मंगलवार, 9 दिसंबर 2014

गीता "साधक-संजीवनी"का प्राकट्य।लेखक-'श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'।

                    ।।श्रीहरि:।।

गीता "साधक-संजीवनी"का प्राकट्य।

लेखक-

'श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज' 

छोटी अवस्थासे ही मेरी गीतामें विशेष रुचि रही है । गीताका गम्भीरतापूर्वक मनन-विचार करने से तथा अनेक सन्त-महापुररुषोंके संग और वचनोंसे मुझे गीताके विषयको समझनेमें बड़ी सहायता मिली ।

गीतामें महान् संतोष देनेवाले अनन्त विचित्र-विचित्र भाव भरे  पड़े   हैं | उन भावोंको पूरी तरह समझनेकी और उनको व्यक्त करनेकी मेरेमें सामर्थ्य नहीं है । परन्तु जब कुछ गीताप्रेमी सज्जनोंने विशेष आग्रह किया, हठ किया, तब गीताके मार्मिक भावोंका  अपनेको बोध हो जाय तथा और कोई मनन करे तो उसको भी इनका बोध हो जाय- इस दृष्टिसे  गीताकी व्याख्या लिखवानेमें प्रवृत्ति हुई ।

×××

गीताका मनन-विचार करनेसे और गीताकी टीका लिखवानेसे मुझे बहुत आध्यात्मिक लाभ हुआ है  और गीताके विषयका बहुत स्पष्ट बोध भी हुआ है । दूसरे भाई -बहन भी यदि इसका मनन करेंगे, तो उनको  भी आध्यात्मिक लाभ अवश्य होगा - ऐसी मेरी व्यक्तिगत धारणा है।

गीताका मनन -विचार करनेसे लाभ होता है-इसमें मुझे कभी किंचिन्मात्र भी सन्देह नहीं है।
साधक-संजीवनी (लेखक-'श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'),प्राक्कथन,"टीकाके सम्बन्धमें "से।

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पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
http://dungrdasram.blogspot.com/

सोमवार, 8 दिसंबर 2014

पुराने-प्रवचन('श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज')-समूह।

                       ।।श्रीहरि:।।

पुराने-प्रवचन 

('श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'के सन् १९९१ से पहलेके कुछ पुराने सत्संग-प्रवचन)।

-समूह (शतक १ से ६)।

श्रध्देय  स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज के सन् १९९१ से २००५ तकके काफी प्रवचन इण्टरनेट पर अपलोड किये हुए हैं(सब नहीं,सन् १९९० के प्रवचन और इसके बादवालोंमें भी बीच-बीचमें हजारोंकी संख्यामें अपलोड नहीं हो पाये हैं।

इन(सन् १९८९)से पहलेके ऐसे हजारों प्रवचनोंके आॅडियो कैसेट आज, अभी भी संग्रहमें पड़े हुए हैं,जो कार्यान्वित नहीं हो पा रहे हैं)।

उनमें सन् १९७५-१९८९ के बीचवाले  कुछ प्रवचन यहाँ अपलोड किये गये हैं।

कुछ बादवाले प्रवचन, जिनके विषय हिन्दीमें लिखे गये हैं,वो भी यहाँ  पोस्ट (अपलोड) किये गये हैं |

डाउनलोड करने के लिए नीचे लिखे पतोंपर जायें। {सामग्रीके आगे दिये गये लिंक(Link) पर क्लिक करें}।

कल्याण के तीन सुगम मार्ग(पुस्तक व्याख्या)-

'श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'की यह वो पुस्तक है जिनकी व्याख्या स्वयं  उन्होने(बीकानेर २००१ में) की है।

'कल्याणके तीन सुगम मार्ग'(पुस्तक- व्याख्या)
लेखक और बोलनेवाले-व्याख्या करनेवाले-
परम श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज, बीकानेर २००१(2001)l (दिनांक-२००१०१२९ से २००१०२०८तकके प्रवचन)|

(वो भी यहाँसे प्राप्त करें)।
--- goo.gl/MsZrfp

SEP.1993 -S.S.S.RAMSUKHDASJI MAHARAJ (एक महीनेके प्रवचन विषय-सूची सहित)।
--- goo.gl/U7dSCP

