शनिवार, 20 सितंबर 2014

मुक्ति पाँच कोश ही दूर रह गई है।

मुक्ति पाँच कोश ही दूर रह गई है-

सूक्ति-
२८७-

मिनखा देही जब मिली पाँच कोश रह्यो पंथ |
लख चौरासी माँयनें अन्तर पड़ै अनन्त ||

सहायता-

मनष्य शरीर मिल गया तो अब मुक्ति पाँच कोश ही दूर रह गई है , पाँच कोश पार करते ही मुक्ति मिल जायेगी ; नहीं तो चौरासी लाख योनियोंमें मुक्ति इतने कोश दूर हो जायेगी कि जिसकी गिनती नहीं कर सकते , अनन्त कोश दूर रह जायेगी |

पाँच कोश-

अन्नमय कोश (पाँच तत्त्वोंका स्थूल शरीर ) , प्राणमय  कोश (पाँचप्राण ) , मनोमय कोश (मन ) , विज्ञानमय कोश (बुध्दि ) ,आनन्दमय कोश (अज्ञान , कारण शरीर  , आदत , प्रकृति ) |

पाँच कोशोंका विस्तृत वर्णन

गीता 'साधक-संजीवनी'

(लेखक-
श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)

के तेरहवें अध्यायके पहले श्लोककी व्याख्या (१३/१ )में देखें |

७५१ सूक्तियोंका पता-
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सूक्ति-प्रकाश.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजके
श्रीमुखसे सुनी हुई कहावतें आदि
(सूक्ति सं.१ से ७५१ तक)। http://dungrdasram.blogspot.com/2014/09/1-751_33.html

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