।।श्रीहरि:।।
१.नित्य-स्तुति, गीता और सत्संग
(-श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के इकहत्तर दिनों वाला सत्संग-प्रवचनों का सेट) ।।
श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज प्रतिदिन प्रातः पाँच बजे के बाद सत्संग करवाया करते थे।
पाँच बजते ही गीताजी के चुने हुए कुछ (१९) श्लोकों (२/७; ८/९; ११/१५-२२, ३६-४४;) द्वारा नित्य-स्तुति, प्रार्थना शुरु हो जाती थी। फिर गीताजी के लगभग दस-दस श्लोकोंका (प्रतिदिन क्रमशः) पाठ और हरि:शरणम् हरि:शरणम् ... आदि का संकीर्तन होता था।
इस प्रार्थना की शुरुआत से पहले यह श्लोक बोला जाता था-
'गजाननं भूतगणादिसेवितं
कपित्थजम्बूफलचारुभक्षणम्। उमासुतं शोकविनाशकारकं
नमामि विघ्नेश्वरपादपड़्कजम्' ।।
और समाप्ति के बाद यह श्लोक बोला जाता था -
त्वमेव माता च पिता त्वमेव
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव
त्वमेव सर्वं मम देवदेव ।।
(इस प्रकार केवल प्रार्थना के ही इक्कीस श्लोक हो जाते थे। इसके बाद गीताजी के लगभग दस श्लोकों का पाठ और होता था)।
ये तीनों (प्रार्थना, गीता-पाठ और संकीर्तन) करीब सत्रह (या बीस) मिनटों में पूरे हो जाते थे।
इसके बाद (करीब 0518 बजे से) श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज सत्संग-प्रवचन सुनाते थे, जो प्रायः छःह(6) बजेसे करीब 13 या18 मिनिट पहले ही समाप्त हो जाते थे।
यह सत्संग-प्रोग्राम कम समयमें ही बहुत लाभदायक, सारगर्भित, कल्याणकारी तथा बङा विलक्षण और अत्यन्त प्रभावशाली होता था। उससे बङा भारी लाभ होता था।
वो सब हम आज भी और उन्हीं की वाणीमें सुन सकते हैं तथा साथ-साथ में कर भी सकते हैं।
इसमें
(1.@NITYA-STUTI,GITA,SATSANG -S.S.S.RAMSUKHDASJI MAHARAJ@
नित्य-स्तुति,गीता,सत्संग-
श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज-इकहत्तर दिनोंका सत्संग-प्रवचन सेट में) वो सहायक-सामग्री है। (इसलिये यह प्रयास किया गया है)।
सज्जनोंसे निवेदन है कि श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के समयमें जैसे सत्संग होता था, वैसे ही आज भी करनेका प्रयास करें। इस बीचमें कोई अन्य प्रोग्राम न जोङें।
नित्य-स्तुति, प्रार्थना, गीताजी के करीब दस-दस श्लोकों का पाठ और हरिःशरणम् हरिःशरणम् आदि संकीर्तन भी उन्हीं की आवाजके साथ-साथ करेंगे तो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूपमें अत्यन्त लाभ होगा।
प्रातः पाँच बजे श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजकी आवाजमें (रिकोर्डिंग वाणीके साथ-साथ) नित्य-स्तुति, प्रार्थना और गीताजी के दस श्लोकों का पाठ कर लेने के बाद यह हरिः शरणम् वाला संकीर्तन (श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज की आवाज में ही) सुनें और साथ-साथ बोलें। इसके बाद श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजका सत्संग जरूर सुनें।
(हरिःशरणम् (संकीर्तन) यहाँ(इस पते)से प्राप्त करें- https://db.tt/0b9ae0xg )।
कई जने पाँच बजे सिर्फ प्रार्थना तो कर लेते हैं (और कई जने गीता-पाठ भी कर लेते हैं), परन्तु सत्संग नहीं सुनते ; लेकिन जरूरी सत्संग सुनना ही है। इसलिये 'श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज' का सत्संग जरूर सुनें।
यह बात समझ लेनी चाहिये कि प्रार्थना आदि सत्संगके लिये ही होती थी। लोग जब आकर बैठ जाते तो पाँच बजते ही तुरन्त प्रार्थना शुरु हो जाती थी और उसके साथ ही सत्संग-स्थल का दरवाजा भी बन्द हो जाता था,बाहरके (लोग) बाहर और भीतरके भीतर (ही रह जाते थे)।