OCT.1993 -S.S.S.RAMSUKHDASJI MAHARAJ (एक महीनेके प्रवचन विषय-सूची सहित)।
--- goo.gl/J7f8Ad

सुरक्षाकी दृष्टिसे यहाँ एकसौ प्रवचनोंका समूह(शतक-सौ प्रवचन) बनाया गया है और इस प्रकार वो प्रवचन छ: शतकोंमें विभक्त किये गये हैं।भविष्यमें और भी  प्रवचन उपलब्ध हुए तो वो भी इस शृंखलामें जोड़े जा सकते हैं।

'श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'के पुराने प्रवचन (01)-शतक नं.१)
--- goo.gl/wFP6gR

'श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'के पुराने प्रवचन (02)-शतक नं.२)
--- goo.gl/sulteG

'श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'के पुराने प्रवचन (03)-शतक नं.३)
--- goo.gl/HR97cl

'श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'के पुराने प्रवचन (04)-शतक नं.४)
--- goo.gl/tJIVbO

'श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'के पुराने प्रवचन (05)-शतक नं.५)
--- goo.gl/BTzCNa

'श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'के पुराने प्रवचन (06)-शतक नं.६)
--- goo.gl/1fsuI9

यहाँ भी देखें-

पुराने-प्रवचन-परम श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज के दुर्लभ (छूटे हुए) प्रवचन http://dungrdasram.blogspot.com/2013/09/blog-post_3586.html

विशेष-

'श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'के उपलब्ध ये सभी प्रवचन कोई सज्जन लेना चाहें,तो बिना पैसे लै सकते हैं।कम्पूटरसे कोपी-प्रतिलिपि बनाकर उनको नि:शुल्क-मुफ्तमें दी जायेगी।

सम्पर्क सूत्र-

मो.नं.
०९४१४७२२३८९  (09414722389)।

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पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
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दूसरी प्रकारके गीता-पाठका पता-स्वर(-आवाज)-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज |

                       ||श्रीहरि:||
दूसरी प्रकारके गीता-पाठका पता-
स्वर(-आवाज)-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज ।
                        
श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी आवाजमें दो प्रकारके
रिकोर्ड किये हुए गीता-पाठ उपलब्ध है।
पहले गीता-पाठमें आगे श्री स्वामीजी
महाराज बोलते हैं और पीछे दूसरे लोग दोहराते हैं।
दूसरे प्रकारके गीता-पाठमें सिर्फ श्री स्वामीजी महाराज बोलते(पाठ करते) हैं।
इसी प्रकार श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी आवाजमें श्रीविष्णुसहस्रनामस्तोत्रम् भी उपलब्ध है |
महापुरुषोंकी वाणीके साथ-साथ पाठ करनेवालेको अचिन्त्य-लाभ होता है।
श्री स्वामीजी महाराजकी आवाज(वाणी)के साथ-साथ पाठ करके हम उनके
संगी(सत्संगी) बन जाते हैं।
गीता-प्रचारका काम करनेवाला भगवानको अत्यन्त प्यारा लगता है| भगवान कहते हैं कि उसके समान मेरा प्रिय कार्य करनेवाला दूसरा कोई भी नहीं होगा (गीता १८/६८,६९)।
इस प्रकार हम गीता-प्रचारमें सम्मिलित होकर भगवानके अत्यन्त प्यारे बन जाते हैं।
श्री स्वामीजी महाराजका कहना है कि जितने लोग एक साथ पाठ करते हैं,उतना
ही गुना अधिक लाभ होता है।
जैसे,सौ लोग एक साथ बैठकर पाठ करते हैं तो
एक-एकको सौ-सौ गुना अधिक लाभ होगा अर्थात् एक जनेको सौ पाठ करनेका लाभ
होगा,दूसरे आदमीको भी सौ पाठ करनेका लाभ होगा और तीसरे आदमीको भी सौ पाठ
करनेका लाभ होगा।
इस प्रकार हम महापुरुषोंके साथ एक पाठ करके (महापुरुषोंके साथ किये गये) सौ पाठोंका लाभ एक बारमें ही ले लेते हैं।
इसके सिवा और भी अनेक लाभ है।
अगर कोई गीताजी सीखना चाहें,तो इस पाठके साथ-साथ पढकर आसानीसे सीख सकते हैं।
गीताजीका शुध्द उच्चारण कोई सीखना चाहें तो वो भी साथ-साथ पाठ करके सीख सकते हैं।
कोई गीताजी पढनेकी लय सीखना चाहें,कोई गीताजीकी राग सीखना चाहें,तो वो भी श्री महाराजजीकी वाणीके साथ-साथ पाठ करके सीख सकते हैं।
कोई गीताजी पढते समय उच्चारणमें होनेवाली अपनी भूलें सुधारना चाहें,गलतियाँ सुधारना चाहें,तो वो साथ-साथ पाठ करके सुधार सकते हैं।
कई लोग 'श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'पूछते थे कि हम गीता पढना चाहते हैं,हमको शुध्द गीताजी पढना नहीं आता,क्या करें?
तब श्री महाराजजी उनसे कहते थे कि सुबह चार बजे यहाँ गीताजीके पाठकी कैसेट लगती है,उसके साथ-साथ गीताजी पढो।(गीताजी शुध्द पढना आ जायेगा,सही पढना सीख जाओगे)।
उन दिनों प्रात:चार बजेसे श्री महाराजजीकी आवाजवाले पाठकी ये(नीचे बतायी गयी) कैसेटें ही लगती थीं।
पहला गीता-पाठ(नई रिकोर्डिंग) यहाँसे प्राप्त करें - http://db.tt/umrsxMnU
दूसरी प्रकारका गीता-पाठ और श्रीविष्णुसहस्रनामस्तोत्रम् यहाँ(इस पते)से प्राप्त करें - http://db.tt/L5hJrHtt
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पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
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पहले गीता-पाठका पता-स्वर(-आवाज)-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज |

