राधे राधे
इस जगतमें अगर संत-महात्मा नहीं होते, तो मैं समझता हूँ कि बिलकुल अन्धेरा रहता अन्धेरा(अज्ञान)। श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजीमहाराज की वाणी (06- "Bhakt aur Bhagwan-1" नामक प्रवचन) से...
मंगलवार, 3 जून 2014
शुक्रवार, 30 मई 2014
मंगलवार, 27 मई 2014
सत्संग-यात्रासे लोगोंको आश्चर्य (-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके सत्संग-प्रवचनसे) ।
एक बार श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज सत्संग-प्रोग्रामके लिये आसाम गये।ब्रह्मपुत्रनदको पार किया। उस समय किसीने पूछा कि आप लोग कहाँ जा रहे हैं?
उत्तर मिला कि सत्संगके लिये जा रहे हैं ।
सुनकर लोगोंको बड़ा आश्चर्य हुआ कि सत्संगके लिये भी यात्रा की जाती है?
अर्थात् सत्संगके लिये इतने प्रयासकी क्या जरुरत है जो इतनी दूरसे चलाकर आयें। (-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके सत्संग-प्रवचनसे) ।
(उनको यह पता ही नहीं है कि सत्संगभी एक लाभ होता है जिसकी बराबरी दूसरा कोई भी लाभ नहीं कर सकता-)
गिरजा संत समागम सम न लाभ कछु आन ।
बिनु हिर कृपा न होइ सो गावहिं बेद पुरान ॥
रामचरितमा.उ.१२५(ख)॥
सत्संग-यात्रासे लोगोंको आश्चर्य।(-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके सत्संग-प्रवचनसे)।
।।श्रीहरि:।।
सत्संग-यात्रासे लोगोंको आश्चर्य।
(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके सत्संग-प्रवचनसे)।
एक बार श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज सत्संग-प्रोग्रामके लिये आसाम गये।जहाजसे ब्रह्मपुत्रनदको पार करनेवाले थे,इस किनारे बैठे थे। उस समय एक सज्जनने पूछा कि आप लोग कहाँ जा रहे हैं?
उत्तर मिला कि सत्संगके लिये जा रहे हैं ।कह,सत्संगके लिये?
सुनकर उनको बड़ा आश्चर्य आया कि सत्संगके लिये भी मुसाफिरी होती है!(यात्रा की जाती है?)
व्यापारके लिये होती है,काम-धन्धेके लिये होती है,छौरा-छौरीके सम्बन्धके लिये मुसाफिरी होती है।सत्संगके लिये भी क्या कोई मुसाफिरी होती है?कह,होती है।
(-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज(दिनांक 19950601/830 बजे)के सत्संग-प्रवचनसे) ।
(उनको यह पता ही नहीं है कि सत्संगभी एक लाभ होता है जिसकी बराबरी दूसरा कोई भी लाभ नहीं कर सकता-)
गिरजा संत समागम सम न लाभ कछु आन ।
बिनु हिर कृपा न होइ सो गावहिं बेद पुरान ॥
रामचरितमा.उ.१२५(ख)॥
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पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
http://dungrdasram.blogspot.com/
बुधवार, 30 अप्रैल 2014
शुक्रवार, 18 अप्रैल 2014
मुख्य-बातें (श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज की मुख्य बातें )।
।।श्री हरि:।।
श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज
की मुख्य बातें -
त्वमेव माता च पिता त्वमेव
