शनिवार, 20 सितंबर 2014

सुख भोगनेवाला अपना ही पुण्य खर्च करता है।

सूक्ति-
४४४-

खा गुड़ तेरा ही |

घटना-

एक ठाकुर रातमें चुपकेसे एक बनियेकी दुकानसे गुड़ लै आया और सुबह जाकर उसी बनियेसे बोला कि लौ सेठसाहब! गुड़ मौल लेलो।बनियेने परीक्षा के बहाने गुड़ चखते हुए एक डली उसमेंसे उठाकर खायी और इस प्रकार चखनेके बहाने वो बनिया गुड़ खाता जा रहा था। तब वो ठाकुर कहने लगा कि खा गुड़ तेरा ही-गुड़ खाता जा भले ही,  यह है तो तेरा ही। अर्थात् मेरेको तो जितना मूल्य (पैसा) मिलेगा, वो मुफ्तमें ही मिलेगा। मेरे घरसे क्या जायेगा? सेठ अपनी जानकारीमें दूसरोंका गुड़ खा कर मुफ्तमें लाभ लै रहा है और गुड़को खा कर उसका वजन  भी कम कर रहा है जिससे पैसे भी ज्यादा देने नहीं पड़ें,बच जायँ:परन्तु यह खर्चा भी उसीका हो रहा है।इसी प्रकार जब किसीको कोई चीज मुफ्तमें मिलती है तो वो राजी होकर उसका खूब उपभोग करता है; परन्तु यह भी है तो उसीका।उसको पहले किये हुए पुण्य-कर्मोंके फलस्वरूप वो चीज मिली है।वो जितना उपभोग करेगा,सुख भौगेगा,उतना पुण्यखर्च उसीका होगा।

७५१ सूक्तियोंका पता-
------------------------------------------------------------------------------------------------

सूक्ति-प्रकाश.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजके
श्रीमुखसे सुनी हुई कहावतें आदि
(सूक्ति सं.१ से ७५१ तक)। http://dungrdasram.blogspot.com/2014/09/1-751_33.html

काजीजीकी कुतिया।

सूक्ति-
३५७-

[औ संसार तो ]

काजीजीरी कुत्ती है |

घटना-

एक काजीजी थे | उनके एक कुतिया थीं | एक दिन वो मर गयी तो लोग बैठनेके लिये आये कि आपकी कुतिया मर गयी और जब काजीजी मर गये ,तो कोई नहीं आया | जब काजीजी थे , उनके पासमें अधिकार था , तब स्वार्थ सधनेकी आशासे कुतियाकी मौतके लिये भी शौक जताया,सहानुभूति दिखायी और अब काजीजी मर गये तो स्वार्थ सधनेकी आशा नहीं रही | अब आनेसे क्या फायदा? ऐसे ही संसारके स्वार्थी लोग हैं | पासमें कुछ होता है , तब तक तो मतलब रखते हैं और जब पासमें कुछ नहीं होता तब कोई मतलब नहीं रखते |

७५१ सूक्तियोंका पता-
------------------------------------------------------------------------------------------------

सूक्ति-प्रकाश.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजके
श्रीमुखसे सुनी हुई कहावतें आदि
(सूक्ति सं.१ से ७५१ तक)। http://dungrdasram.blogspot.com/2014/09/1-751_33.html