                      ।।श्रीहरि:।।
पहले प्रकारके गीता-पाठका पता-
स्वर (-आवाज)-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज |
पहला गीता-पाठ-
श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी आवाजमें दौ प्रकारके
रिकोर्ड किये हुए गीता-पाठ उपलब्ध है।
पहले गीता-पाठमें आगे श्री स्वामीजी
महाराज बोलते हैं और पीछे दूसरे लोग दोहराते हैं।
दूसरे प्रकारके गीता-पाठमें सिर्फ श्री स्वामीजी महाराज बोलते(पाठ करते) हैं।
महापुरुषोंकी वाणीके साथ-साथ पाठ करनेवालेको अचिन्त्य-लाभ होता है।
श्री स्वामीजी महाराजकी आवाज(वाणी)के साथ-साथ पाठ करके हम उनके
संगी(सत्संगी) बन जाते हैं।
गीता-प्रचारका काम करनेवाला भगवानको अत्यन्त प्यारा होता है| भगवान कहते हैं कि उसके समान मेरा प्रिय कार्य करनेवाला दूसरा कोई भी नहीं होगा (गीता १८/६८,६९)।
इस प्रकार हम गीता-प्रचारमें सम्मिलित होकर भगवानके अत्यन्त प्यारे बन जाते हैं।
श्री स्वामीजी महाराजका कहना है कि जितने लोग एक साथ पाठ करते हैं,उतना
ही गुना अधिक लाभ होता है।
जैसे,सौ लोग एक साथ बैठकर पाठ करते हैं तो
एक-एकको सौ-सौ गुना अधिक लाभ होगा अर्थात् एक जनेको सौ पाठ करनेका लाभ
होगा,दूसरे आदमीको भी सौ पाठ करनेका लाभ होगा और तीसरे आदमीको भी सौ पाठ
करनेका लाभ होगा।
इस प्रकार हम महापुरुषोंके साथ एक पाठ करके (महापुरुषोंके साथ किये गये) सौ पाठोंका लाभ एक बारमें ही ले लेते हैं।
इसके सिवा और भी अनेक लाभ है।
अगर कोई गीताजी सीखना चाहें,तो इस पाठके साथ-साथ पढकर आसानीसे सीख सकते हैं।
गीताजीका शुध्द उच्चारण करना कोई सीखना चाहें तो वो भी साथ-साथ पाठ करके सीख सकते हैं।
कोई गीताजी पढनेकी लय सीखना चाहें,कोई गीताजीकी राग सीखना चाहें,तो वो भी श्री महाराजजीकी वाणीके साथ-साथ पाठ करके सीख सकते हैं।
कोई गीताजी पढते समय उच्चारणमें होनेवाली अपनी भूलें सुधारना चाहें,गलतियाँ सुधारना चाहें,तो वो साथ-साथ पाठ करके सुधार सकते हैं।
कई लोग 'श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'से पूछते थे कि हम गीता पढना चाहते हैं,हमको शुध्द गीताजी पढना नहीं आता,क्या करें?
तब श्री महाराजजी उनसे कहते थे कि सुबह चार बजे यहाँ गीताजीके पाठकी कैसेट लगती है,उसके साथ-साथ गीताजी पढो।(गीताजी शुध्द पढना आ जायेगा,सही पढना सीख जाओगे)।
उन दिनों प्रात:चार बजेसे श्री महाराजजीकी आवाजवाले पाठकी ये(नीचे बतायी गयी) कैसेटें ही लगती थीं।
पहला गीता-पाठ(नई रिकोर्डिंग) यहाँसे प्राप्त करें - http://db.tt/umrsxMnU
दूसरी प्रकारका गीता-पाठ और श्रीविष्णुसहस्रनामस्तोत्रम् यहाँ(इस पते)से प्राप्त करें - http://db.tt/L5hJrHtt
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श्रध्देय स्वामीजी श्री
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संत-वाणीकी रक्षा करें-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी शीघ्र कल्याणकारी वाणीको सुरक्षित करें,उनमें कोई काँट-छाँट न करें,सेट पूरा रहने दें,अधूरा न करें।

