मुक्ति पाँच कोश ही दूर रह गई है-
सूक्ति-
२८७-
मिनखा देही जब मिली पाँच कोश रह्यो पंथ |
लख चौरासी माँयनें अन्तर पड़ै अनन्त ||
सहायता-
मनष्य शरीर मिल गया तो अब मुक्ति पाँच कोश ही दूर रह गई है , पाँच कोश पार करते ही मुक्ति मिल जायेगी ; नहीं तो चौरासी लाख योनियोंमें मुक्ति इतने कोश दूर हो जायेगी कि जिसकी गिनती नहीं कर सकते , अनन्त कोश दूर रह जायेगी |
पाँच कोश-
अन्नमय कोश (पाँच तत्त्वोंका स्थूल शरीर ) , प्राणमय कोश (पाँचप्राण ) , मनोमय कोश (मन ) , विज्ञानमय कोश (बुध्दि ) ,आनन्दमय कोश (अज्ञान , कारण शरीर , आदत , प्रकृति ) |
पाँच कोशोंका विस्तृत वर्णन
गीता 'साधक-संजीवनी'
(लेखक-
श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)
के तेरहवें अध्यायके पहले श्लोककी व्याख्या (१३/१ )में देखें |
७५१ सूक्तियोंका पता-
------------------------------------------------------------------------------------------------
सूक्ति-प्रकाश.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजके
श्रीमुखसे सुनी हुई कहावतें आदि
(सूक्ति सं.१ से ७५१ तक)। http://dungrdasram.blogspot.com/2014/09/1-751_33.html
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें