।।श्रीहरि:।।
संत-वाणी यथावत् रहने दें,संशोधन न करें
(श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'की वाणी और लेख यथावत् रहने दें,संशोधन न करें)।
(आजकल ऐसा देखने में आता है कि श्री स्वामीजी महाराज की रिकोर्डिंग वाणी के साथ लोग छेङ-छाङ कर रहे हैं, जो बङे भारी नुकसान की बात है, हानि की बात है। कई ऐसे लोग हैं जो महाराज जी के प्रवचन के साथ रिकोर्ड की हुई तारीख हटा देते हैं और उसमें से श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज का नाम भी हटा देते हैं, प्रवचन की पहचान हटा देते हैं। शायद उनको पता नहीं है कि यह व्यवस्था स्वयं श्री स्वामीजी महाराज की करवायी हुई है। प्रवचन के साथ, तारीख आदि रिकोर्ड करने का काम उनके कहने से शुरु किया गया है। अगर कोई प्रवचन की तारीख आदि हटाता है तो यह श्री स्वामीजी महाराज की व्यवस्था भंग करना है। इसलिये हम सब का कर्तव्य है कि लोकहित के लिये की गई महापुरुषों की इस व्यवस्था को बनाये रखें। कोई उसको तोङे तो यथाशक्ति उसको रोकने की कोशिश करें, सन्तवाणी की रक्षा करें। इसी तरह उनकी लिखित वाणी की भी रक्षा करें)।
१.एक बार किसी पत्रिकामें श्रीस्वामीजी(रामसुखदासजी) महाराजके लेखको कुछ संशोधन करके छापा गया।उस लेखको सुननेपर श्रीस्वामीजी महाराजको लगा कि इसमें किसीने संशोधन किया है,जिससे इसका जैसा असर होना चाहिये,वैसा असर दीख नहीं रहा है!तब श्रीस्वामीजी महाराजने एक पत्र लिखवाकर भेजा,जिसमें लिखा था कि 'आप हमारे लेखोंमें शब्दोंको बदलकर बङा भारी अनर्थ कर रहे हो;क्योंकि शब्दोंको बदलनेसे हमारे भावोंका नाश हो जाता है! इस विषयमें आपको अपने धर्मकी,अपने इष्टकी सौगन्ध है!'आदि। *
(परम श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज द्वारा रचित 'साधक-संजीवनी' पर आधारित 'संजीवनी-सुधा' के प्राक्कथन ix से साभार)।
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(क).यह बात उन दिनोंकी है कि जिन दिनोंमें गीता-दर्पण (लेखक- श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज) का प्रकाशन ... हो रहा था। बादमें भी कई बार ऐसे अवसर आये हैं।
(ख).महापुरुषोंके शब्द बदलने नहीं चाहिये।
अगर भावोंका खुलासा करना हो तो ब्रैकेट,कोष्ठक ( ) या टिप्पणीमें करना चाहिये। और यह स्पष्ट होना चाहिये कि ऐसा खुलासेके लिये किया गया है।
अधिक जाननेके लिये यहाँ पढें-
संत-वाणीकी रक्षा करे- श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी शीघ्र कल्याणकारी वाणीको सुरक्षित करें,उनमें कोई काँट-छाँट न करें,सेट पूरा रहने दें,अधूरा न करें। http://dungrdasram.blogspot.com/2014/12/blog-post_72.html
२.एक बार 'श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'से किसीने कहा कि गोस्वामी श्री तुलसीदासजी महाराजने जो रामायणमें यह चौपाई लिखी है कि
ढोल गवाँर सूद्र पसु नारी।
सकल ताड़ना के अधिकारी॥
(५/५९)।
(तो) इसमें स्त्रीजातीका तिरस्कार है,इसलिये "नारी"शब्द बदलकर(हटाकर) "चारी" (ढोल गवाँर सूद्र पसु चारी) कर देना चाहिये।
यह सुनकर श्री स्वामीजी महाराजने उनको डाँटते हुए गुस्सा जताकर जोरसे मना किया कि यह अन्याय है।उनकी(सन्तोंकी) वाणीमें काँट-छाँट,हेरा-फेरी नहीं करनी चाहिये,जैसा उन्होने लिखा है,वैसा ही रहने देना चाहिये।कोई उसको काँट-छाँट करता है या बदलाव करता है तो बड़ा अन्याय करता है।यह (वाणी बदलना) गोस्वामीजी महाराजकी हत्या करना है।
(अधिक जाननेके लिये श्रीमहाराजजीकी पुस्तक "मातृशक्तिका घोर अपमान"(लेखक- स्वामी रामसुखदास) पढें)।
तथा-
"बात पते की " होनी चाहिये=
(श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज की बातों के साथ प्रमाण लिखा हुआ होना चाहिये)।
आजकल कई लोग श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के नाम की आड़ में दूसरों की बातें लिख देते हैं और
