शनिवार, 20 सितंबर 2014

भगवानपर भरोसा और सनातन धर्मकी सर्वश्रेष्ठता।


सूक्ति-
४४६-

बधू ! तूँ जाणै छै |

घटना-

एक बार श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके सामने किसीने कहा कि महात्मा ईसाका सिध्दान्त (ईसाई धर्म)बड़ा ऊँचा था जो मारनेवालेके लिये भी उन्होने ईश्वरसे प्रार्थना की कि इसको सद्बुध्दि दो।

तब श्री स्वामीजी महाराज ( तेज होकर) बोले कि आप किसी भी धर्मकी श्रेष्ठ बात बतादो,मैं सनातन धर्ममें उससे भी श्रेष्ठ,ऊँची बात बता दूँगा।

(फिर बताया कि)

गुजराती भाषाकी एक पुस्तकमें एक संतोंका चरित्र लिखा है कि
कोई चौर चौरी करके दौड़े तो लोग उनके पीछे दौड़े।चौरोंने चौरीका माल एक संतकी कुटिया पर रखा और भाग कर कहीं छिप गये।संत उस समय भगवानके ध्यानमें लगे हुए थे,उन्होने चौरोंको देखा नहीं।वे इस विषयमें कुछ नहीं जानते थे।पीछेसे भागते हुए लोग आये और माल वहाँ पड़ा हुआ देखकर उन्होने उन संतोंको ही चौर समझा और लगे मारने-पीटने कि चौरी करके लै आया और अब यहाँ आकर साधू बना बैठा है।बिना कारण ही जब वो लोग पीटने लगे,मार पड़ने लगी,तो वो संत(ऊपरकी तरफ हाथ जौड़कर) भगवानसे कहने लगे कि बधू!  तूँ जाणै छै, बधू!  तू जाणै छै।
अर्थात् हे प्रभु!  आप जानते हो।मैंने अपनी जानकारीमें कोई अपराध तो किया नहीं और मार पड़ रही है तथा  बिना अपराधके मार पड़ती नहीं।इसलिये लगता है कि मेरे पहलेके कोई अपराध बने हुए हैं जिनको मैं जानता नहीं।अब कौनसे अपराधके कारण यह मार पड़ रही है-इसको मैं नहीं जानता प्रभु! आप जानते हो।
उन संतोंने चौरोंको अपराधी और दुर्बुध्दि नहीं माना तथा न भगवानको दोष दिया।उन्होने तो माना कि यह तो मेरे ही कोई कर्मोंका फल है।
बोलो,कितनी ऊँची बात है!
माहात्मा ईसाने सद्बुध्दि देनेकी प्रार्थना की तो उनको दुर्बुध्दि माना है ना!।ये संत ऐसा नहीं मानते हैं।
(ये तो ऐसा मान रहे हैं कि भगवानके राज्यमें जो हो रहा है, वो ठीक ही हो रहा है, बेठीक दीखनेवाला भी ठीक ही हो रहा  है।बेठीक हमको दीख रहा है, पर बेठीक है नहीं।हम जानते नहीं,भगवान जानते हैं आदि आदि)।

७५१ सूक्तियोंका पता-
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सूक्ति-प्रकाश.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजके
श्रीमुखसे सुनी हुई कहावतें आदि
(सूक्ति सं.१ से ७५१ तक)। http://dungrdasram.blogspot.com/2014/09/1-751_33.html

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