गुरुवार, 16 जनवरी 2014

÷सूक्ति-प्रकाश÷ (श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई कहावतें आदि). सूक्ति-संख्या ३१- ४० तक.

                                              ||श्री हरिः||

                                        ÷सूक्ति-प्रकाश÷

(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई कहावतें आदि). सूक्ति-संख्या ३१- ४० तक.

सूक्ति-३१.
साध सरावै सो सती जती जोखिता जाण |
'रज्जब' साँचै सूरका बैरी करत बखाण ||
शब्दार्थ- सती(पतिव्रता,सदाचारिणी).जती(ब्रह्मचारी,सदाचारी).जोखिता(योषिता-स्त्री).

सूक्ति-३२.
बरसारो रिपु बायरो बाह्मणरो रिपु भाण्ड |
भाण्डरो रिपु साध है साधूरो रिपु राँड ||
शब्दार्थ- रिपु(शत्रु,जिससे नुक्सान होता हो,बर्बाद करनेवाला,बेमेल).

सूक्ति-३३.
साधाँ सेती प्रीतड़ी परनारी सूँ हँसबो |
दौ-दौ बाताँ बणै नहीं आटो खाबो भुसबो ||

सूक्ति-३४.
साधाँ सेती प्रीत पळे तो पाळिये |
राम भजनमें देह गळे तो गाळिये ||

सूक्ति-३५.
सत्य बचन आधीनता परतिय मातु समान |
एतै पर हरि ना मिलै (तो) तुलसीदास जमान ||
शब्दार्थ- आधीनता(शरणागति). जमान(जमानत,जिसकी जमानत चलती हो,जिम्मेदारी लेनेवाला).

सूक्ति-३६.
भला घराँमें भूख चौराँरे घर चूरमा |
चतुराननरी चूक चौड़ै दीखे 'चकरिया' ||
शब्दार्थ- चतुरानन(ब्रह्माजी).

सूक्ति-३७.
भिणिया माँगै भीख अणभिणिया घोड़ै चढै |
आ ही गुराँरी सीख भाई बन्दाँ! भिणज्यो मति ||
शब्दार्थ- अणभिणिया(अनपढ).

सूक्ति-३८.
पल-पलमें करे प्यार(रे) पल-पलमें पलटै परा |
लाँणत याँरे लार(रे) रजी उड़ावो राजिया ||
शब्दार्थ- लाँणत(धिक्कार). रजी(धूल).

सूक्ति-३९.
कूड़ा निलज कपूत हिंयाफूट ढाँडा असल |
इसड़ा पूत कपूत राँडाँ जिणै क्यों राजिया ||
शब्दार्थ- हिंयाफूट(मूढ,बिना सद्बुध्दिवाला,असंयमी, हिंयौ हुवै हाथ कुसंगी मिलौ किता|
चन्दन भुजँगाँ साथ काळो न लागै …(? ). ढाँडा(पशु).

सूक्ति-४०.
रोजीनारी राड़ आपसरी आछी नहीं |
बणै जठै तक बाड़ चटपट कीजै चकरिया ||
शब्दार्थ- राड़(लड़ाई,खटपट,कहासुनी).

÷सूक्ति-प्रकाश÷ (श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई कहावतें आदि).सूक्ति-संख्या २१-३० तक.


÷सूक्ति-प्रकाश÷ (श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई कहावतें आदि). सूक्ति-संख्या २१-३० तक.

                         ||श्री हरिः||
सूक्ति-२१.
बैरागी,अर बान्दरा बूढापैमें बिगड़ै (है).

सूक्ति-२२.
बैरागी अर बावरी मत कीजै करतार|
यो नितरा बाँधे गूदड़ा वो नित हिरणाँरे लार||

सूक्ति-२४.
साधू होणो सोरो भाई दोरो होणो दास|
गाडर आणी ऊनणै ऊभी चरै कपास||
भावार्थ-
साधू वेष धारण करके साधू हो जाना तो सुगम है,पर दास होना कठिन है अर्थात् जैसे दास(सांसारिक नौकर) मेहनत करके सेवा करता है,अभिमान छोड़ता है,नीचा(छोटा) बनकर मालिकका काम करता है,मालिकके परिवारका भी मालिककी तरह आदर करता है,आराम छोड़कर,सबकी सेवा करके उनको सुखी करता है,फिर भी एहसान नहीं जताता और न चाहता है,वो एहसान नहीं माने तो भी अपना स्वार्थ(वेतन) समझ कर सेवा करता ही रहता है,अपमान भी सहता है,खाने-पीनेकी परवाह न करता हुआ परिवारसे दूर रहकर रात-दिन कमाई करता है और कमाईको भी अपने पास नहीं रखता आदि आदि| वो सांसारिक दास इस प्रकार जैसे परिवारके लिये करता है;इसी प्रकार पारमार्थिक दास(भगवानका भक्त या मुक्ति चाहनेवाला) भगवानके लिये करता है या मुक्तिके लिये करता है | अगर ऐसा नहीं है तो दशा उस गाडर(भेड़)वालेकी तरह है | जैसे कोई नफा चाहनेवाला भेड़से ऊन काटनेके लिये भेड़को घर पर लावे और ऊन काटे नहीं:अब वो भेड़ उसके रूईके लिये जो कपास था,उसको ही खा रही है;वो लाया तो इसलिये था कि नई कमाई हो जाय,परन्तु भेड़ पहलेकी की हुई कमाई(कपास) खा रही है;इसी प्रकार साधू होते तो नई कमाई(परमात्मा) के लिये हैं;परन्तु दासकी तरह काम(कर्तव्य) नहीं करे,तो पहलेकी कमाई भी खान-पान और आराममें चली जाती है;नई कमाई तो की नहीं और पुरानी थी वो भी गई|इसलिये कहा गया कि साधू होना तो सुगम है,पर दास होना कठिन है|

सूक्ति-२५.
कह,बाबाजी! संसार कैसा(है)? कह,बेटा! आप(स्वयं) जैसा.
(स्वयं अच्छा है तो संसार भी उसके लिये अच्छा है,स्वयं बुरा है तो संसार भी बुरा है).

सूक्ति-२६.
सब जग ईश्वररूप है भलौ बुरौ नहिं कोय|
जाकी जैसी भावना तैसो ही फल होय||

सूक्ति-२७.
तन कर मन कर बचन कर देत न काहुहि दुक्ख|
तुलसी पातक झरत(झड़त) है देखत उसके मुक्ख||

सूक्ति-२८.
साध रामरा पौळिया साध रामरा पूत|
साध न होता रामरा राम जातो अऊत||(जातो राम अऊत).
शब्दार्थ- अऊत(जिसके पीछे वंशमें कोई न रहा हो,बिना औलादका).

सूक्ति-२९.
सोता साधु जगाइये ऊठ जपै हरि जाप|
ये सूता नहिं छेड़िये सिंघ संसारी साँप||
(सोता साधु जगाइये ऊठ जपै हरि नाम|
ये तीनों सोते भलै साकट सिंघ रु साँप||).

सूक्ति-३०.
समय पधारै 'कूबजी' साध पावणा मेह|
अणआदर कीजै नहीं कीजै घणौं सनेह||

ज्ञान(बोध) हो जानेपर संसारका व्यवहार 'बाधितानुवृत्ति(कि 'यह नहीं है')'से होगा -परम श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज के दिनांक १९९३१०२६/०५.१८/बजे;के सत्संग-प्रवचनका अंश|

परम श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजने दिनांक
२६/१०/१९९३/०५.१८/बजे;के सत्संग-प्रवचनमें बताया कि

