।।श्रीहरि:।।
गीता
"साधक-संजीवनी परिशिष्ट"।
लेखक-
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराज'।
'श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'ने गीता पर टीका-'साधक-संजीवनी' लिख दी और वो पुस्तकरूपमें प्रकाशित भी हो गयी।
उसके बादमें भी महाराजजीके मनमें गीताजीके बड़े विलक्षण और नये-नये भाव आते रहे।
तब गीताजीके सातवें अध्याय पर नये भावोंकी व्याख्या लिखकर पुस्तकरूपमें प्रकाशित की गयी।लेकिन नये-नये भाव तो और भी आने लग गये।
तब गीताजीके अठारहों अध्यायों पर गीताजीकी नयी व्याख्या लिखकर प्रकाशित की गयी,जिसका नाम था-"साधक-संजीवनी परिशिष्ट"।इसमें गीताजीका अर्थ पदच्छेद और अन्वय सहित दिया गया है।
इसमें ऐसे-ऐसे भाव थे कि जो 'साधक-संजीवनी'में नहीं आये।
तब आवश्यक समझकर वो भाव ('साधक-संजीवनी परिशिष्ट') 'साधक-संजीवनी'में जोड़ दिये गये।इसके बाद 'साधक-संजीवनी' पर यह लिखा जाने लगा-साधक-संजीवनी (परिशिष्ट सहित)।
{जिनके पास पुरानी साधक-है,उनको चाहिये कि यह नयी वाली साधक-संजीवनी (परिशिष्ट सहित) वाली भी लेकर पढें}।
इसके बाद भी गीताजीके और नये भाव आये,वो "गीता-प्रबोधनी"में लिखे गये।फिर भी नये-नये भाव तो आते ही रहे।…
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पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
http://dungrdasram.blogspot.com/
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