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव
त्वमेव सर्वं मम देव देव ।।
ये कुछ पुस्तकोंमेंसे छाँटे हुए कुछ लेख है,प्रत्येक-पुस्तकके सब लेख नहीं है।
(लोगोंको थोड़े समयमें महाराजजीकी कई बातें मिल जाय,सत्संगमें सुनानेके लिये, व्याख्यान देनेसे पहले, इस लेखको पढनेसे थोड़ी देरमें खास-खास बातें ध्यानमें आ जाय-इस उध्देश्यसे ये बातें एक जगह लिखि गई)।
'जीवनका कर्तव्य'
नामक पुस्तकमें-
1-'समयका मूल्य और सदुपयोग'
2-'सब नाम-रूपोंमें एक ही भगवान'
3-'बार-बार नहिं पाइये मनुष-जनमकी मौज'
'साधन-रहस्य' ('एकै साधै सब सधै')
नामक पुस्तकमें-
4-'सबका कल्याण कैसे हो? '
5-'अखण्ड साधन'
5-'दृढ भावसे लाभ'
6-'भगवत्प्राप्तिसे ही मानव- जीवनकी सार्थकता'
'जीवनोपयोगी कल्याण-मार्ग'
नामक पुस्तकमें-
7-'सभी कर्तव्य कर्मोंका नाम यज्ञ है'
8-'विषयासक्ति और भगवत्प्रीतिमें भेद'
9-'मनकी हलचलके नाशके सरल उपाय'
10-'दैवी सम्पदा एवं आसुरी सम्पदा'
11-'भगवत्प्राप्तिके लिये भविष्यकी अपेक्षा नहीं'
'सर्वोच्च पदकी प्राप्तिका साधन'
नामक पुस्तकसे-
11-'प्राप्त सामर्थ्यका सदुपयोग'
'कल्याणकारी प्रवचन' (भाग 1)
नामक पुस्तकमें-
12-'अपने अनुभवका आदर'
13-'संसारमें रहनेकी विद्या'
14-'स्वार्थरहित सेवाकी महत्ता'
15-'परमात्मा तत्काल कैसे मिलें ? '
16-'भगवत्प्राप्ति क्रियासाध्य नहीं'
17-'परमात्मप्राप्तिमें भोग और संग्रहकी इच्छा ही महान बाधक'
'तात्त्विक प्रवचन'
नामक पुस्तकमें-
18-'मुक्ति सहज है'
19-'जाग्रतमें सुषुप्ति'
20-'हमारा स्वरूप सच्चिदानन्द है'
21-'दृश्यमात्र अदृश्यमें जा रहा है'
22-'सत्य क्या है? '
23-'मैं शरीर नहीं हूँ'
24-'त्यागसे सुखकी प्राप्ति'
25-'तत्त्वप्राप्तिमें सभी योग्य हैं'
26-'सांसारिक सुख दु:खोंके कारण हैं'
27-'स्वभाव-सुधारकी आवश्यकता'
'भगवान् से अपनापन'
नामक पुस्तकमें-
28-'भगवानसे अपनान'
29-'नाम-जप और सेवासे भगवत्प्राप्ति'
'भगवन्नाम'
नामक पुस्तकमें
30-'होहि रामको नाम जपु'
'सत्संगकी विलक्षणता'
नामक पुस्तकमें-
31-'सत्संगकी आवश्यकता'
('गीता-दर्पण'
नामक पुस्तकमें- )
32-(गीतामें) 'आहार-शुध्दि'
'कर्म-रहस्य'
नामक पुस्तकमें-
33-'अपने कर्मोंके द्वारा भगवान् का पूजन'
34-'जाति जन्मसे मानी जाय या कर्मसे ? '
'वास्तविक सुख'
नामक पुस्तकमें-
35-'मनुष्य-जीवनका उध्देश्य'
36-'पारमार्थिक उन्नति धनके आधीन नहीं'
37-'गोहत्या-एक अभिशाप'
'अच्छे बनो'
नामक पुस्तकमें-
38-'प्रतिकूल परिस्थितिसे लाभ'
'भगवत्प्राप्तिकी सुगमता'
नामक पुस्तकमें-
39-'अन्त:करणकी शुध्दिका उपाय'
40-'शरणागतिकी विलक्षणता'
41-'अपनी मनचाहीका त्याग'
42-'अपने साधनको सन्देहरहित बनायें'
'स्वाधीन कैसे बनें ? '
नामक पुस्तकमें-
43-'परमात्मप्राप्तिमें मुख्य बाधा-सुखासक्ति'
'गृहस्थमें कैसे रहें?
' नामक पुस्तकमें-
44-'महापापसे बचो'
'सत्संगका प्रसाद'
नामक पुस्तकमें-
45-'मन-बुध्दि अपने नहीं'
46-'कर्म किसके लिये ? '
'सच्चा गुरु कौन ?'