ज्ञान होनेपर सृष्टि लीन हो जाती है ;सृष्टिका फिर व्यवहार ['बाधितानुवृत्ति'से] होता है-'बाधितानुवृत्ति' कहते हैं इसको,शास्त्रमें 'बाधितानुवृत्ति'(कहते हैं). मानो,अनुवृत्ति* होती है पर बाधित होती है :जैसे मैंने बताया कि दर्पणमें मुख दीखता है,तो दीखता है पर बाधित है , 'बाधित'का अर्थ कि 'नहीं है'-ये साफ निश्चय पड़ा है ,'मृगतृष्णा'का जल दीखता है पर 'नहीं है'ऐसा होता है
सुपनेकी(स्वप्नकी) सृष्टि दीखती है ,पर जगनेपर वो नहीं है,ऐसे बाधा हो जावो 'बाधितानुवृत्ति'से संसारका व्यवहार
होता है,सत्यता बिल्कुल ऊठ जाती है मिट जाती है ;तो बोध होनेपर ऐसा होता है ;वो वास्तवमें साध्यज्ञान है |वो हमारे [लिये] ध्येय है,लक्ष्य है ;उस ज्ञानके लिये हमें चलना है ;वो जितना चलना है वो सब साधनज्ञान है ;ऐसे|'
तो साधनज्ञानका (आदर करना चहिये), आदर दैना चाहिये पहले आदर;वास्तवमें विवेक बढता कब है?कि विवेकका आदर दिया जाय(आदर किया जाय).
(विवेकको ज्यों-ज्यों  आदर दैंगे,त्यों-त्यों  विवेक  बढेगा);
परम श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज के दिनांक
१९९३१०२६/०५.१८/बजे;के सत्संग-प्रवचनका  अंश|
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* "अनुवृत्ति (Anuvritti)" के लिए हिन्दी अर्थ | Meaning of "अनुवृत्ति" in Hindi
एक बार कही या पढ़ी हुई चीज या बात फिर से कहना या दोहराना।व्याकरण में, किसी कथन में आया हुआ कोई अंश या पद परवर्ती कथन में फिर से ग्रहण करना या मानना।में माधव भी के साथ आया है माना गया है।

बुधवार, 15 जनवरी 2014

÷सूक्ति-प्रकाश÷ (श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई कहावतें आदि).सूक्ति-संख्या ११-२० तक.

                         ||श्री हरिः||      
    
                        ÷सूक्ति-प्रकाश÷

(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई कहावतें आदि) सूक्ति-संख्या ११-२० तक.

सूक्ति-११.
बोरड़ीरे चौर बँधियो देखि पिणियारी रोई|
थारे सगो लागे सोई?
म्हारे सगो लागे नीं सोई,
इणरे बापरो बहनोई म्हारे लागतो नणदोई.
(यह चौर उसका बेटा था ).

सूक्ति-१२.
रामजी घणदेवाळ है .
शब्दार्थ- घणदेवाळ(ज्यादा देनेवाले,सुख देते हैं तो एक साथ ही खूब दे देते हैं और दुख देते हैं तो भी एक साथ ज्यादा दे देते हैं.).

सूक्ति-१३.
गई तिथ बाह्मणही कोनि बाँचे.
शब्दार्थ-
तिथ(तिथि,दिन,).

सूक्ति-१४.
साँचे गुरुके लागूँ पाँय,झूठे गुरुकी मूँडूँ माय|| शब्दार्थ- मूँडूँ माय(माँ को मूँडूँ,शिष्या बनाऊँ).

सूक्ति-१५.
रैगो चाले रग्ग मग्ग,तीन माथा दस पग्ग.
(खेतमें बैलोंके द्वारा हल चलाता किसान).
शब्दार्थ-
रैगो(  ?). तीन माथा(तीन सिर,एक सिर तो किसानका और दौ बैलोंके-३ ). दस पग्ग(दस पैर,दौ पैर तो किसानके और आठ पैर दौनों बैलोंके-१०).

सूक्ति-१६.
गहलो गूंगो बावळो,तो भी चाकर रावळो.
शब्दार्थ- रावळो(आपका,मालिकका,राजमहलका).

सूक्ति-१७.
बाँदी तो बादशाहकी औरनकी सरदार.
शब्दार्थ- बाँदी(दासी).

सूक्ति-१८.
बाई! बिखमी बार जेज ऊपर कीजै नहीं|
शरणाई साधार कुण जग कहसी करनला!||
शब्दार्थ- बिखमी बार(संकटकी घड़ी).

सूक्ति- १९.
धोरे ऊपर बेलड़ी ऊगी थूळमथूळ|
पहले लागी काकड़ी पाछे लागो फूल||
(शायद लाँकीमूळा,जो धोरा-पठार पर फोग आदिकी जड़से पैदा होकर डण्डेकी तरह रेतके ऊपर निकलता है,उसके सब ओर पत्तियाँसी लगी रहती है,वो बादमें विकसित होती है,जिससे वो पुष्पकी तरह दीखता है).

सूक्ति-२०.
तन्त्री तार सुझाँझ पुनि जानु नगारा चार|
पञ्चम फूँकेते बजे शब्द सु पाँच प्रकार||

मंगलवार, 14 जनवरी 2014

कहावतें प्रकट होनेका इतिहास ( 'श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'के श्रीमुखसे सुनी हुई कहावतोंका कारण).

