शनिवार, 6 दिसंबर 2014

१-गीता "साधक-संजीवनी" (लेखक- श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज) को समझकर- समझकर पढनेसे अत्यन्त लाभ |

                       ।।श्रीहरि।। 

 

         गीता 'साधक-संजीवनी'

(लेखक-

'श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'

(के) अध्ययनसे अत्यन्त लाभ-


प्रसिद्ध संत, "श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज" ने "श्रीमद्भगवद्गीता" पर एक सरल,सुबोधमय हिन्दी टीका लिखी है,जिसका नाम है- "साधक-संजीवनी"।

इसका अनेक भारतीय भाषाओंमें और अंग्रेजी आदि विदेशी भाषाओंमें भी अनुवाद हो चूका है तथा प्रकाशन भी हो गया है।

जिन्होने ध्यानसे, मन लगाकर इसको पढा है,वे इस विषयमें कुछ जानते हैं। जिनको गीताजीका वास्तविक अर्थ और रहस्य समझना हो,उनको चाहये कि वे इसको समझ-समझकर पढ़ लेवें।

इसी प्रकार गीता 'तत्त्वविवेचनी' 

 (लेखक 'परमश्रद्धेय सेठजी श्री जयदयालजी गोयन्दका') का भी समझ- समझकर अध्ययन करें।

 यह

  "साधक-संजीवनी"(परिशिष्ट सहित) 

 ग्रंथ तथा उनके और भी ग्रंथ गीताप्रेस गोरखपुरसे पुस्तकरूपमें और इण्टरनेट पर उपलब्ध हैं और ये कम्प्यूटर, टेबलेट,मोबाइल आदि पर पढने लायक अलगसे भी उपलब्ध है।    


इसलिये कृपया परिशिष्ट सहित "साधक-संजीवनी" गीताका समझ- समझ कर अध्ययन करें।

कई जने सोच लेते हैं कि रोजाना साधक-संजीवनीके एक श्लोककी पूरी व्याख्या पढ लेवें या पूरा एक पृष्ठ पढ लेवें ,यह बहुत बढिया है, परन्तु कभी- कभी जिस दिन समय कम रहता है और पूरी एक श्लोककी व्याख्या या पूरा पृष्ठ पढनेका आग्रह रहता है तो लोग जल्दी- जल्दी पढकर पूरा कर लेते हैं, तब (कभी- कभी)  कई बातें  पूरी समझे बिना ही रह जाती है।

इस प्रकार पुस्तक तो पढ़कर पूरी कर लेते हैं, पर पूरी समझे बिना रह जाती है | ऐसा क्यों होता है कि पृष्ठ या व्याख्या पूरी करनेका आग्रह होनेसे।

अगर इसकी जगह समय बाँधलें, तो समस्या हल हो जाती है ; अर्थात् (ऐसी योजना बनालें कि) १०-२० मिनिट या घंटा-आधाघंटा हमें तो इसको समझनेमें लगाना है, चाहे एक दिनमें व्याख्या या पृष्ठ पूरा हो या न हो। अगले दिन (जहाँ छोङा था) वहींसे आगे समझकर पढेंगे,कोई बात समझमें नहीं आई,तो दुबारा पढेंगे,तिबारा पढेंगे,पूर्वापरका ध्यान रखेंगे,और भी कुछ आवश्यक हुआ तो वो करेंगे- ऐसे समय बाँधकर करनेसे वो समस्या नहीं रहती।

इस प्रकार समझकर पढनेसे बहुत लाभ होता है,गीताका रहस्य समझमें आने लगता है,फिर तो रुचि हो जाती है और प्रयास बढ़ जाता है,गीता समझमें आने लगती है और गीता समझमें आ जाती है, तो भगवत्तत्त्व समझमें आ जाता है; फिर तो कुछ जानना बाकी नहीं रहता, न पाना बाकी रहता है, न करना बाकी रहता है ; मनुष्यजन्म सफल हो जाता है|