नामक पुस्तकमें-
47-'कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्'
'सहज साधना'
नामक पुस्तकमें-
48-'निर्दोषताका अनुभव'
49-'अहमका नाश तथा तत्त्वका अनुभव'
50-'करण-निरपेक्ष तत्त्व'
51-'चुप-साधन'
'नित्ययोगकी प्राप्ति'
नामक पुस्तकमें-
52-'करणनिरपेक्ष परमात्मतत्त्व'
53-'सत्-असतका विवेक'
54-'प्राप्त जानकारीके सदुपयोगसे कल्याण'
55-'जीवकृत सृष्टिसे बन्धन'
56-'दु:खका कारण-संकल्प'
57-'काम-क्रोधसे छूटनेका उपाय'
58-'राग-द्वेषसे रहित स्वरूप'
'वासुदेव:सर्वम्'
नामक पुस्तकमें-
59-'प्राप्त तत्त्वका अनुभव'
60-'उध्देश्यकी महत्ता'
61-'साधक कौन है ?'
'कल्याण-पथ'
नामक पुस्तकमें-
62-'कल्याणका सुगम साधन-कर्मयोग'
63-'गीताकी अलौकिक शिक्षा'
64-'योग:कर्मसु कौशलम्'
65-'भगवान और उनकी दिव्य शक्ति'
66-'संकीर्तनकी महिमा'
67-'गीतोक्त सदाचार'
'मातृशक्तिका घोर अपमान'
नामक पुस्तकमें-
68-'ढोल गवाँर सूद्र पसु नारी'
'जिन खोजा तिन पाइया'
नामक पुस्तकमें
69-'परमात्मा सगुण हैं या निर्गुण ?'
'तत्त्वज्ञान कैसे हो ?'
नामक पुस्तकमें-
70-'मुक्तिमें सबका समान अधिकार'
'भगवान और उनकी भक्ति'
नामक पुस्तकमें-
71-'सर्वश्रेष्ठ साधन'
'जित देखूँ तित तू'
नामक पुस्तकमें-
72-'करणनिरपेक्ष साधन-शरणागति'
'सब जग ईश्वररूप है'
नामक पुस्तकमें-
73-'भगवान् का आलौकिक समग्ररूप'
74-'अलौकिक साधन-भक्ति'
'साधन-सुधा-सिन्धु'
नामक पुस्तकमें-
75-'प्रतिकूलतामें विशेष भगवत्कृपा'
'साधक-संजीवनी'
नामक पुस्तकमें
76-'साधनकी दो शैलियाँ'
ये कुछ पुस्तकोंमेंसे छाँटे हुए कुछ लेख है,प्रत्येक-पुस्तकके सब लेख नहीं है।
(लोगोंको थोड़े समयमें श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी कई बातें मिल जाय,सत्संगमें सुनानेके लिये, व्याख्यान देनेसे पहले, इस लेखको पढनेसे थोड़ी देरमें खास-खास बातें ध्यानमें आ जाय-इस उध्देश्यसे ये बातें एक जगह लिखि गई)।
-डुँगरदास राम.
मंगलवार, 8 अप्रैल 2014
81-90÷सूक्ति-प्रकाश÷(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई कहावतें आदि) सूक्ति-संख्या 81- 90 तक।
||श्री हरिः||
÷सूक्ति-प्रकाश÷
(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई कहावतें आदि) सूक्ति-संख्या 81- 90 तक।
सूक्ति-81.
अकलसे खुदा पहचानो।
शब्दार्थ-
अकल(बुध्दि).खुदा(भगवान). (भगवद्आज्ञाका पता कैसे लगे? कि अकलसे खुदा पहचानो.भगवान सम्पूर्ण प्राणियोंके सुहृद हैं- सुहृदं सर्व भूतानाम्.(गीता 5/29) और महात्मा,भगवानके भक्त भी सम्पूर्ण प्राणियोंके सुहृद हैं-सुहृद:सर्व देहिनाम्। इसलिये जिसमें दूसरोंका हित हो,वो भगवानकी आज्ञा है-ऐसा समझो).
