चूक भूल जानेका स्वभाव है,इस कारण भक्तकी अच्छाईको भी भूल न जाऊँ।

इसलिये भगवान भक्तके हृदयकी बातको सौ बार याद करतेहैं।

-

भायँ कुभायँ अनख आलसहूँ।
नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ॥
सुमिरि सो नाम राम गुन गाथा।
करउँ नाइ रघुनाथहि माथा ॥

मोरि सुधारिहि सो सब भाँती।
जासु कृपा नहिं कृपाँ अघाती॥

राम सुस्वामि कुसेवकु मोसो।
निज दिसि दैखि दयानिधि पोसो॥

लोकहुँ बेद सुसाहिब रीतीं।
बिनय सुनत पहिचानत प्रीती॥

गनी गरीब ग्रामनर नागर।
पंडित मूढ़ मलीन उजागर॥

सुकबि कुकबि निज मति अनुहारी।
नृपहि सराहत सब नर नारी॥

साधु सुजान सुसील नृपाला।
ईस अंस भव परम कृपाला॥

सुनि सनमानहिं सबहि सुबानी।
भनिति भगति नति गति पहिचानी॥

यह प्राकृत महिपाल सुभाऊ।
जान सिरोमनि कोसलराऊ॥

रीझत राम सनेह निसोतें।
को जग मंद मलिनमति मोतें॥

दोहा

सठ सेवक की प्रीति रुचि
रखिहहिं राम कृपालु ।

उपल किए जलजान जेहिं
सचिव सुमति कपि भालु ॥२८ (क )॥

हौहु कहावत सबु कहत
राम सहत उपहास ।

साहिब सीतानाथ सो
सेवक तुलसीदास ॥२८ (ख )॥

चौपाला

अति बड़ि मोरि ढिठाई खोरी।
सुनि अघ नरकहुँ नाक सकोरी॥
समुझि सहम मोहि अपडर अपनें।
सो सुधि राम कीन्हि नहिं सपनें॥

सुनि अवलोकि सुचित चख चाही।
भगति मोरि मति स्वामि सराही॥

कहत नसाइ होइ हियँ नीकी।
रीझत राम जानि जन जी की॥

रहति न प्रभु चित चूक किए की।
करत सुरति सय बार हिए की॥

जेहिं अघ बधेउ ब्याध जिमि बाली।
फिरि सुकंठ सोइ कीन्ह कुचाली॥

सोइ करतूति बिभीषन केरी।
सपनेहुँ सो न राम हियँ हेरी॥

ते भरतहि भेंटत सनमाने।
राजसभाँ रघुबीर बखाने॥

दोहा

प्रभु तरु तर कपि डार पर
ते किए आपु समान ।

तुलसी कहूँ न राम से
साहिब सीलनिधान ॥२९ (क )॥

राम निकाईं रावरी
है सबही को नीक ।

जों यह साँची है सदा
तौ नीको तुलसीक ॥२९ (ख )॥

एहि बिधि निज गुन दोष कहि
सबहि बहुरि सिरु नाइ ।

बरनउँ रघुबर बिसद जसु
सुनि कलि कलुष नसाइ ॥२९ (ग )॥

(रामचरितमा.१।२९)।

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गुरुवार, 18 दिसंबर 2014

३.ज्ञानगोष्ठीके सज्जनोंसे(तीसरी बार) नम्र निवेदन।

             ।।श्रीहरि:।।

३.ज्ञानगोष्ठीके सज्जनोंसे(तीसरी बारका) नम्र निवेदन।

कृपया ज्ञानगोष्ठीमें बिना पते-ठिकानेकी बातें न भेजें।

अमुक बात कहाँसे लिखी गई? अगर इसका उत्तर यह होता है कि पता नहीं,तो यह अज्ञानकी बात है।अज्ञानमें भी यही होता है कि पता नहीं।इसलिये अज्ञानकी बातें ज्ञानगोष्ठीमें न भेजें।

एक-एक मैसेजका पता लिखा हुआ होना चाहिये कि यह अमुक महात्माकी वाणीसे लिया गया है अथवा यह अमुक पुस्तकसे लिया गया है।

और एक इस बातका भी ध्यान रखें कि कई मैसेज एक साथ मिलाकर न भेजें।

कृपया यह भी ध्यान रखें कि जो सामग्री इस समूहमें पहले आ चूकी,वो बार-बार न भेजें।

आशा है कि आप इधर ध्यान देंगे।

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२.ज्ञानगोष्ठीके सज्जनोंसे(दूसरी बारका) नम्र निवेदन।

कृपया अनावश्यक लम्बे पाठवाली सामग्री भेजकर लोगोंके मनमें विक्षेप न करें।यह कई लोगोंको बुरा लगता है।

(लम्बा पाठ भेजना आवश्यक लगे तो छौटे-छौटे विभाग करके भेज सकते हैं।इससे खोलने और पढनेमें सुगमता रहती है)।

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१.

एक नम्बरकी सामग्री वही है,जो श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज और सेठजी श्री जयदयालजी गोयन्दकाके सत्संगकी हो या उससे सम्बन्धित हो।

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