गुरुवार, 2 जनवरी 2014

'गीता-दर्पण' लेखक-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज (गीताजीका एक अद्वितीय शोधपूर्ण ग्रंथ) अवश्य पढना चाहिये |

'गीता-दर्पण' ग्रंथ कैसे प्रकट हुआ?  कि

परम श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज गीता 'साधक-संजीवनी'की भूमिका लिखवा रहे थे,वो भूमिका संकोच करते-करते भी ( कि पहले भी 'साधक-संजीवनी' इतना बड़ा पौथा हो गया,वैसे ही यह न हो जाय)इतनी बड़ी हो गयी कि अलगसे 'गीता-दर्पण'नामक ग्रंथ छपाना पड़ा;इसमें गीताजीके शोधपूर्ण १०८ लेख है और पूर्वार्ध्द तथा उत्तरार्ध्द-दो भागोंमें विभक्त है, किसी गीता-प्रेमी सज्जनको श्री महाराजजी यह 'गीता-दर्पण' ग्रंथ देकर फरमाते थे कि कमसे-कम इसकी विषय-सूची तो देखना;
गीताजीके इस अद्वितीय-ग्रंथको एक बार जरूर पढना चाहिये,इसमें और भी कई बातें हैं ||

यह ग्रंथ गीता-प्रेस गोरखपुरसे प्रकाशित हुआ है और इंटरनेट पर भी उपलब्ध है-
http://www.swamiramsukhdasji.org/

कर्ता और भोक्ता कौन है?(कि कोई नहीं है,केवल कल्पना है)-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज (दि. १९९५०५३१/८.३० और १९९५०६०१/८.३० बजेका सत्संग)|

                          ।।श्रीहरि:।।

कर्ता और भोक्ता कौन है?(कि कोई नहीं है,केवल कल्पना है)-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज (दि. १९९५०५३१/८.३० और १९९५०६०१/८.३० बजेका सत्संग)|

[दि.३१/५/१९९५|८.३०को
श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजने बताया कि कर्ता कौन है?और भोक्ता कौन है?

शरीर कर्ता है? प्राण कर्ता है? इन्द्रियाँ कर्ता हैं?मन कर्ता है? बुध्दि कर्ता है? अहंकार कर्ता है? स्वयं कर्ता है? कह, नहीं|

शरीर,प्राण,इन्द्रियाँ,मन,बुध्दि और अहंकार तो कर्ता हो नहीं सकते; (क्योंकि) ये तो जड़ हैं; ठहरते ही नहीं(प्रतिक्षण नष्ट हो रहे हैं) इनके पास समय ही नहीं है कर्ता-भोक्ता बननेका(अर्थात् ये कर्ता-भोक्ता नहीं हो सकते)|

तो स्वयं कर्ता है ? कह, नहीं; क्योकि स्वयं निर्विकार है,विकार है ही नहीं ,तो कर्ता कैसै बनेगा? भोक्ता कैसे बनेगा?(अर्थात् स्वयं कर्ता-भोक्ता नहीं है)|]

+
तो वास्वमें कर्ता-भोक्ता न जड़ है, न चेतन है|

तो जड़-चेतनकी ग्रंथि है,यह भोक्ता है?(कह,नहीं;क्योंकि)
जड़-चेतनकी ग्रंथि(गाँठ) होती (ही) नहीं ;अमावस्याकी रातका और दिनका गठबन्धन हो जायेगा? जड़-चेतनकी ग्रंथि मानी जायेगी ? तो कैसे भोक्ता होगी ?

+
कर्ता और भोक्ता अन्तःकरण है क्या ? ये तो करण(औजार) है,कर्ता नहीं है ;

तो भोक्ता कौन है ?(कि) 'पुरुषः प्रकृतिस्थ:' आप शरीरमें स्थित मानते हो
तो आप ही कर्ता-भोक्ता हो |

+
जब मन बुध्दि शरीर इन्द्रियाँ कर्ता नहीं है तो आप कर्ता हो क्या?
अगर आप कर्ता होगे
तो आपकी मुक्ति कभी नहीं होगी, सम्भव
ही नहीं होगी;क्योंकि 'नाभावो विद्यते
सतः'(गीता २/१६) सतका अभाव होता नहीं और आप
कर्ता हो तो कर्तापन कभी मिटेगा ही नहीं; तो आप
कर्ता नहीं हो |