तथा प्रार्थना, गीता-पाठ आदि करते, इतनेमें उनका मन शान्त हो जाता था, उनके मनकी वृत्तियाँ शान्त हो जाती थी। उस समय उनको सत्संग सुनाया जाता था।
(ऐसे शान्त अवस्थामें सत्संग सुनने से वो भीतर(अन्तरात्मा में) बैठ जाता है)।
सत्संग के बाद भी भजन-कीर्तन आदि कोई दूसरा प्रोग्राम नहीं होता था, न इधर-उधर की या कोई दूसरी बातें ही होती थी, जिससे कि सत्संग में सुनी हुई बातें उनके नीचे दब जायँ।
सत्संग के समय कोई थोड़ी-सी भी आवाज नहीं करता था। अगर किसी कारणसे कोई आवाज हो भी जाती तो बड़ी अटपटी और खटकनेवाली लगती थी।
पहले नित्य-स्तुति एक लम्बे कागज के पन्ने में छपी हुई होती थी। प्रार्थना के बाद में वो पन्ना लोग गोळ-गोळ करके समेट लेते थे। समेटते समय सत्संग में उस पन्ने की आवाज होती थी,तो उस कागजकी आवाज (खड़के) से भी सुनने में विक्षेप होता था। तब वो प्रार्थना पुस्तकमें छपवायी गयी, जिससे कि आवाज न हो और सत्संग सुनने में विक्षेप न हो तथा एकाग्रता से सत्संग सुनी जाय, सुननेका तार न टूटे, सत्संगका प्रवाह अबाध-गति से श्रोता के हृदय में आ जाय और उसी में भरा रहे।
सत्संग सुनते समय वृत्ति इधर-उधर चली जाती है तो सत्संग पूरा हृदय में आता नहीं है।
सुनने से पहले मनकी वृत्तियों को शान्त कर लेने से बड़ा लाभ होता है। शान्तचित्त से सत्संग सुनने से समझ में बहुत बढिया आता है और लगता भी बहुत बढिया है।
सत्संग शान्तचित्त से सुना जाय- इस के लिये पहले प्रार्थना आदि बड़ी सहायक होती थी।
इस प्रकार प्रार्थना आदि होते थे सत्संग के लिये।
इसलिये प्रार्थना आदि के बाद में सत्संग जरूर सुनना चाहिये।
सत्संग तो प्रार्थना आदि का फल है-
सतसंगत मुद मंगल मूला।
सोइ फल सिधि सब साधन फूला।।
(रामचरित.बा.३)।
'श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज' के समय में जिस प्रकार सत्संग होता था उसी प्रकार हम आज भी कर सकते हैं।
प्रतिदिन गीताजी के करीब दस-दस श्लोकों का पाठ करते-करते लगभग सत्तर-इकहत्तर दिनोंमें पूरी गीताजी का पाठ हो जाता था।
इस प्रकार इकहत्तर दिनों में नित्य-स्तुति और गीताजी सहित सत्संग-प्रवचनों का एक सत्संग-समुदाय हो जाता था।
जिस प्रकार श्री स्वामीजी महाराज के समय में वो सत्संग होता था, वैसा सत्संग हम आज भी कर सकते हैं-
-इस बातको ध्यानमें रखते हुए एक इकहत्तर दिनों के सत्संग का सेट (प्रवचन-समूह) तैयार किया गया है जिसमें ये चारों है (1-नित्य-स्तुति,2-गीताजी के दस-दस श्लोकों का पाठ,3-हरि:शरणम्... आदि संकीर्तन तथा 4-सत्संग-प्रवचन- ये चारों है)।
चारों एक नम्बर पर ही जोङे गये हैं; इसलिये एक बार चालू कर देने पर ये चारों अपने-आप सुनायी दे-देंगे। बार-बार चालू नहीं करने पङेंगे।
यन्त्र के द्वारा इसको एक बार शुरु करदो, बाकी काम अपने आप हो जायेगा अर्थात् आप पाँच बजे प्रार्थना चालू करदो; तो आगे गीतापाठ अपने-आप आ जायेगा और उसके बाद हरि:शरणम् वाला संकीर्तन आकर अपने-आप सत्संग-प्रवचन आ जायेगा, सत्संग-प्रवचन शुरु हो जयेगा।
इस प्रकार नित्य नये-नये सत्संग-प्रवचन आते जायेंगे। इकहत्तर दिन पूरे होनेपर इसी प्रकार वापस शुरु कर सकते हैं और इस प्रकार उम्र भर सत्संग किया जा सकता है।
इनके अलावा श्री स्वामीजी महाराज के नये प्रवचन सुनने हों तो प्रार्थना आदि के बाद पुराने,सुने हुए प्रवचनों की जगह नये प्रवचन लगाकर सुने जा सकते हैं।
