शनिवार, 20 सितंबर 2014

हनुमानजीसे ठगाई।


सूक्ति-
५६१-

कह ,
चढ़सी झकोई चाढ़सी |

कथा-

एक आदमी नरियलके पेड़ पर नरियलके फल लगे हुए देख कर उस पेड़ पर चढ गया।जब ऊपर पहुँचा तो वायुके कारण पेड़ हिला।जब पेड़ हिला तो उसका हृदय भी हिल उठा।वो नीचे गिरनेके डरसे बड़ा भयभीत हो गया और फलकी आशा छौड़ कर नीचे उतरनेकी चाहना करने लगा।हनुमानजी महाराजसे प्रार्थना करता है कि हे हनुमानजी महाराज! मुझे सकुशल नीचे उतारदो,मैं आपके सवामणि (पचास किलोका भोग) चढाऊँगा।श्री हनुमानजी महाराजकी कृपासे वो धीरे-धीरे नीचे उतरने लगा।
जब आधी दूर तक नीचे उतरा तो सोचा कि सवामणिका मैंने ज्यादा कह दिया,कम कहना चाहिये था।ऐसा विचार कर उसने आधा चढानेके लिये कहा कि सवामण तो नहीं,पच्चीस किलो चढा दूँगा।उससे नीचे आया तो और कम कर दिया।इस प्रकार वह ज्यों-ज्यों नीचे आता गया,त्यों-त्यों हनुमानजीके भोग(चढावे) को कम करता गया।जब दौ-चार हाथ ही ऊपर रहा,तो देखा कि अब तो अगर नहीं उतर पाये और गिर भी गये,तो भी मरेंगे नहीं।तब तो वो वहाँसे नीचे कूद गया और कूदता हुआ बोला कि अब तो जो चढेगा,वही चढायेगा अर्थात् जो इस पेड़ पर चढेगा,वही हनुमानजी महाराजके भौग चढायेगा। मैं तो अब न इस पेड़ पर दुबारा चढूँगा और न हनुमानजीके भौग चढाऊँगा,अब तो जो इस पेड़ पर चढेगा,वही चढायेगा।

इस प्रकार उसने हनुमानजीके साथ भी ठगाईका,स्वार्थका व्यवहार कर लिया,लेकिन कभी-कभी हनुमानजी महाराज भी ऐसे लोगोंकी कसर निकाल लेते हैं-

कथा-

एक पण्डितजी मन्दिरमें कथा कर रहे थे।उन दिनों मन्दिरमें एक सेठ आये और परिक्रमा करने लगे।सेठने सुना कि निजमन्दिरमें हनुमानजी महाराज और भगवानके आपसमें बातचीत हो रही है-

भगवान-
हनुमान!

हनुमानजी-
जी,प्रभो।हुक्म (फरमाइये)।

भगवान-
ये जो पण्डितजी कथा कर रहे हैं ना!

हनुमानजी-
जी,सरकार।

भगवान-
इन पण्डितजीके एक हजार रुपयेकी व्यवस्था करनी है।

हनुमानजी-
जी,सरकार,व्यवस्था हो जायेगी।

ये बातें सुनकर सेठने सौचा कि पण्डितजीके कथामें हजार रुपयोंकी भैंट (चढावा) आयेगी,हनुमानजी महाराज इनके एक हजार रुपये पैदा करायेंगे।अब अगर हम पाँचसौ रुपये देकर पण्डितजीसे यह भैंट पहले ही खरीदलें तो हमारे पाँचसौ रुपयोंका मुनाफा हो जायेगा। यह सौचकर सेठ पण्डितजीसे बोले कि पण्डितजी महाराज! ये लो पाँचसौ रुपये और आपकी कथामें जितनी भैंट आयेगी,वो सब हमारी।आपको अगर यह सौदा मँजूर हो तो ये पाँचसौ रुपये रखलो। पण्डितजीने सौचा कि पाँचसौ रुपयोंकी भैंट आना तो मुश्किल ही लग रही है और ये सेठ तो प्रत्यक्षमें पाँचसौ रुपये दे रहे हैं।प्रत्यक्षवाले रखना ही ठीक है।ऐसा सौचकर पण्डितजीने वो रुपये रख लिये कि हमें सौदा मँजूर है।अब जितनी भैंट-पूजा आवे,वो सब आपकी।सेठने भी यह बात स्वीकार करली।

समय आनेपर भैंटमें उतनी पैदा हुई नहीं।अब सेठ कहे, तो किससे कहे? सेठने हनुमानजीकी मूर्तिके मुक्केकी मारी कि आपने हजार रुपयोंकी व्यवस्था करनेके लिये भगवानके सामने हाँ भरी थी और व्यवस्था की नहीं? मुक्की हनुमानजीकी मूर्तिके लगते ही मूर्तिसे चिपक गई।अब सेठ बड़े परेशान हुए कि लोग क्या समझेंगे? रुपये भी गये और इज्जत भी जायेगी।अब क्या करें? इतनेमें सेठको हनुमानजी और भगवानकी बातचीत सुनायी पड़ने लग गई।सेठ सुनने लगे।

भगवान-
हनुमान!

हनुमानजी-
जी,सरकार।

भगवान-
पण्डितजीके हजार रुपयोंकी व्यवस्था हो गई? (या हो रही है?)

हनुमानजी-
जी,सरकार! पाँचसौ रुपयोंकी व्यवस्था तो हो गई और बाकी पाँचसौ रुपयोंकी व्यवस्थाके लिये अमुक सेठको पकड़ रखा है,वो बाकी पाँचसौ रुपये दे देंगे तब छौड़ देंगे और इस प्रकार पण्डितजीके हजार रुपयोंकी व्यवस्था हो जायेगी।

सेठने सौचा कि अब रुपये देनेमें ही भलाई है।सेठने हनुमानजी महाराजसे प्रार्थना की कि हे हनुमानजी महाराज! मेरा हाथ छौड़दो,रुपये दे दूँगा।सेठने रुपये देनेकी हाँ भरी,तब चिपका हुआ हाथ छूटा।

७५१ सूक्तियोंका पता-
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सूक्ति-प्रकाश.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजके
श्रीमुखसे सुनी हुई कहावतें आदि
(सूक्ति सं.१ से ७५१ तक)। http://dungrdasram.blogspot.com/2014/09/1-751_33.html

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