कई-कई तो अपने मन से, अपनी समझ की बात लिख कर उस पर नाम श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज का दे देते हैं कि यह बात उनकी है।
सज्जनों! यह बड़ा भारी अपराध है, झूठ है।
इससे सत्य बात के भी आड़ लग जाती है और उस पर लोगों का विश्वास नहीं रहता (जो लोगों के कल्याण की सामग्री में बड़ा भारी नुकसान है)।
विश्वास करने लायक बात वही है जो किसी पुस्तक या प्रवचन से लेकर लिखी गयी हो, अथवा स्वयं उनके श्रीमुख से सुनी गयी हो।
(श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के जिन लेखों और बातों में किसी पुस्तक या प्रवचन आदि का प्रमाण लिखा हुआ नहीं हो, तो वो हमें स्वीकार नहीं है)।
जिस बात या लेख में लेखक का नाम दिया गया हो,कृपया उसको हटावें नहीं और उस लेखक की जगह दूसरे लेखक का नाम भी न देवें। लेखक का नाम हटाना अपराध है।
श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के लेखों और बातों से उनका नाम हटाना अपराध है और दूसरों की बातों में या अपनी बातों में उनका नाम जोड़ना (कि यह बात उनकी है) भी अपराध है, जो कि पाप से भी भयंकर है।
श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज बताते हैं कि एक तो होता है पाप और एक होता है अपराध।
अपराध पाप से भी भयंकर होता है। पाप तो उसका फल भुगतने से मिट जाता है; परन्तु अपराध नहीं मिटता।
अपराध तो तभी मिटता है कि जब वो (जिसका अपराध किया गया है वो) स्वयं माफ करदे।
इसलिये हमें अपराध से बचना चाहिये।
● संत-वाणीकी रक्षा करें ●।
परम श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी शीघ्र कल्याणकारी वाणीको सुरक्षित रखें,उनमें कोई काँट-छाँट न करें,सेट पूरा रहने दें,अधूरा न करें।
प्रवचन और पुुस्तक आदि को पूूूूरी पेेश करेें,एक भी पृृष्ठ कम न रहे,इधर-उधर न हो। फाइल पूरी रहे। कोई भी फोल्डर,सेट या सामग्री पूरी लोड करनी चाहिये,अधूरी नहीं रखनी चाहिये;क्योंकि ऐसे अधूरी सामग्री लोड करने से, स्थापित करनेसे या कोपी(प्रतिलिपि) करनेसे कभी-कभी वो अधूरी ही रह जाती है। कारण,कि एक तो ऐसी सत्संग आदिकी सामग्रीमें रुचि रखनेवाले लोग कम है और उनमें भी ऐसी जानकारीकी कमी है।
दूसरी बात,कि कई लोग लापरवाही रखनेवाले होते हैं,बेपरवाही करते हैं,अधूरीको पूरी करनेका परिश्रम नहीं करते और कई तो पूरीको भी अधूरी कर देते हैं। इससे बड़ा नुक्सान होता है,महापुरुषोंकी वाणीका सेट बिखरता है और मूल-सामग्री दुर्लभ होती चली जाती है,जिससे लोगोंके कल्याणमें बड़ी कठिनता होती है,जो कि महापुरुषोंको पसन्द नहीं है।
इसलिये महापुरुषोंकी वाणीको यथावत रखनेका प्रयास करना चाहिये,इससे लोगोंको सुगमतासे उत्तम,असली चीज मिल जायेगी,पूरी चीज मिल जायेगी और उनका सुगमता-पूर्वक तथा जल्दी कल्याण हो जायेगा।
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प्रवचनों की तारीख और नाम हटाना अपराध है ।
आजकल श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के सत्संग- प्रवचनों पर ध्यान देना चाहिए कि उनमें से तारीख और श्री महाराज जी का नाम तो नहीं हटा दिया गया है?।
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ऐसा देखने में आया है कि किसीने श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के कई प्रवचनों में से तारीख हटा दी है और श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज का नाम भी इन प्रवचनों में से हटा दिया है। यह किसी ने महान अपराध किया है; क्योंकि प्रवचनों के अन्दर तारीख रिकोर्ड करने की व्यवस्था स्वयं श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज ने करवायी थी।
मेरे (डुँगरदास राम के) सामने की बात है कि महाराज जी से पूछा गया कि (प्रतिलिपि आदि का काम करते समय या अन्य कारणों से) प्रवचन की कैसेटों पर लिखी हुई तारीख कभी-कभी साफ नहीं दीखती। मिट भी जाती है। लिखने में भी भूल से दूसरी तारीख लिख दी जाती है। ऐसे में सही तारीख का पता कैसे लगे? इसके लिये क्या करें?