एक बारकी बात है कि मैंने(डुँगरदासने) 'परम श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'को 'राजस्थानी कहावतें'नामक पुस्तक दिखाई कि इसमें यह कहावत लिखि है,यह लिखि है,आदि आदि|
तब श्री महाराजजीने कुछ कहावतें बोलकर पूछा कि अमुक कहावत लिखी है क्या? अमुक  लिखी है क्या? आदि आदि:
देखने पर कुछ कहावतें तो मिल गई और कई कहावतें ऐसी थीं जो न तो उस पुस्तकमें थीं और न कभी सुननेमें ही आयी थीं | उन दिनों महाराजजीके श्री मुखसे सुनी हुई कई कहावतें लिख ली गई थीं और बादमें भी  ऐसा प्रयास रहा कि आपके श्रीमुखसे प्रकट हुई कहावतें,दोहे,सोरठे,छन्द,सवैया,कविता,साखी आदि लिखलें; उन दिनोंमें तो मारवाड़ी-कहावतोंकी मानो बाढ-सी आ गई थीं;कोई कहावत याद आती तो पूछ लेते कि यह कहावत लिखी है क्या ; इस प्रकार कई कहावतें लिखी गई| इसके सिवा श्री महाराजजीके सत्संग-प्रवचनोंमें भी कई कहावतें आई है|
महापुरुषोंके श्रीमुखसे प्रकट हुई सूक्तियोंका संग्रह एक जगह सुरक्षित हो जाय और दूसरे लोगोंको भी मिले-इस दृष्टिसे कुछ यहाँ संग्रह करके लिखी जा रही है;इसमें यह ध्यान रखा गया है कि जो सूक्ति श्री महाराजजीके श्रीमुखसे निकली है उसीको यहाँ लिखा जाय| कई सूक्तियोंके और शब्दोंके अर्थ समझमें न आनेके कारण श्री महाराजजीसे पूछ लिये थे,कुछ वो भी इसमें लिखे जा रहे हैं -

                         ||श्री हरिः||      
    
                        ÷सूक्ति-प्रकाश÷

(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई कहावतें आदि)

सूक्ति-०१.
[रातमें] दूजा सोवे,अर साधू पोवे |

सूक्ति-०२.
बेळाँरा बायोड़ा मोती नीपजे|
शब्दार्थ- बेळाँ(समय).

सूक्ति-३.
घेरा घाल्या नींदड़ी, अर भागण लागा अंग|
साधराम अब सो ज्यावो राँड बिगाड़्यो रंग||

सूक्ति-४.
खारियारे खारिया! (थारी) ठण्डी आवे लहर|
लकड़ाँ ऊपर लापसी (पण) पाणी खारो जहर||
शब्दार्थ- खारिया(एक गाँव),लकड़ाँ ऊपर लापसी(पीलू-पीलवाण,'जाळ' वृक्षके फल).

सूक्ति-५.
मौत चावे तो जा मकोळी,
हरसूँ मिले हाथरी होळी,
पीहीसी नहीं तो धोसी पाँव,
मरसी नहीं तो आसी(चढसी) ताव|
शब्दार्थ- मकोळी(एक गाँव,जिसका पानी भयंकर-बिराइजणा है,पीनेसे ऐसी शिथिलता आ जाती है कि मृत्यू भी हो सकती है.),हाथरी होळी(अर्थात् हाथकी बात).

सूक्ति-६.
घंट्याळी घोड़ घणाँ आहू घणा असवार|
चाखू चवड़ा झूँतड़ा पाणी घणो पड़ियाळ||
(यहाँ चार गाँवोंकी विशेषता बताई गई है)
शब्दार्थ-
झूँतड़ा(मकान).

सूक्ति-७.
गारबदेसर गाँवमें सब बाताँरो सुख|
ऊठ सँवारे देखिये मुरलीधरको मुख||
शब्दार्थ-मुरलीधर(भगवान).
सूक्ति-८.
आयो दरशण आपरै परा उतारण पाप|
लारे लिगतर लै गयो मुरलीधर माँ बाप!||
शब्दार्थ-
लिगतर(जूते).
कथा- एक चारण भाई इस मन्दिरमें दर्शनके लिये भीतर गये,पीछेसे कोई उनके पुराने जूते(लिगतर) लै गया.तब उन्होने मुरलीधर(सबके माता पिता) भगवानसे यह बात कहीं;इतनेमें किसीने नये जूते देते हुए कहा कि बारहठजी ! ये जूते पहनलो ; मानो भगवानने दुखी बालककी फरियाद सुनली |

