शनिवार, 13 दिसंबर 2014

सुभाषित राममचरितमानसमें|

                          ||श्रीहरि:||

@कलियुगमें नामकी महिमा विशेष@

चहुँ जुग चहुँ श्रुति नाम प्रभाऊ । 
कलि बिसेषि नहिं आन उपाऊ ||

(रामचरितमा.१/२२)|

कलिजुग केवल हरि गुन गाहा ।
गावत नर पावहिं भव थाहा ॥

कलिजुग जोग न जग्य न ग्याना ।
एक अधार राम गुन गाना ॥

सब भरोस तजि जो भज रामहि ।
प्रेम समेत गाव गुन ग्रामहि ॥

सोइ भव तर कछु संसय नाहीं ।
नाम प्रताप प्रगट कलि माहीं ॥

कलि कर एक पुनीत प्रतापा ।
मानस पुन्य होहिं नहिं पापा ॥

दोहा

कलिजुग सम जुग आन नहिं जौं नर कर बिस्वास ।

गाइ राम गुन गन बिमलँ भव तर बिनहिं प्रयास ॥१०३ -क

(रामचरिमा.उत्तर० १०३)

@भजन करनेवाले पर कलियुगका प्रभाव नहीं पड़ता@

तामस बहुत रजोगुन थोरा । कलि प्रभाव बिरोध चहुँ ओरा ॥

बुध जुग धर्म जानि मन माहीं । तजि अधर्म रति धर्म कराहीं ॥

काल धर्म नहिं ब्यापहिं ताही । रघुपति चरन प्रीति अति जाही ॥

नट कृत बिकट कपट खगराया । नट सेवकहि न ब्यापइ माया ॥

दोहा

हरि माया कृत दोष गुन बिनु हरि भजन न जाहिं ।

भजिअ राम तजि काम सब अस बिचारि मन माहिं ॥१०४ -क

(रामचरितमा.७/१०४)| 

@अन्त समयमें समझानेका प्रभाव@

प्रान कंठगत भयउ भुआलू । मनि बिहीन जनु ब्याकुल ब्यालू ॥
इद्रीं सकल बिकल भइँ भारी । जनु सर सरसिज बनु बिनु बारी ॥
कौसल्याँ नृपु दीख मलाना । रबिकुल रबि अँथयउ जियँ जाना।
उर धरि धीर राम महतारी । बोली बचन समय अनुसारी ॥
नाथ समुझि मन करिअ बिचारू । राम बियोग पयोधि अपारू ॥
करनधार तुम्ह अवध जहाजू । चढ़ेउ सकल प्रिय पथिक समाजू ॥
धीरजु धरिअ त पाइअ पारू । नाहिं त बूड़िहि सबु परिवारू ॥
जौं जियँ धरिअ बिनय पिय मोरी । रामु लखनु सिय मिलहिं बहोरी ॥
दोहा

प्रिया बचन मृदु सुनत नृपु चितयउ आँखि उघारि।
तलफत मीन मलीन जनु सींचत सीतल बारि ॥१५४॥

चौपाला

धरि धीरजु उठी बैठ भुआलू । कहु सुमंत्र कहँ राम कृपालू ॥
कहाँ लखनु कहँ रामु सनेही । कहँ प्रिय पुत्रबधू बैदेही ॥

(रामचरितमा.२/१५४)|

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