                    ।।श्रीहरि:।।

संत-वाणीकी रक्षा करें।

परम श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी शीघ्र कल्याणकारी वाणीको सुरक्षित करें,उनमें कोई काँट-छाँट न करें,सेट पूरा रहने दें,अधूरा न करें ...

इसी प्रकार कोई भी फोल्डर,सेट या सामग्री पूरी लोड करनी चाहिये,अधूरी नहीं रखनी चाहिये;क्योंकि ऐसे अधूरी सामग्री लोड करनेसे या कोपी(प्रतिलिपी) करनेसे कभी-कभी वो अधूरी ही रह जाती है| कारण,कि एक तो ऐसी सत्संग आदिकी सामग्रीमें रुचि रखनेवाले लोग कम है और उनमें भी ऐसी जानकारीकी कमी है|

दूसरी बात,कि कई लोग लापरवाही रखनेवाले होते हैं,बेपरवाही करते हैं,अधूरीको पूरी करनेका परिश्रम नहीं करते और कई तो पूरीको भी अधूरी कर देते हैं|इससे बड़ा नुक्सान होता है,महापुरुषोंकी वाणीका सेट बिखरता है और मूल-सामग्री दुर्लभ होती चली जाती है,जिससे लोगोंके कल्याणमें बड़ी कठिनता होती है,जो कि महापुरुषोंको पसन्द नहीं है|

इसलिये महापुरुषोंकी वाणीको यथावत रखनेका प्रयास करना चाहिये,इससे लोगोंको सुगमतासे उत्तम,असली चीज मिल जायेगी और उनका सुगमता-पूर्वक तथा जल्दी कल्याण हो जायेगा||

सीताराम सीताराम ||

अधिक जाननेके लिये यहाँ पढे-

संत-वाणी यथावत रहने दें,
संशोधन न करें|('श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'की वाणी और लेख यथावत रहने दें,संशोधन न करें)। http://dungrdasram.blogspot.com/2014/12/blog-post_30.html

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पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
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१.नित्य-स्तुति, गीता और सत्संग (-श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के इकहत्तर दिनों वाला सत्संग-प्रवचनों का सेट) ।। 

                       ।।श्रीहरि:।।

१.नित्य-स्तुति, गीता और सत्संग

(-श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के इकहत्तर दिनों वाला सत्संग-प्रवचनों का सेट) ।। 

श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज प्रतिदिन प्रातः पाँच बजे के बाद सत्संग करवाया करते थे।