श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज द्वारा दि.1991-07-31,8.30 बजेके सत्संग-प्रवचनसे।
सूक्ति-82.
पारकी पूणीं कातणौ सीखणौं है.
शब्दार्थ- पारकी(पराई,दूसरोंकी).पूणी(ऊन कातनेसे पहले और चूँकेके बाद बनायी हुई ऊनकी पूळी). जैसे कोई कातनेके लिये मिली हुई दूसरोंकी ऊनसे कातनेका प्रयास करता है तो कातनेकी अटकल(विद्या) मुफ्तमें सीख जाता है,ऐसे ही मिली हुई शरीर आदि वस्तुसे (परहितके द्वारा) कल्याण करना सीखना है-
श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज द्वारा दि.1991-07-31,8.30 बजेके सत्संग-प्रवचनसे।
सूक्ति-83.
आज कि काल परार कि पौर। आपाँ बाताँ कराँ औराँरी आपाँरी करसी कोइ और ।।
शब्दार्थ-
पौर(गई साल).परार(गई सालसे पहले बीती हुई साल).
सूक्ति-84.
लेताँ तो बदतो लेवै देताँ कसर पावरी। पीपा प्रत्यक देखिये बाजाराँमें बावरी।। शब्दार्थ- बदतो(बढकर,ज्यादा).प्रत्यक(प्रत्यक्ष,सामने).बावरी(जीव-हत्यारा, शिकारी).
सूक्ति-85.
कह,खाटू जास्याँ। कह,खाटू बड़ी जास्यो क (या) छोटी? कह,जास्याँ तो बड़ी ही जास्याँ,छोटी क्यूँ जास्याँ।।
-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज द्वारा दि.1993-10-01.20.00 बजेके सत्संगसे) ।
शब्दार्थ-
खाटू(खाटू गाँव,'छोटी खाटू' और 'बड़ी खाटू' नामके दो गाँव). [जब एक साथ दो काम उपस्थित होते हैं तब ज्यादा लाभ वाला काम चुनना समझदारी कहलाता है]।
सूक्ति-86.
मड़ो भूत बाकळाँसूइँ राजी.
शब्दार्थ-
मड़ो(दुर्बल,भूख आदिसे दुखी).बाकळा(मोठोंको उबालकर बनायी हुई गूघरी). भूत(मरनेपर मिलनेवाली भूत-प्रेतकी योनिवाला प्राणी).
सूक्ति-87.
साध हजारी कापड़ो रतियन मैल सुहाय। साकट काळी कामळी भावै तहाँ बिछाय।।
शब्दार्थ-
साध(सज्जन पुरुष,सदाचारी,भला कहलानेवाला).साकट(संसारी,विषयी,विपरीतगामी,बदनाम).
सूक्ति-88.
धोयाँ उतरे है काँई? ( भगवानके तो हैं हम पहले से ही) धोयाँ उतरे है काँई?(नहीं उतरते,नहीं मिटते).
शब्दार्थ-
धोयाँ(धोनेसे).
सूक्ति-89.
रोजीनारी राड़ आपसरी आछी नहीं। बणै जहाँ तक बाड़ चटपट कीजै चकरिया।। श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज द्वारा दिये गये दि. (1997-07-31,20.00 बजेके सत्संग-प्रवचनसे)
शब्दार्थ-
चकरिया(चकरिया-कवि).राड़(लड़ाई,कहासुनी).बाड़(सुरक्षा,जिससे लड़ाई न हो-ऐसा उपाय,कहावत-राड़ आडी बाड़ भली).चटपट(जल्दी,तुरत).
सूक्ति-90.
अकलमें कुत्ता मूतग्या.
शब्दार्थ-
अकल(समझ,बुध्दि). (जब किसीकी बुध्दी भ्रष्ट हो जाती है या कोई नीच-कर्म करता है अथवा नीच-कर्मका समर्थन करता है,उसीको ठीक समझता और कहता है तब कहा जाता है कि इसकी बुध्दिमें कुत्ते पेशाब करके चले गये (अकलमें कुत्ता मूतग्या). ।।