+
तो कर्ता कौन है? अब ध्यान देना !
कर्ता है भोक्ता(प्रकृतिस्थ स्वयं)|

जो भोक्ता है वो कर्ता होता है क्योंकि सुख-भोगके लिये काम करता है -'अथ केन प्रयुक्तो$यं पापं चरति'? तो 'काम एषः क्रोध एषः'(गीता३/३६,३७) कामके वशीभूत होकर पाप करता है तो 'काम'है- 'भोग' ;सुख- अनुकूल मिले-वो 'भोग'हुआ,तो कर्ता कौन हुआ? भोक्ता हुआ कर्ता; कर्ता और भोक्ता एक (ही) है-'अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम्|' शुभ और अशुभ कर्म करोगे तो जरूर भोगना पड़ेगा तो भोक्ता होता है, वो कर्ता होता है और भोक्ता इन्द्रियाँ मन बुध्दि नहीं है,भोक्ता स्वयं बनते हो आप |

+
(प्रकृतिमें स्थित हुआ पुरुष ही भोक्ता है); जो भोक्ता होता है,वही कर्ता होता है और जो कर्ता होता है वही भोक्ता होता है -पुरुषःप्रकृतिस्थो हि भुड़्क्ते प्रकृतिजान्गुणान् |(गीता १३/२१)

+
सुखदुःखके भोगनेपनमें पुरुष हेतु होता है; अब प्रक्रियासे(आजकलके वेदान्तके ग्रंथोंके अनुसार) कहदो कि पुरुष भोक्ता नहीं होता तो (क्या) गीता झूठ कहती है?
'पुरुषः सुखदुःखानां भोक्तृत्वे हेतुः'(गीता १३/२०),भोक्ता नहीं बताती है,भोक्तापनमें हेतु होता है पुरुष (यह बताती है)|

कौन पुरुष होता है? (कि)'पुरुषः प्रकृतिस्थो हि भुड़्क्ते'(गीता१३/२१) प्रकृतिमें स्थित होता है तो पुरुष भोक्ता बनता है,वो भोक्ता खुद बनता है,कब? कि 'प्रकृतिस्थ' और 'प्रकृतिस्थ' नहीं रहता है तो ? 'सम दुःखसुखः स्वस्थ'(गीता १४/२४) 'स्व'में भोग नहीं है| स्वयं जो आपका सत्तारूप है वो भोक्ता थोड़े ही है!

ख्याल करना ! यह ठीक ठीक - असली ज्ञान है यह असली, आपका स्वरूप सत्ता है,होनापन है न ! -यह आपका स्वरूप है ;होनेपनमें सुखदुःख नहीं होता है ,न सुख होता है,न दुःख होता है,सत्ता है |तो प्रकृतिस्थ होते हो तब भोक्ता बनते हो …||

+
तो 'है' (सत्ता) भी 'कर्ता' नहीं है  और 'नहीं'(शरीर,प्राण,इन्द्रियाँ, मन,बुध्दि,अहंकार) भी 'कर्ता' नहीं है ; तो अब क्या करो आप ?

एक कृपा करके येह काम करो-
आप अपनेको 'नहीं'से भी हटालो
और 'है'से भी हटालो , तो भोक्ता रहेगा ही नहीं …

श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके
दि.३१/५/१९९५|८.३०|वाले सत्संग-प्रवचनसे लिये गये कुछ अंश |

'नहीं'से और 'है' से भी अपनेको हटालो।

इसका रहस्य 'श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'ने दूसरे दिन(1995/06/01.830 बजे)के 'प्रवचन'में समझाया है-

…अपनेको,'नहीं'से भी और 'है' से भी(हटालो),…'यह'से भी हटालो और 'है' से भी हटालो; क्योंकि 'है' में 'व्यक्तित्व' नहीं होता और 'वह' टिकता नहीं-होता नहीं;तो दौनोंसे हटालो।

तो फिर क्या रहेगा? फिर 'योग' रहेगा 'योग'।'भोग' नहीं रहेगा,'योग''(नित्ययोग') रहेगा।'योग' किसको कहते हैं?- 'समत्वं योग उच्यते', 'दुख संयोग वियोगं योग सञ्ज्ञितम्'।। (गीता २।४८;६।२३)।…

'नित्ययोग' क्या?
कि आपके साथ जो 'वियोग' मालुम देता है कि 'परमात्मा'के साथ हमारा 'वियोग' है-ऐसा जो अनुभव होता है,उसका कारण ,अहम' है।'मैंपन' है, यह है भेदका जनक-'मैंपन'।

…'है'से और 'यह'से उठा लेने पर, 'ज्ञान' है (ज्ञान रह गया) 'ज्ञानयोग'-'ज्ञान',तो 'ज्ञानयोग' रहा,'ज्ञानी' नहीं रहा, 'अहम' होनेसे 'ज्ञानी' रहता है।