पाँच बजते ही गीताजी के चुने हुए कुछ (१९) श्लोकों (२/७; ८/९; ११/१५-२२, ३६-४४;) द्वारा नित्य-स्तुति, प्रार्थना शुरु हो जाती थी। फिर गीताजी के लगभग दस-दस श्लोकोंका (प्रतिदिन क्रमशः) पाठ और हरि:शरणम् हरि:शरणम् ... आदि का संकीर्तन होता था।

इस प्रार्थना की शुरुआत से पहले यह श्लोक बोला जाता था-

'गजाननं भूतगणादिसेवितं
कपित्थजम्बूफलचारुभक्षणम्। उमासुतं शोकविनाशकारकं
नमामि विघ्नेश्वरपादपड़्कजम्' ।।

और समाप्ति​ के बाद यह श्लोक बोला जाता था - 

त्वमेव माता च पिता त्वमेव
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव
त्वमेव सर्वं मम देवदेव ।।

(इस प्रकार केवल प्रार्थना के ही इक्कीस श्लोक हो जाते थे। इसके बाद गीताजी के लगभग दस श्लोकों​ का पाठ और होता था)। 

ये तीनों (प्रार्थना, गीता-पाठ और संकीर्तन) करीब सत्रह (या बीस) मिनटों में पूरे हो जाते थे। 

इसके बाद (करीब 0518 बजे से) श्रद्धेय  स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज सत्संग-प्रवचन​ सुनाते थे, जो प्रायः छःह(6) बजेसे करीब 13 या18 मिनिट पहले ही समाप्त हो जाते थे।

यह सत्संग-प्रोग्राम कम समयमें ही बहुत लाभदायक, सारगर्भित, कल्याणकारी तथा बङा विलक्षण और अत्यन्त प्रभावशाली होता था। उससे बङा भारी लाभ होता था।

वो सब हम आज भी और उन्हीं की वाणीमें सुन सकते हैं तथा साथ-साथ में कर भी सकते हैं। 

इसमें​
(1.@NITYA-STUTI,GITA,SATSANG -S.S.S.RAMSUKHDASJI MAHARAJ@

नित्य-स्तुति,गीता,सत्संग-

श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज-इकहत्तर दिनोंका  सत्संग-प्रवचन सेट में) वो सहायक-सामग्री है। (इसलिये यह प्रयास किया गया है)।

सज्जनोंसे निवेदन है कि श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के समयमें जैसे सत्संग होता था, वैसे ही आज भी करनेका प्रयास करें। इस बीचमें कोई अन्य प्रोग्राम​ न जोङें।

नित्य-स्तुति, प्रार्थना, गीताजी के करीब दस-दस श्लोकों का पाठ और हरिःशरणम् हरिःशरणम् आदि संकीर्तन भी उन्हीं की आवाजके साथ-साथ करेंगे तो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूपमें अत्यन्त लाभ होगा।

प्रातः पाँच बजे श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजकी आवाजमें (रिकोर्डिंग वाणीके साथ-साथ) नित्य-स्तुति, प्रार्थना और गीताजी के दस श्लोकों​ का पाठ कर लेने के बाद यह हरिः शरणम् वाला संकीर्तन (श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज की आवाज में ही) सुनें और साथ-साथ बोलें।  इसके बाद श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजका सत्संग जरूर सुनें। 

(हरिःशरणम् (संकीर्तन) यहाँ(इस पते)से प्राप्त करें- https://db.tt/0b9ae0xg )।

कई जने पाँच बजे सिर्फ प्रार्थना तो कर लेते हैं (और कई जने गीता-पाठ भी कर लेते हैं), परन्तु सत्संग नहीं सुनते ; लेकिन जरूरी सत्संग सुनना ही है। इसलिये 'श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज' का सत्संग जरूर सुनें।

यह बात समझ लेनी चाहिये कि प्रार्थना आदि सत्संगके लिये ही होती थी। लोग जब आकर बैठ जाते तो पाँच बजते ही तुरन्त प्रार्थना शुरु हो जाती थी और उसके साथ ही सत्संग-स्थल का दरवाजा भी बन्द हो जाता था,बाहरके (लोग) बाहर और भीतरके भीतर (ही रह जाते थे)।

तथा प्रार्थना, गीता-पाठ आदि करते, इतनेमें उनका मन शान्त हो जाता था, उनके मनकी वृत्तियाँ शान्त हो जाती थी। उस समय उनको सत्संग सुनाया जाता था।

