सबही कहावत रामके सबहि रामकी आस।
राम कहै जेहि आपनौ तेहि भजु तुलसीदास।।
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मन में है बसी बस चाह यही,
प्रिय नाम तुम्हारा उचारा करूँ ।
बिठला के तुम्हें मन मंदिर में,
मन मोहिनी रूप निहारा करूँ ॥
भरके दॄग-पात्र में प्रेम का जल,
पद पंकज नाथ पखारा करूँ ।
बन प्रेम पुजारी तुम्हारा प्रभु,
नित आरती भव्य उतारा करूँ ॥
हरिवासर
एकादशी के व्रत को समाप्त करने को पारण कहते हैं। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही होता है। द्वादशी तिथि के भीतर पारण न करना पाप करने के समान होता है।
एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए। जो श्रद्धालु व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत तोड़ने से पहले हरि वासर समाप्त होने की प्रतिक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि है। व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल होता है। व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्यान के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए। कुछ कारणों की वजह से अगर कोई प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं है तो उसे मध्यान के बाद पारण करना चाहिए।
Drik Pachang(पोष कृ.११)से
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