अब 'ज्ञानी' नहीं रहा, 'ज्ञान' रहा।ऐसे ही 'प्रेमी' नहीं रहा 'प्रेम' रहा।'प्रभु'के साथ ही 'प्रेम' रहा।तो न 'योगी' रहा,न 'ज्ञानी' रहा,न 'प्रेमी' रहा।'ज्ञान' , 'योग' और 'प्रेम' रहा।अब 'प्रेम'  'ज्ञान'(और 'योग') रहा।

इसमें अगर थौड़ा भी 'अहम' लग जायगा,तो आप 'प्रेमी' हो जाओगे, 'ज्ञानी' हो जाओगे, 'योगी' हो जाओगे।

तो क्या (होगा कि) 'भोगी' हो जाओगे।'प्रेम'का 'भोगी' कभी 'राग'का 'भोगी' भी हो जायेगा और 'ज्ञान'का 'भोगी' 'अज्ञान'का 'भोगी' भी हो जायगा।…

अगर इसका 'भोगी' हो गया,अगर इसका 'अभिमानी' हो गया,तो एक 'व्यक्तित्व' आ जायगा (और वो आ गया) तो 'बन्धन' आ जायगा।

तो यह है नहीं,कल्पना किया हुआ है-'अहंकार विमूढात्मा कर्ता अहम् इति मन्यते'(गीता ३।२७)-यह माना हुआ है,इस वास्ते 'नैव किंचित्करोमीति युक्तो मन्येत्'(गीता ५।८)- 'मान्यता'से 'मान्यता'को हटादे।

ऐसा हो जायेगा,तो 'भेद' मिट जायगा, 'भिन्नता' भी मिट जायगी और 'कल्याण' भी हो जायेगा, 'मुक्ति' हो जायेगी, 'तत्त्वमें स्थिति' हो जायेगी।ये 'पूर्णता' हो जायेगी।

ऐसी 'पूर्णता' होनेपर भी,फिर भी 'एकता' नहीं हुई।फिर भी 'भेद' रहा। कहते (हैं कि) 'भेद' फिर क्या रहा? …

(फिर रहा 'सूक्ष्म अहंकार',जिससे 'मतभेद' पैदा होते हैं।

'वासुदेव:सर्वम्'(गीता ७।१९) हो जानेपर कोई 'भेद' नहीं रहता आदि आदि समझनेके लिये कृपया ये दौनों प्रवचन ध्यानसे सुनें और गम्भीरतासे विचार करें)।

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पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
http://dungrdasram.blogspot.com/

@गीता-व्याख्या@ (३५ कैसेटों वाली) व्याख्या करनेवाले और सुनानेवाले- श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज|

@गीता-व्याख्या@ (३५ कैसेटों वाली) व्याख्या करनेवाले और सुनानेवाले- श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी  महाराज
एक बार श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी  महाराजसे प्रार्थना की गयी कि गीताजीकी व्याख्या करके,अर्थ समझाकर ,विस्तारसे सत्संग-प्रवचनमें गीताजी सुनावें|तब उन्होने करीब पैंतीस दिनतक गीताजी समझाकर कहीं,जिसकी अभी(१४.८.२०१३)तक पुस्तक नहीं छपी है,उसकी रिकार्डिंग(१२४ फाइलोंमें) है|
वो गीता-व्याख्या यहाँ(इस पतेसे)से प्राप्त करें-
http://db.tt/C65YU58m

कामवृत्ति मिटानेके बारहसे ज्यादा उपाय-(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)।

                       ।।श्रीहरि:।।

काम-क्रोध आदि दोष मिटानेके अनेक उपाय-

(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)।

…एक तीसरा उपाय ऐसा है कि जिनके काम-क्रोध लोभ आदिक मिट गये हैं अथवा मिट रहे हैं,साधन कर रहा है,ऐसे पुरुष के पास रहनेसे बड़ा लाभ होता है, ये वृत्तियाँ शान्त होती है स्वतः ही स्वाभाविक ;वहाँ वृत्ति पैदा ही कम होती है,काम-क्रोध आदि वृत्ति पैदा ही नहीं होती;संगका बड़ा असर पड़ताहै और कामी और लोभीके पास (रहोगे)संग करो तो बड़े तेजीसे पैदा होंगे।

(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके दिनांक- १९९३१०२१/५.१८/बजेवालेे सत्संगका अश) ||

यह काम-नाशके उपायवाला प्रवचन इस पतेपर जाकर सुनें- https://db.tt/G7Hve1KQ

-इस प्रवचनमें श्री महाराजजीने काम वृत्ति मिटानेके एक दर्जनसे ज्यादा,बारहसे ज्यादा उपाय बताये हैं।

ये जो  कामवृत्ति मिटानेके उपाय बताये गये हैं,ये क्रोधवृत्ति मिटानेके भी उपाय हैं अर्थात् इन उपायोंसे काम मिटता है और क्रोध भी मिटता है।||

क्रोध कैसे मिटे?