(ऐसे शान्त अवस्थामें सत्संग सुनने से वो भीतर(अन्तरात्मा में) बैठ जाता है)।

सत्संग के बाद भी  भजन-कीर्तन आदि कोई दूसरा प्रोग्राम नहीं होता था, न इधर-उधर की या कोई दूसरी बातें ही होती थी, जिससे कि सत्संग में सुनी हुई बातें उनके नीचे दब जायँ।

सत्संग के समय कोई थोड़ी-सी भी आवाज नहीं करता था। अगर किसी कारणसे कोई आवाज हो भी जाती तो बड़ी अटपटी और खटकनेवाली लगती थी।

पहले नित्य-स्तुति एक लम्बे कागज के पन्ने में छपी हुई होती थी। प्रार्थना के बाद में वो पन्ना लोग गोळ-गोळ करके समेट लेते थे। समेटते समय सत्संग में उस पन्ने की आवाज होती थी,तो उस कागजकी आवाज (खड़के) से भी सुनने में विक्षेप होता था। तब वो प्रार्थना पुस्तकमें छपवायी गयी, जिससे कि आवाज न हो और सत्संग सुनने में विक्षेप न हो तथा एकाग्रता से सत्संग सुनी जाय, सुननेका तार न टूटे, सत्संगका प्रवाह अबाध-गति से श्रोता के हृदय में आ जाय और उसी में भरा रहे।

सत्संग सुनते समय वृत्ति इधर-उधर चली जाती है तो सत्संग पूरा हृदय में आता नहीं है।

सुनने से पहले मनकी वृत्तियों को शान्त कर लेने से बड़ा लाभ होता है। शान्तचित्त से सत्संग सुनने से समझ में बहुत बढिया आता है और लगता भी बहुत बढिया है।

सत्संग शान्तचित्त से सुना जाय- इस के लिये पहले प्रार्थना आदि बड़ी सहायक होती थी।

इस प्रकार प्रार्थना आदि होते थे सत्संग के लिये।

इसलिये प्रार्थना आदि के बाद में सत्संग जरूर सुनना चाहिये।

सत्संग तो प्रार्थना आदि का फल है-

सतसंगत मुद मंगल मूला।
सोइ फल सिधि सब साधन फूला।।
(रामचरित.बा.३)।

'श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज' के समय में जिस प्रकार सत्संग होता था उसी प्रकार हम आज भी कर सकते हैं।

प्रतिदिन गीताजी के करीब दस-दस श्लोकों का पाठ करते-करते लगभग सत्तर-इकहत्तर दिनोंमें पूरी गीताजी का पाठ हो जाता था।

इस प्रकार इकहत्तर दिनों में नित्य-स्तुति और गीताजी सहित सत्संग-प्रवचनों का एक सत्संग-समुदाय हो जाता था।

जिस प्रकार श्री स्वामीजी महाराज के समय में वो सत्संग होता था, वैसा सत्संग हम आज भी कर सकते हैं-

-इस बातको ध्यानमें रखते हुए एक इकहत्तर दिनों के सत्संग का सेट (प्रवचन-समूह) तैयार किया गया है जिसमें ये चारों है (1-नित्य-स्तुति,2-गीताजी के दस-दस श्लोकों का पाठ,3-हरि:शरणम्... आदि संकीर्तन तथा 4-सत्संग-प्रवचन- ये चारों है)।

चारों एक नम्बर पर ही जोङे गये हैं; इसलिये एक बार चालू कर देने पर ये चारों अपने-आप सुनायी दे-देंगे। बार-बार चालू नहीं करने पङेंगे।

यन्त्र के द्वारा इसको एक बार शुरु करदो, बाकी काम अपने आप हो जायेगा अर्थात् आप पाँच बजे प्रार्थना चालू करदो; तो आगे गीतापाठ अपने-आप आ जायेगा और  उसके बाद हरि:शरणम् वाला संकीर्तन आकर अपने-आप सत्संग-प्रवचन आ जायेगा, सत्संग-प्रवचन शुरु हो जयेगा।