दु:ख मिटानेकी विद्या।


सूक्ति-
३०१-

पहले जैसो मन करले भाया |
रज्जब रस्सा मूँजका पाया , न पाया ||

घटना-

एक बार संत रज्जबजी महाराज कहींसे आ रहे थे | मार्गमें एक मुञ्जका रस्सा पड़ा था जो किसी गाड़ीवानकी गाड़ीसे गिर गया होगा | रज्जबजी महाराजने सोचा कि इसको उठाकर लै चलें ; गाड़ीवाला मिल गया तो उसको दे-देंगे ; नहीं तो कपड़े ही फैलायेंगे (सुखायेंगे) | इस प्रकार रस्सा उठाकर कन्धे पर रख लिया और भजन करते हुए चलने लगे | भजनकी मस्तीमें रस्सा खिसकते-खिसकते नीचे गिर गया | बादमें पता लगा कि रस्सा तो गिर गया | रस्सेका गिरना मनको अच्छा नहीं लगा | तब वो बोले कि हे भाई ! रस्सा मिलनेसे पहले जैसा मन था , वैसा करले | यह समझले कि मूँजके रस्सेका  मिलना न मिलना ही था | पहले रस्सा था नहीं , आखिरमें रस्सा रहा नहीं | बीचमें आया और बीचमें ही चला गया ; इसमें तुम्हारा क्या गया ? |
(यह युक्ति कोई सब जगह लगालें , तो कितनी मौज हो जाय ) |

७५१ सूक्तियोंका पता-
------------------------------------------------------------------------------------------------

सूक्ति-प्रकाश.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजके
श्रीमुखसे सुनी हुई कहावतें आदि
(सूक्ति सं.१ से ७५१ तक)। http://dungrdasram.blogspot.com/2014/09/1-751_33.html

मुक्ति पाँच कोश ही दूर रह गई है।

मुक्ति पाँच कोश ही दूर रह गई है-

सूक्ति-
२८७-

मिनखा देही जब मिली पाँच कोश रह्यो पंथ |
लख चौरासी माँयनें अन्तर पड़ै अनन्त ||

सहायता-

मनष्य शरीर मिल गया तो अब मुक्ति पाँच कोश ही दूर रह गई है , पाँच कोश पार करते ही मुक्ति मिल जायेगी ; नहीं तो चौरासी लाख योनियोंमें मुक्ति इतने कोश दूर हो जायेगी कि जिसकी गिनती नहीं कर सकते , अनन्त कोश दूर रह जायेगी |

पाँच कोश-

अन्नमय कोश (पाँच तत्त्वोंका स्थूल शरीर ) , प्राणमय  कोश (पाँचप्राण ) , मनोमय कोश (मन ) , विज्ञानमय कोश (बुध्दि ) ,आनन्दमय कोश (अज्ञान , कारण शरीर  , आदत , प्रकृति ) |

पाँच कोशोंका विस्तृत वर्णन

गीता 'साधक-संजीवनी'

(लेखक-
श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)

के तेरहवें अध्यायके पहले श्लोककी व्याख्या (१३/१ )में देखें |

७५१ सूक्तियोंका पता-
------------------------------------------------------------------------------------------------

सूक्ति-प्रकाश.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजके
श्रीमुखसे सुनी हुई कहावतें आदि
(सूक्ति सं.१ से ७५१ तक)। http://dungrdasram.blogspot.com/2014/09/1-751_33.html

बूढोंका बुध्दि और आवश्यकता तथा महत्त्व।


सूक्ति-
२२७-

टाबरिया घर बसावै ,
तो बाबो बूढी क्यूँ लावै |

सूक्ति-
२२८-

बूढा भाथड़ै घालीजै |

शब्दार्थ-
भाथड़ै (भाथड़ा , चमड़ेका बना हुआ एक बड़ा थैला)

कथा-

एक बारात जानेवाली थी , उसमें सब युवा लोग थे | उनका विचार था कि सब जनान-जवान ही जायेंगे , बूढोंको नहीं लै जायेंगे  , (बूढे तो बेकार होते हैं , बूढे काम नहीं सकते, काम तो जवान लोग ही कर सकते हैं , बूढोंकी क्या जरूरत है, ये तो व्यर्थमें जगह रोकते हैं | कोई काम करना होता है तो उलटे उसमें ये टाँग अड़ाते हैं , काम सफल होने नहीं देते , हुक्म चलाते हैं , काम तो होता नहीं इनसे आदि आदि) |

एक समझदार वृध्दने सोचा कि बारातमें कोई वृध्द आदमी नहीं है ,कोई जरूरी काम पड़ गया तो कैसे होगा  ये सब जवान हैं ,इनमें उत्साह और ताकत तो है ,परन्तु अनुभव नहीं है ,  समझ नहीं है | इसलिये एक वृध्द को साथमें जाना चाहिये | उसने एक युवाको पटाया और सामानकी तरह थैलेमें डालकर उस वृध्दको साथमें रख लिया गया |

