||श्रीहरि:||
@कलियुगमें नामकी महिमा विशेष@
चहुँ जुग चहुँ श्रुति नाम प्रभाऊ ।
कलि बिसेषि नहिं आन उपाऊ ||
(रामचरितमा.१/२२)|
कलिजुग केवल हरि गुन गाहा ।
गावत नर पावहिं भव थाहा ॥
कलिजुग जोग न जग्य न ग्याना ।
एक अधार राम गुन गाना ॥
सब भरोस तजि जो भज रामहि ।
प्रेम समेत गाव गुन ग्रामहि ॥
सोइ भव तर कछु संसय नाहीं ।
नाम प्रताप प्रगट कलि माहीं ॥
कलि कर एक पुनीत प्रतापा ।
मानस पुन्य होहिं नहिं पापा ॥
दोहा
कलिजुग सम जुग आन नहिं जौं नर कर बिस्वास ।
गाइ राम गुन गन बिमलँ भव तर बिनहिं प्रयास ॥१०३ -क
(रामचरिमा.उत्तर० १०३)
@भजन करनेवाले पर कलियुगका प्रभाव नहीं पड़ता@
तामस बहुत रजोगुन थोरा । कलि प्रभाव बिरोध चहुँ ओरा ॥
बुध जुग धर्म जानि मन माहीं । तजि अधर्म रति धर्म कराहीं ॥
काल धर्म नहिं ब्यापहिं ताही । रघुपति चरन प्रीति अति जाही ॥
नट कृत बिकट कपट खगराया । नट सेवकहि न ब्यापइ माया ॥
दोहा
हरि माया कृत दोष गुन बिनु हरि भजन न जाहिं ।
भजिअ राम तजि काम सब अस बिचारि मन माहिं ॥१०४ -क
(रामचरितमा.७/१०४)|
@अन्त समयमें समझानेका प्रभाव@
प्रान कंठगत भयउ भुआलू । मनि बिहीन जनु ब्याकुल ब्यालू ॥
इद्रीं सकल बिकल भइँ भारी । जनु सर सरसिज बनु बिनु बारी ॥
कौसल्याँ नृपु दीख मलाना । रबिकुल रबि अँथयउ जियँ जाना।
उर धरि धीर राम महतारी । बोली बचन समय अनुसारी ॥
नाथ समुझि मन करिअ बिचारू । राम बियोग पयोधि अपारू ॥
करनधार तुम्ह अवध जहाजू । चढ़ेउ सकल प्रिय पथिक समाजू ॥
धीरजु धरिअ त पाइअ पारू । नाहिं त बूड़िहि सबु परिवारू ॥
जौं जियँ धरिअ बिनय पिय मोरी । रामु लखनु सिय मिलहिं बहोरी ॥
दोहा
प्रिया बचन मृदु सुनत नृपु चितयउ आँखि उघारि।
तलफत मीन मलीन जनु सींचत सीतल बारि ॥१५४॥
चौपाला
धरि धीरजु उठी बैठ भुआलू । कहु सुमंत्र कहँ राम कृपालू ॥
कहाँ लखनु कहँ रामु सनेही । कहँ प्रिय पुत्रबधू बैदेही ॥
(रामचरितमा.२/१५४)|
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