इस प्रकार नित्य नये-नये सत्संग-प्रवचन आते जायेंगे। इकहत्तर दिन पूरे होनेपर इसी प्रकार वापस शुरु कर सकते हैं और इस प्रकार उम्र भर सत्संग किया जा सकता है।

इनके अलावा श्री स्वामीजी महाराज के नये प्रवचन सुनने हों तो प्रार्थना आदि के बाद पुराने,सुने हुए प्रवचनों की जगह नये प्रवचन लगाकर सुने जा सकते हैं।

इसमें विशेषता और विलक्षणता यह है कि प्रार्थना,गीतापाठ, हरि:शरणम्(संकीर्तन​) और प्रवचन- ये चारों श्रीस्वामीजी महाराज की ही आवाज (स्वर) में है।

महापुरुषों की आवाज में अत्यन्त विलक्षणता होती है, बङा प्रभाव होता है, उससे बङा भारी लाभ होता है। इसलिये कृपया इसके द्वारा वो लाभ स्वयं लें और दूसरों को भी लाभ लेनेके लिये प्रेरित करें।।

कई अनजान लोग साधक-संजीवनी और गीताजीको अलग-अलग मान लेते हैं, उनको समझाने के लिये कि गीताजी साधक-संजीवनी से अलग नहीं है, दोनों एक ही हैं, दो नहीं है- इस दृष्टिसे इसमें प्रतिदिन होने वाले गीता पाठ में श्लोक संख्या की सूचना बोलते समय गीता साधक-संजीवनी का नाम  बोला गया है। इससे गीता साधक-संजीवनीका प्रचार भी होगा।

इसमें सुविधा के लिए प्रत्येक फाइल पर गीताजीके अध्याय और श्लोकोंकी संख्या लिखी गई है तथा 71 दिनोंकी संख्या भी लिखी गई है और बोली भी गई है।

यह (इकहत्तर दिनोंका "सत्संग-समूह") मोबाइलमें आसानीसे देखा और सुना जा सकता है तथा दूसरे यन्त्रों द्वारा भी सुना जा सकता है। (मेमोरी कार्ड, पेन ड्राइव, सीडी प्लेयर, स्पीकर या टी.वी. आदि के द्वारा भी सुना जा सकता है)।

यह सेट इकहत्तर दिनोंका इसलिये बनाया गया कि इतने दिनों में पूरी गीताजी के पाठकी आवृत्ति हो जाती है, गीताजी का पूरा पाठ हो जाता है।

प्रतिदिन प्रार्थना के बाद गीताजी के लगभग दस-दस श्लोकों का पाठ होने से करीब सत्तर इकहत्तर दिनों में पूरा गीता-पाठ हो जाता है।

(गीताजी के ७००-सात सौ श्लोकों में से दस-दस के हिसाब से सत्तर दिन होते हैं ; लेकिन गीता जी के प्रत्येक अध्यायों की श्लोक संख्या देखते हुए और अध्याय-समाप्ति पर विराम हो जाय- इस दृष्टि से यह काम ६९ दिनों में पूरा किया गया है।

फिर एक दिन अंगन्यास करन्यास आदि के लिये और एक दिन गीता जी के महात्म्य तथा आरती के लिये जोङे गये हैं।

श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज ने भी गीता-पाठ के आरम्भ में अंगन्यास करन्यास आदि का पाठ किया है तथा गीता-पाठ के अन्त में गीता जी के महात्म्य का पाठ किया है और गीताजी की आरती गायी है। यह उसी के अनुसार किया गया है।

इस प्रकार यह इकहत्तर दिनों वाला प्रार्थना, प्रवचनों सहित गीताजी के पूरे पाठ का समूह है। 

इसके लिये जो एक प्रयास किया गया है,वो है प्रार्थना, गीतापाठ सहित इकहत्तर दिनों वाला सत्संग-प्रवचनों का यह सेट)। 

इस प्रकार हम घर बैठे या चलते-फिरते भी महापुरुषोंकी सत्संगका लाभ ले सकते हैं।

वो सत्संग नीचे दिये गये लिंक, पते द्वारा कोई भी सुन सकते हैं और डाउनलोड भी कर सकते हैं -