बारात जब ससुराल पहुँची तो देखा गया कि सब जवान ही जवान हैं ,साथमें किसी वृध्दको नहीं लाये हैं , वृध्दोंकी आवश्यकता नहीं समझी गयी है , ये अपनेको बलवान और बुध्दिमान समझते हैं कि कोई भी काम होगा तो हम कर लेंगे , बूढोंकी क्या जरूरत है ? आदि आदि |
इन 'जवान लोगोंमें समझ कितनीक है ' यह सामने लानेके लिये ससुरालवालोंने एक युक्ति रची | वो बोले - आप किसी बूढे-बड़ैरेको नहीं लाये ? जवाब मिला-   बूढोंकी क्या जरूरत है , कोई काम हो तो हमको बताओना ! हम करेंगे | तब एक तलाई दिखाकर वो बोले कि इस तलाईको दूधसे भरना है | विवाह बादमें करेंगे , पहले हमारी यह मांग पूरी करो | यह सुनकर सब जवान असमञ्जसमें पड़ गये कि अब क्या करें ? तलाईको दूधसे भरना सम्भव है नहीं और बिना भरे विवाहकी बारी ही नहीं आयेगी और अगर विवाह नहीं हुआ तो वापस कौनसा मुँह लेकर जायेंगे | अगर बूढे लोगोंने पूछ लिया कि आप जवान लोग तो सब काम कर सकते हो , फिर विवाह क्यों नहीं करा सके ? तो उनको क्या उत्तर दैंगे ? आदि आदि | किसी भी जवानको समझमें नहीं आ रहा था कि अब क्या करना चाहिये |
अभी तक किसीको पता नहीं था कि हमारे साथ एक वृध्द हैं | इस बातको एक जवान ही जानता था | अब उस जवानके मनमें आया कि क्यों नहीं उस बूढेसे ही पूछलें कि अब क्या करें ? उसने जाकर परिस्थिति जनायी और पूछा कि अब क्या करें , बड़ी समस्या आ गई है | तब उस वृध्दने युक्ति बतायी कि इन लोगोंसे कहो कि आपकी माँग हमें मंजूर है , हम तलाईको दूधसे भर रहे हैं ; पहले आप इसको जल्दी ही खाली करो | यह सुनकर वो समझ गये कि इनके साथमें कोई वृध्द हैं |
रहस्य खुलने पर सबको यह समझमें आया कि वृध्दोंकी कितनी आवश्यकता होती है | बारातके सारे के सारे जवान जिस कामको नहीं कर पाये थे , उस कामको एक बूढेने कर दिया |  बूढेकी तरकीबसे उनको न तो दूधसे तलाई भरनी पड़ी और न इज्जत गँवानी पड़ी | तभी तो कहा जाता है कि बूढे भाथड़ै घाले जाते हैं |

७५१ सूक्तियोंका पता-
------------------------------------------------------------------------------------------------

सूक्ति-प्रकाश.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजके
श्रीमुखसे सुनी हुई कहावतें आदि
(सूक्ति सं.१ से ७५१ तक)। http://dungrdasram.blogspot.com/2014/09/1-751_33.html

शुक्रवार, 19 सितंबर 2014

झूठे ज्ञानी,पण्डित मानी (अपनेको जानकार माननेवाले)।


सूक्ति-
२०५-

जाणै लाल बुझक्कड़ और न जाणै कोय |
पगके चक्की बाँधिकै हिरणा कूदा होय ||

शब्दार्थ-
चक्की (चाकी , जिससे गेहूँ , बाजरी आदि पीसा जाता है ,घट्टी | - चक्कीका एक भाग , पुड़िया पैरके बाँधकर हरिण कूदा होगा) ।

कथा-

एक गाँवमें जानकार समझे जानेवाले एक सज्जन रहते थे | जिनको लोग लालबुझक्कड़ कहते थे | कोई बात समझमें नहीं आती तो लोग उनसे पूछते थे | वो भी पूरे जानकार न होते हुए भी लोगोंकी दृष्टिमें जानकार बने रहते थे | किसी बातका जवाब न आनेपर भी वो कुछ बनाकर कह देते थे |