तब श्री महाराज जी बोले कि प्रवचन के साथ ही (भीतर) में रिकोर्ड करदो (अगर ऊपर, तारीख लिखने में भूल हो जायेगी तो भीतरवाली रिकोर्ड सुनकर पकङी जायेगी,सही तारीखका पता लग जायेगा)।
तब से ऐसा विशेषता से किया जाने लगा। इन प्रवचनों की भीतर से तारीख हटा कर किसी ने महाराज जी की वो व्यवस्था भंग की है। जो इसको आगे बढ़ाते हैं। एक प्रकार से वो भी इस अपराध में सामिल है।
इसलिए आज से ही ऐसे प्रवचन ग्रुप में न भेजें।
यह ऐसे हमें स्वीकार नहीं है।
जो रोजाना श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के नाम से पाँच बजे वाली सत्संग ग्रुपों में भेजते हैं, भीतर की रिकोर्ड तारीख हटा देते हैं। हम उस कार्य का बहिष्कार करते हैं। सच्चे सत्संगियों को भी हमारी यही सलाह है।
श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज के प्रवचनों साथ तारीख रहना आवश्यक है और उपयोगी भी है। जैसे, श्री स्वामीजी महाराज की कोई बात हमको बढ़िया लगी और हम उस बात को या प्रवचन को ठीक से समझने के लिये मूल प्रवचन सुनना चाहें, तो उस तारीख के अनुसार खोजकर वो प्रवचन सुन लेंगे,समझ लेंगे। अब अगर उस प्रवचन की तारीख ही हटा दी गयी,तो कैसे खोजेंगे और क्या सुनेंगे? कैसे समझेंगे?
(वाट्सऐप्प द्वारा भेजने से प्रवचन के ऊपर लिखी हुई तारीख मिट जाती है,अगर भीतर की हुई रिकोर्ड तारीख भी हटायी हुई है तो पता ही नहीं लगता कि यह कौनसा और कब का प्रवचन है तथा अपरिचित व्यक्ति को तो यह भी पता नहीं लगता कि यह प्रवचन है किनका? प्रवचन करनेवाले कौन हैं? क्योंकि भीतरमें रिकोर्ड किया हुआ श्री स्वामीजी महाराजका नाम भी हटाया हुआ है)।
इसलिये प्रवचनों के ऊपर लिखी गयी तारीख और भीतर रिकोर्ड की गयी तारीख- दोनों रहनें दें,हटावें नहीं। श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज का नाम उनके प्रवचनों में से हटावें नहीं, रहनें दें। दूसरों को भी यह बात समझावें।
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श्री स्वामीजी महाराज के संग्रहीत, मूल प्रवचनों के ऊपर लिखी हुई तारीखें पढ़ना भी सीखलें।
मूल प्रवचनों पर पहले वर्ष (सन्) लिखा हुआ है, वर्ष के बाद महीना और महीने के बाद तारीख लिखी हुई होती है,उसके आगे समय लिखा हुआ रहता है कि यह प्रवचन कितने बजे का है। फिर प्रायः उस प्रवचन नाम (विषय) भी लिखा हुआ रहता है। इण्टरनेट पर,ऑनलाइन भी ऐसा क्रम लिखा हुआ है।
इस प्रकार समझकर हमें महापुरुषों की वाणी से लाभ लेना चाहिये और भविष्य में भी सबको लाभ मिलता रहे,इसके लिये संतोंकी वाणीको सुरक्षित रखना चाहिये। कोई काँट-छाँट करे तो उसको रोकना चाहिये। यह बङे भारी लाभ की बात है। संतवाणी से दुनियाँ का बङा भारी हित होता है। यह बहुत कीमती चीज है। हरेक इसकी कीमत नहीं समझता। जिन्होंने इससे लाभ लिया वो कुछ इस विषय में जानते हैं। अधिक जानकारी के लिये श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज की वाणी ध्यान से सुनें और समझें।
मिलने का पता - bit.ly/1satsang और bit.ly/1casett
http://dungrdasram.blogspot.com/2014/12/blog-post_30.html
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