मंगलवार, 9 दिसंबर 2014

गीता "साधक-संजीवनी"का प्राकट्य।लेखक-'श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'।

                    ।।श्रीहरि:।।

गीता "साधक-संजीवनी"का प्राकट्य।

लेखक-

'श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज' 

छोटी अवस्थासे ही मेरी गीतामें विशेष रुचि रही है । गीताका गम्भीरतापूर्वक मनन-विचार करने से तथा अनेक सन्त-महापुररुषोंके संग और वचनोंसे मुझे गीताके विषयको समझनेमें बड़ी सहायता मिली ।

गीतामें महान् संतोष देनेवाले अनन्त विचित्र-विचित्र भाव भरे  पड़े   हैं | उन भावोंको पूरी तरह समझनेकी और उनको व्यक्त करनेकी मेरेमें सामर्थ्य नहीं है । परन्तु जब कुछ गीताप्रेमी सज्जनोंने विशेष आग्रह किया, हठ किया, तब गीताके मार्मिक भावोंका  अपनेको बोध हो जाय तथा और कोई मनन करे तो उसको भी इनका बोध हो जाय- इस दृष्टिसे  गीताकी व्याख्या लिखवानेमें प्रवृत्ति हुई ।

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गीताका मनन-विचार करनेसे और गीताकी टीका लिखवानेसे मुझे बहुत आध्यात्मिक लाभ हुआ है  और गीताके विषयका बहुत स्पष्ट बोध भी हुआ है । दूसरे भाई -बहन भी यदि इसका मनन करेंगे, तो उनको  भी आध्यात्मिक लाभ अवश्य होगा - ऐसी मेरी व्यक्तिगत धारणा है।

गीताका मनन -विचार करनेसे लाभ होता है-इसमें मुझे कभी किंचिन्मात्र भी सन्देह नहीं है।
साधक-संजीवनी (लेखक-'श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'),प्राक्कथन,"टीकाके सम्बन्धमें "से।

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पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
http://dungrdasram.blogspot.com/

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