एक बार वहाँ हाथीके पैरोंके निशान देखकर लोगोंने आश्चर्य  करते हुए पूछा कि ये इतने बड़े-बड़े पैरोंके निशान किसके हैं ? जब उनके पैर भी इतने बड़े हैं तो वो स्वयं कितना बड़ा होगा ? तब उन्होने कहा कि इस बातको हम (लालबुझक्कड़) जानते हैं , दूसरा कोई नहीं जानता | फिर उन्होने बताया-
लगता है कि पैरके चाकी (चक्कीका पुड़िया) बाँधकर कर कोई हरिण कूदा है -
जाणै लाल बुझक्कड़ और न जाणै कोय |
पगके चक्की बाँधिकै हिरणा कूदा होय ||

सूक्ति-
२०६-

सिर धुनिकै हँसिकै कह्यो कहूँ सो साँची मानियो |
लै गयौ सियानें रावण तिनकी यह सुरमादानियो ||

शब्दार्थ-
सुरमादानी (काजल रखनेकी वस्तु , डिब्बी , कुप्पी ,कूंपला ) |

कथा-

एक दिन लोगोंने जंगलमें एक घाणी और घाणीका लाठ (एक विशाल लकड़ी , जिसका एक छौर घाणीके लगा  रहता है और दूसरे छौरसे बैल घाणी चलाते हैं ) देखा | समझमें न आनेपर लोगोंने लालबुझक्कड़जीसे पूछा (जिनका परिचय ऊपर सूक्ति नं.२०५ में बताया गया है ) | तब उन्होने सिर धुनकर कि मैं हूँ तब आप लोगोंको बता देता हूँ , नहीं तो कौन बताता।
(अगर मैं नहीं रहा-मर गया ! तो आपलोगोंको कौन बतायेगा , आपकी क्या दशा होगी ?) फिर हँसकर कहने लगे कि मैं जौ कहूँगा , उसको आपलोग सत्य मानें | फिर उन्होने बताया कि जब सीताजीको वनमेंसे रावण हरण करके लंका लै गया था  , तब उनकी सुरमादानी यहाँ जंगलमें ही रह गयी थी | यह उन्ही सीताजीकी सुरमादानी है | (यहाँ लाठको सुरमा-अञ्जन आञ्जनेकी श्लाका समझना चाहिये ) |

७५१ सूक्तियोंका पता-
------------------------------------------------------------------------------------------------

सूक्ति-प्रकाश.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजके
श्रीमुखसे सुनी हुई कहावतें आदि
(सूक्ति सं.१ से ७५१ तक)। http://dungrdasram.blogspot.com/2014/09/1-751_33.html

भगवत्प्राप्तिका सीधा,सरल रास्ता।

सूक्ति-
१७३-

रब्बदा कि पाणाँ ?
इतै पट्टणा, अर इतै लाणाँ |

शब्दार्थ-
रब्ब (ईश्वर) ।

घटना-
एक पंजाबी संत (बुल्लेशाह) खेतमें क्यारीका काम कर रहे थे ,पहली क्यारीको रोककर दूसरी क्यारीमें जल ला रहे थे।
उस समय किसीने पूछा कि परमात्माकी प्राप्तिके लिये कौनसा उपाय करना चाहिये?
तब वो संत क्यारी और जलका ही उदाहरण देते हुए बोले कि परमात्माकी प्राप्तिके लिये कौनसी कठिनता है ! उनकी प्राप्तिके लिये अपनेको इधर(संसार) से  तो रोकना है और इधर(परमात्माकी तरफ)  लगाना है।

७५१ सूक्तियोंका पता-
------------------------------------------------------------------------------------------------

सूक्ति-प्रकाश.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजके
श्रीमुखसे सुनी हुई कहावतें आदि
(सूक्ति सं.१ से ७५१ तक)। http://dungrdasram.blogspot.com/2014/09/1-751_33.html