सूक्ति-
२०५-
जाणै लाल बुझक्कड़ और न जाणै कोय |
पगके चक्की बाँधिकै हिरणा कूदा होय ||
शब्दार्थ-
चक्की (चाकी , जिससे गेहूँ , बाजरी आदि पीसा जाता है ,घट्टी | - चक्कीका एक भाग , पुड़िया पैरके बाँधकर हरिण कूदा होगा) ।
कथा-
एक गाँवमें जानकार समझे जानेवाले एक सज्जन रहते थे | जिनको लोग लालबुझक्कड़ कहते थे | कोई बात समझमें नहीं आती तो लोग उनसे पूछते थे | वो भी पूरे जानकार न होते हुए भी लोगोंकी दृष्टिमें जानकार बने रहते थे | किसी बातका जवाब न आनेपर भी वो कुछ बनाकर कह देते थे |
एक बार वहाँ हाथीके पैरोंके निशान देखकर लोगोंने आश्चर्य करते हुए पूछा कि ये इतने बड़े-बड़े पैरोंके निशान किसके हैं ? जब उनके पैर भी इतने बड़े हैं तो वो स्वयं कितना बड़ा होगा ? तब उन्होने कहा कि इस बातको हम (लालबुझक्कड़) जानते हैं , दूसरा कोई नहीं जानता | फिर उन्होने बताया-
लगता है कि पैरके चाकी (चक्कीका पुड़िया) बाँधकर कर कोई हरिण कूदा है -
जाणै लाल बुझक्कड़ और न जाणै कोय |
पगके चक्की बाँधिकै हिरणा कूदा होय ||
सूक्ति-
२०६-
सिर धुनिकै हँसिकै कह्यो कहूँ सो साँची मानियो |
लै गयौ सियानें रावण तिनकी यह सुरमादानियो ||
शब्दार्थ-
सुरमादानी (काजल रखनेकी वस्तु , डिब्बी , कुप्पी ,कूंपला ) |
कथा-
एक दिन लोगोंने जंगलमें एक घाणी और घाणीका लाठ (एक विशाल लकड़ी , जिसका एक छौर घाणीके लगा रहता है और दूसरे छौरसे बैल घाणी चलाते हैं ) देखा | समझमें न आनेपर लोगोंने लालबुझक्कड़जीसे पूछा (जिनका परिचय ऊपर सूक्ति नं.२०५ में बताया गया है ) | तब उन्होने सिर धुनकर कि मैं हूँ तब आप लोगोंको बता देता हूँ , नहीं तो कौन बताता।
(अगर मैं नहीं रहा-मर गया ! तो आपलोगोंको कौन बतायेगा , आपकी क्या दशा होगी ?) फिर हँसकर कहने लगे कि मैं जौ कहूँगा , उसको आपलोग सत्य मानें | फिर उन्होने बताया कि जब सीताजीको वनमेंसे रावण हरण करके लंका लै गया था , तब उनकी सुरमादानी यहाँ जंगलमें ही रह गयी थी | यह उन्ही सीताजीकी सुरमादानी है | (यहाँ लाठको सुरमा-अञ्जन आञ्जनेकी श्लाका समझना चाहिये ) |
७५१ सूक्तियोंका पता-
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सूक्ति-प्रकाश.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजके
श्रीमुखसे सुनी हुई कहावतें आदि
(सूक्ति सं.१ से ७५१ तक)। http://dungrdasram.blogspot.com/2014/09/1-751_33.html
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