सूक्ति-९.
कुबुध्द आई तब कूदिया दीजै किणने दोष|
आयर देख्यो ओसियाँ साठिको सौ कोस||

कथा- साठिका गाँवके एक जने(शायद माताजीके भक्त,एक चारण भाई)ने सोचा कि इस गाँवको छोड़कर ओसियाँ गाँवमें चले जायँ (जो सौ कोसकी तरह दूर था)तो ज्यादा लाभ हो जायेगा,परन्तु वहाँ जाने पर पहलेसे भी ज्यादा घाटा दीखा; तब अपनी कुमतिके कारण पछताते हुए यह बात कहीं .

सूक्ति-१०.
आप कमाया कामड़ा दीजै किणने दोष|
खोजेजीरी पालड़ी काँदे लीन्ही खोस||

कथा- पालड़ी गाँववाले ठाकुर साहबके यहाँ एक काँदा(प्याज) इतना बड़ा हुआ कि उन्होने उस काँदेको ले जाकर लोगोंके सामने ही दरबारके भेंट चढाया;सबको आश्चर्य आया कि पालड़ीमें इतना बड़ा काँदा पैदा हुआ है,लोग उस गाँवको 'काँदेवाली पालड़ी' कहने लग गये; इससे पहले उसका नाम था 'खोजेजीरी पालड़ी'|
अगर खोजोजी ऐसा नहीं करते तो उनका यही अपना नाम रहता;परन्तु अब किसको दोष दें|

सोमवार, 13 जनवरी 2014

सलाह,प्रमाण,सच्चाई

श्रध्देय श्री स्वामीजी महाराजका नाम हिन्दीमें लिखा जाय और 'श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके सत्संग-प्रवचनसे' या अमुक 'पुस्तक'से -अगर ऐसा लिखा जाय : तो आपका प्रयास सार्थक हो सकता है|इसमें सच्चाई भी है जो कि अत्यन्त आवश्यक है | महापुरुषोंकी तरफसे जो कुछ लिखा जाय,उसमें अत्यन्त सावधानी और सच्चाईकी जरुरत है | यह सलाह लिखना अभी अपना कर्तव्य लगा,इसलिये लिख दिया.
प्रणाम.सीताराम सीताराम.

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पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
http://dungrdasram.blogspot.com/

रविवार, 12 जनवरी 2014

गीताके अनुसार जीवन बनानेसे वास्तविक-लाभ- सेठजी श्री जयदयालजी गोयन्दका(- गीताप्रेसके संस्थापक,संरक्षक आदि सब कुछ)की 'व्यवहार सुधार और परमार्थ' नामक पुस्तकसे |

एक भाई कब्जसे बिमार था|वैद्यजीके पास गया,वैद्यजी पुस्तकमें वही प्रकरण देख रहे थे|हर्रेके सेवनसे पेटकी बिमारी दूर होती है|उसको देखकर बोले कि यह श्लोक तेरे लिये ठीक है,इस श्लोकके अनुसार साधन करो,तुम्हारी बिमारी मिट जायेगी|
कुछ दिन(के) बाद आकर वह बोला -महाराजजी! मेरी बिमारी नहीं मिटी,मैंने इसका बहुत सेवन किया|वैद्यजी बोले-कैसे सेवन किया? (उसने) कहा-रोज (उस श्लोकका)पाठ करता हूँ|वैद्यजी बोले-इसका अर्थ यह है,यह करो|
कुछ दिन(के) बाद (वह)फिर आया (और) बोला-अर्थसहित पाठ किया,(परन्तु) बिमारी नहीं मिटी|वैद्यजी बोले-इसका सेवन करो|सेवन करनेसे बिमारी मिट गयी|
यही बात गीता-पाठमें है|कोई मूल पाठ करता है,कोई अर्थसहित पाठ करता है,कोई सेवन करता है|सेवन करनेवाला ही उत्तम है|केवल पाठ करना भी उत्तम ,किन्तु गीताके अनुसार जीवन -आचरण बनाना सबसे  उत्तम है|
(गीताप्रेसके संस्थापक,संरक्षक,श्रध्देय सेठजी श्री जयदयालजी गोयन्दकाकी 'व्यवहार सुधार और परमार्थ' पुस्तकसे)|