गुरुवार, 18 दिसंबर 2014

३.ज्ञानगोष्ठीके सज्जनोंसे(तीसरी बार) नम्र निवेदन।

             ।।श्रीहरि:।।

३.ज्ञानगोष्ठीके सज्जनोंसे(तीसरी बारका) नम्र निवेदन।

कृपया ज्ञानगोष्ठीमें बिना पते-ठिकानेकी बातें न भेजें।

अमुक बात कहाँसे लिखी गई? अगर इसका उत्तर यह होता है कि पता नहीं,तो यह अज्ञानकी बात है।अज्ञानमें भी यही होता है कि पता नहीं।इसलिये अज्ञानकी बातें ज्ञानगोष्ठीमें न भेजें।

एक-एक मैसेजका पता लिखा हुआ होना चाहिये कि यह अमुक महात्माकी वाणीसे लिया गया है अथवा यह अमुक पुस्तकसे लिया गया है।

और एक इस बातका भी ध्यान रखें कि कई मैसेज एक साथ मिलाकर न भेजें।

कृपया यह भी ध्यान रखें कि जो सामग्री इस समूहमें पहले आ चूकी,वो बार-बार न भेजें।

आशा है कि आप इधर ध्यान देंगे।

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२.ज्ञानगोष्ठीके सज्जनोंसे(दूसरी बारका) नम्र निवेदन।

कृपया अनावश्यक लम्बे पाठवाली सामग्री भेजकर लोगोंके मनमें विक्षेप न करें।यह कई लोगोंको बुरा लगता है।

(लम्बा पाठ भेजना आवश्यक लगे तो छौटे-छौटे विभाग करके भेज सकते हैं।इससे खोलने और पढनेमें सुगमता रहती है)।

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१.

एक नम्बरकी सामग्री वही है,जो श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज और सेठजी श्री जयदयालजी गोयन्दकाके सत्संगकी हो या उससे सम्बन्धित हो।

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पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
http://dungrdasram.blogspot.com/

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