इसमें विशेषता और विलक्षणता यह है कि प्रार्थना,गीतापाठ, हरि:शरणम्(संकीर्तन) और प्रवचन- ये चारों श्रीस्वामीजी महाराज की ही आवाज (स्वर) में है।
महापुरुषों की आवाज में अत्यन्त विलक्षणता होती है, बङा प्रभाव होता है, उससे बङा भारी लाभ होता है। इसलिये कृपया इसके द्वारा वो लाभ स्वयं लें और दूसरों को भी लाभ लेनेके लिये प्रेरित करें।।
कई अनजान लोग साधक-संजीवनी और गीताजीको अलग-अलग मान लेते हैं, उनको समझाने के लिये कि गीताजी साधक-संजीवनी से अलग नहीं है, दोनों एक ही हैं, दो नहीं है- इस दृष्टिसे इसमें प्रतिदिन होने वाले गीता पाठ में श्लोक संख्या की सूचना बोलते समय गीता साधक-संजीवनी का नाम बोला गया है। इससे गीता साधक-संजीवनीका प्रचार भी होगा।
इसमें सुविधा के लिए प्रत्येक फाइल पर गीताजीके अध्याय और श्लोकोंकी संख्या लिखी गई है तथा 71 दिनोंकी संख्या भी लिखी गई है और बोली भी गई है।
यह (इकहत्तर दिनोंका "सत्संग-समूह") मोबाइलमें आसानीसे देखा और सुना जा सकता है तथा दूसरे यन्त्रों द्वारा भी सुना जा सकता है। (मेमोरी कार्ड, पेन ड्राइव, सीडी प्लेयर, स्पीकर या टी.वी. आदि के द्वारा भी सुना जा सकता है)।
यह सेट इकहत्तर दिनोंका इसलिये बनाया गया कि इतने दिनों में पूरी गीताजी के पाठकी आवृत्ति हो जाती है, गीताजी का पूरा पाठ हो जाता है।
प्रतिदिन प्रार्थना के बाद गीताजी के लगभग दस-दस श्लोकों का पाठ होने से करीब सत्तर इकहत्तर दिनों में पूरा गीता-पाठ हो जाता है।
(गीताजी के ७००-सात सौ श्लोकों में से दस-दस के हिसाब से सत्तर दिन होते हैं ; लेकिन गीता जी के प्रत्येक अध्यायों की श्लोक संख्या देखते हुए और अध्याय-समाप्ति पर विराम हो जाय- इस दृष्टि से यह काम ६९ दिनों में पूरा किया गया है।
फिर एक दिन अंगन्यास करन्यास आदि के लिये और एक दिन गीता जी के महात्म्य तथा आरती के लिये जोङे गये हैं।
श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज ने भी गीता-पाठ के आरम्भ में अंगन्यास करन्यास आदि का पाठ किया है तथा गीता-पाठ के अन्त में गीता जी के महात्म्य का पाठ किया है और गीताजी की आरती गायी है। यह उसी के अनुसार किया गया है।
इस प्रकार यह इकहत्तर दिनों वाला प्रार्थना, प्रवचनों सहित गीताजी के पूरे पाठ का समूह है।
इसके लिये जो एक प्रयास किया गया है,वो है प्रार्थना, गीतापाठ सहित इकहत्तर दिनों वाला सत्संग-प्रवचनों का यह सेट)।
इस प्रकार हम घर बैठे या चलते-फिरते भी महापुरुषोंकी सत्संगका लाभ ले सकते हैं।
वो सत्संग नीचे दिये गये लिंक, पते द्वारा कोई भी सुन सकते हैं और डाउनलोड भी कर सकते हैं -
नं १ - goo.gl/DMq0Dc (ड्रॉपबॉक्स)
नं २ - goo.gl/U4Rz43 (गूगल ड्राइव) ।
तथा-
उस इकहत्तर दिनोंवाले सेटका पता-ठिकाना यहाँ भी है। आप वो यहाँसे नि:शुल्क प्राप्त कर सकते हैं-
@नित्य-स्तुति,गीता,
सत्संग-श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज@
(-इकहत्तर दिनोंके सत्संग-प्रवचनके सेटका पता-)
https://www.dropbox.com/sh/p7o7updrm093wgv/AABwZlkgqKaO9tAsiGCat5M3a?dl=0
श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज कहते हैं कि सत्संग के बाद में, बैठ कर आपस में सत्संग की चर्चा करने से बड़ा लाभ होता है। बुद्धि का विकास होता है।
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पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
http://dungrdasram.blogspot.com/
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