शनिवार, 20 सितंबर 2014

फूटी हँडिया।


सूक्ति-
५८७-

म्हारी हाँडी तो चढ़गी ।

कथा-

एक कुम्हारने शामको घर आकर घरवालीसे रोटी माँगी तो घरवाली बोली कि घरमें अन्न (बाजरी,गेहूँ आदि) नहीं है।तब कुम्हार अपनी घड़ी हुई एक हँडिया लेकर गाँवमें गया और उसके बदले अन्न लै आया और कुम्हारीने पीसकर रोटी [साग,कड़ी आदि] बनादी।सबने भोजन कर लिया।

कुम्हार जिसको हाँड़ी देकर अन्न लै आया था,दूसरे दिन वो आदमी मिला तो  बोला कि अरे यार यह क्या किया? कुम्हारने पूछा कि क्या किया? तब वो बोला कि तुम्हारी हाँड़ी तो चढी ही नहीं (फूटी हुई थी,चूल्हे पर चढाई तो आग और बुझ गई)।तब कुम्हार बोला कि (तुम्हारी हाँड़ी नहीं चढी होगी,)हमारी हाँड़ी तो चढ गई (भूखे बैठे थे,उस हाँड़ीके बदले अन्न मिल जानेसे हमारे घरकी हाँड़ी तो चढ गई,तुम्हारी नहीं चढी तो तुम जानो)।

(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज इस कहानीका उदाहरण देकर कहा करते थे कि हमने तो आपके हितकी बात कह कर अपनी हाँड़ी चढादी,अब आप काममें लाओ तो आपकी हाँड़ी भी चढ जाय।हमारी तो हाँड़ी चढ गई (हमारे कर्तव्यका पालन तो हो गया), अब आपकी हाँड़ी आप जानो।(काममें नहीं लाओ तो फूटी तुम्हारी, हम क्या करें)।

७५१ सूक्तियोंका पता-
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सूक्ति-प्रकाश.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजके
श्रीमुखसे सुनी हुई कहावतें आदि
(सूक्ति सं.१ से ७५१ तक)। http://dungrdasram.blogspot.com/2014/09/1-751_33.html

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