इसके लिये श्रध्देय स्वामीजी रामसुखदासजी महाराजने इस
(19960204/1500 बजेके)  प्रवचनमें भी कई उपाय बताये हैं।वो भी सुनें।

यह क्रोध-नाशके उपायवाला प्रवचन इस पतेपर जाकर सुनें- https://db.tt/DbHHBcl2 और

लोभ-नाशके उपायवाला प्रवचन इस पतेपर जाकर सुनें- https://db.tt/D56GMblf ।

जो साधक अपने काम-क्रोध आदि दोष मिटाना चाहते हैं,उनके लिये ये उपाय बड़े कामके हैं।

गीताजीमें भगवान कहते हैं कि काम,क्रोध और लोभ ये-तीन नरकके दरवाजे हैं(इनके वशमें होनेवाले मनुष्य नरकोंको प्राप्त करते हैं) और इनसे छूटे हुए मनुष्य परमगतिको प्राप्त करते हैं।(गीता १६।२१,२२)।

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पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
http://dungrdasram.blogspot.com/

बुधवार, 1 जनवरी 2014

संतवाणीके काँट-छाँट,परिवर्तन करनेका अपराध न करें ,

एक बार किसी पत्रिकामें श्रीस्वामीजी(रामसुखदासजी) महाराजके लेखको कुछ संशोधन करके छापा गया।उस लेखको सुननेपर श्रीस्वामीजी महाराजको लगा कि इसमें किसीने संशोधन किया है,जिससे इसका जैसा असर होना चाहिये,वैसा असर दीख नहीं रहा है!तब श्रीस्वामीजी महाराजने एक पत्र लिखवाकर भेजा,जिसमें लिखा था कि 'आप हमारे लेखोंमें शब्दोंको बदलकर बङा भारी अनर्थ कर रहे हो;क्योंकि शब्दोंको बदलनेसे हमारे भावोंका नाश हो जाता है! इस विषयमें आपको अपने धर्मकी,अपने इष्टकी सौगन्ध है!'आदि। *
-संजीवनी-सुधासे(परम श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज द्वारा रचित 'साधक-संजीवनी' पर आधारित) प्राक्कथन ix से साभार
…………………………………………………………
*
1.यह बात उन दिनोंकी है कि जिन दिनोंमें गीता-दर्पण (लेखक-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज) का प्रकाशन ... हो रहा था (नाम लिखना बढिया नहीं रहेगा)।बादमें भी कई बार ऐसे अवसर आये हैं।
2.महापुरुषोंके शब्द बदलने नहीं चाहिये।अगर भावोंका खुलासा करना हो तो ब्रिकेट( ) या टिप्पणीमें करना चाहिये।और   यह स्पष्ट होना चाहिये कि ऐसा खुलासेके लिये किया गया।राम राम सीताराम।

■□मंगलाचरण□■ (-श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज)।

                       ॥श्रीहरिः॥

                ■□मंगलाचरण□■

(-श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज)।

यह मंगलाचरण
श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज

सत्संग-प्रवचन से पहले
(सत्संग के प्रारम्भ में)
किया करते थे--

पराकृतनमद्बन्धं
परं ब्रह्म नराकृति।
सौन्दर्यसार सर्वस्वं
वन्दे नन्दात्मजं महः॥

प्रपन्नपारिजाताय
तोत्त्रवेत्रैकपाणये।
ज्ञानमुद्राय कृष्णाय
गीतामृत दुहे नमः॥

वसुदेवसुतं देवं
कंस चाणूरमर्दनम्।
देवकी परमानन्दं
कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्॥

वंशीविभूषितकरान्नवनीरदाभात्
पीताम्बरादरुणबिम्बफलाधरोष्ठात्।
पूर्णेन्दुसुन्दरमुखादरविन्दनेत्रात्
कृष्णात्परंकिमपि तत्त्वमहं न जाने॥

हरिओम नमोऽस्तु परमात्मने नमः,
श्रीगोविन्दाय नमो नमः,
श्री गुरुचरणकमलेभ्यो नमः,
महात्मभ्यो नमः,
सर्वेभ्यो नमो नमः,

नारायण नारायण
नारायण नारायण

http://dungrdasram.blogspot.com

दौ सार बातें-दूसरोंका हित करना और परमात्माको याद करना|

दौ सार बातें-
…तो मनुष्यपना दौ बातसे ही होता है-
एक(१) तो दूसरोंका हित करे|
एक(२) परमात्माको याद करे ||
-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके १९९३१०२२/५.१८/ बजेके प्रवचनसे