जिनको गीताजी याद (कण्ठस्थ) करनी हो, वो पहले इस प्रकार "साधक-संजीवनी" से श्लोक समझकर याद करेंगे, तो बड़ी सुगमतासे गीता याद हो जायेगी और जितनी बार श्लोकोंकी आवृत्ति करेंगे, उनके साथ- साथ अर्थ और भावोंकी भी आवृत्ति हो जायेगी | इस प्रकार गीताजीका ज्ञान बहुत बढ जायेगा और दृढ़ हो जायेगा।

गीता याद करनेवालोंके लिये 'गीता-ज्ञान-प्रवेशिका'(लेखक- 'श्रद्धेय  स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज) बहुत उपयोगी है; इसी प्रकार 'गीता- दर्पण'(लेखक- श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज) भी अत्यन्त लाभकारी है | 

'गीता- दर्पण' 

 ग्रंथ कैसे प्रकट हुआ?

(कि)
'परम श्रद्धेय  स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज' जब गीता 'साधक-संजीवनी' की भूमिका लिखवा रहे थे, तब वो भूमिका इतनी बड़ी हो गयी कि उसको 'गीता- दर्पण' नामक ग्रंथ बनाकर अलग से छपवाना पड़ा। 

यह 'गीता- दर्पण' संकोच करते- करते भी ( कि पहले भी 'साधक-संजीवनी' इतना बड़ा पौथा हो गया,वैसे ही यह न हो जाय) इतना बड़ा हो गया।

इसमें गीताजीके शोधपूर्ण १०८ लेख है और (यह) पूर्वार्द्ध तथा उत्तरार्द्ध -दो भागोंमें विभक्त है।


कभी- कभी किसी गीता- प्रेमी सज्जनको श्री महाराजजी यह ग्रंथ देकर फरमाते थे कि कमसे- कम आप इसकी विषय- सूची तो (जरूर) देखना।

गीताजीके इस अद्वितीय- ग्रंथको एक बार जरूर पढना चाहिये, इसमें और भी कई बातें हैं||

यह ग्रंथ और 'साधक-संजीवनी' आदि अनेक ग्रंथ गीताप्रेस गोरखपुरसे प्रकाशित हुए हैं और इण्टरनेट पर भी उपलब्ध है।


गीता 

"साधक-संजीवनी परिशिष्ट"। 


लेखक-

श्रद्धेय स्वामीजी श्री 

रामसुखदासजी महाराज'। 


'श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज' ने   गीता पर टीका- (-'साधक-संजीवनी') लिख दी और वो पुस्तकरूपमें प्रकाशित भी हो गयी।

उसके बादमें भी महाराजजीके मनमें गीताजीके बड़े विलक्षण और नये- नये भाव आते रहे।

तब गीताजीके सातवें अध्याय पर नये भावोंकी व्याख्या लिखकर पुस्तकरूपमें प्रकाशित की गयी।लेकिन नये- नये भाव तो और भी आने लग गये।

तब गीताजीके अठारहों अध्यायों पर गीताजीकी नयी व्याख्या लिखकर प्रकाशित की गयी, जिसका नाम था-"साधक-संजीवनी परिशिष्ट"। इसमें गीताजीका अर्थ पदच्छेद और अन्वय सहित दिया गया है। 

इसमें ऐसे- ऐसे भाव थे कि जो 'साधक-संजीवनी' में नहीं आये।

तब आवश्यक समझकर वो भाव ('साधक-संजीवनी परिशिष्ट') 'साधक- संजीवनी' में जोड़ दिये गये। इसके बाद 'साधक-संजीवनी' पर यह लिखा जाने लगा- 

"साधक-संजीवनी" (परिशिष्ट सहित)।

{जिनके पास पुरानी साधक-संजीवनी  है,उनको चाहिये कि यह नयी वाली "साधक- संजीवनी" (परिशिष्ट सहित) वाली भी लेकर पढें}।


इसके बाद भी गीताजीके और नये भाव आये, वो

  "गीता-प्रबोधनी" 

में लिखे गये। फिर भी नये- नये भाव तो आते ही रहे…

'श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज' के ग्रंथ यहाँ (इस पते) से प्राप्त करें-

http://www.swamiramsukhdasji.org/

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पता-
सत्संग- संतवाणी.
"श्रद्धेय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराज" का
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
http://dungrdasram.blogspot.com/

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