नं १ - goo.gl/DMq0Dc (ड्रॉपबॉक्स)
नं २ - goo.gl/U4Rz43 (गूगल ड्राइव) ।

तथा-

उस इकहत्तर दिनोंवाले सेटका पता-ठिकाना यहाँ भी है। आप वो यहाँसे नि:शुल्क प्राप्त कर सकते हैं-

@नित्य-स्तुति,गीता,
सत्संग-श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज@

(-इकहत्तर दिनोंके  सत्संग-प्रवचनके सेटका पता-) 
https://www.dropbox.com/sh/p7o7updrm093wgv/AABwZlkgqKaO9tAsiGCat5M3a?dl=0

श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज कहते हैं कि सत्संग के बाद में, बैठ कर आपस में सत्संग की चर्चा करने से बड़ा लाभ होता है। बुद्धि का विकास होता है। 
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पता-
सत्संग-संतवाणी. 
श्रध्देय स्वामीजी श्री 
रामसुखदासजी महाराजका 
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें। 
http://dungrdasram.blogspot.com/

शनिवार, 6 दिसंबर 2014

संत-वाणी यथावत् रहने दें,संशोधन न करें। (श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज की वाणी और लेख यथावत रहने दें,संशोधन न करें)।

                     ।।श्रीहरि:।।

संत-वाणी यथावत् रहने दें,संशोधन न करें

(श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'की वाणी और लेख यथावत् रहने दें,संशोधन न करें)। 

 (आजकल ऐसा देखने में आता है कि श्री स्वामीजी महाराज की रिकोर्डिंग वाणी के साथ लोग छेङ-छाङ कर रहे हैं, जो बङे भारी नुकसान की बात है, हानि की बात है। कई ऐसे लोग हैं जो महाराज जी के प्रवचन के साथ रिकोर्ड की हुई तारीख हटा देते हैं और उसमें से श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज का नाम भी हटा देते हैं, प्रवचन की पहचान हटा देते हैं। शायद उनको पता नहीं है कि यह व्यवस्था स्वयं श्री स्वामीजी महाराज की करवायी हुई है। प्रवचन के साथ, तारीख आदि रिकोर्ड करने का काम उनके कहने से शुरु किया गया है। अगर कोई प्रवचन की तारीख आदि हटाता है तो यह श्री स्वामीजी महाराज की व्यवस्था भंग करना है। इसलिये हम सब का कर्तव्य है कि लोकहित के लिये की गई महापुरुषों की इस व्यवस्था को बनाये रखें। कोई उसको तोङे तो यथाशक्ति उसको रोकने की कोशिश करें, सन्तवाणी की रक्षा करें। इसी तरह उनकी लिखित वाणी की भी रक्षा करें)।

१.एक बार किसी पत्रिकामें श्रीस्वामीजी(रामसुखदासजी) महाराजके लेखको कुछ संशोधन करके छापा गया।उस लेखको सुननेपर श्रीस्वामीजी महाराजको लगा कि इसमें किसीने संशोधन किया है,जिससे इसका जैसा असर होना चाहिये,वैसा असर दीख नहीं रहा है!तब श्रीस्वामीजी महाराजने एक पत्र लिखवाकर भेजा,जिसमें लिखा था कि 'आप हमारे लेखोंमें शब्दोंको बदलकर बङा भारी अनर्थ कर रहे हो;क्योंकि शब्दोंको बदलनेसे हमारे भावोंका नाश हो जाता है! इस विषयमें आपको अपने धर्मकी,अपने इष्टकी सौगन्ध है!'आदि। *

(परम श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज द्वारा रचित 'साधक-संजीवनी' पर आधारित 'संजीवनी-सुधा' के प्राक्कथन ix से साभार)।
…………………………………………………………
*
(क).यह बात उन दिनोंकी है कि जिन दिनोंमें गीता-दर्पण (लेखक- श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज) का प्रकाशन ... हो रहा था। बादमें भी कई बार ऐसे अवसर आये हैं।

(ख).महापुरुषोंके शब्द बदलने नहीं चाहिये।

अगर भावोंका खुलासा करना हो तो ब्रैकेट,कोष्ठक ( ) या टिप्पणीमें करना चाहिये। और  यह स्पष्ट होना चाहिये कि ऐसा खुलासेके लिये किया गया है।

अधिक जाननेके लिये यहाँ पढें-

संत-वाणीकी रक्षा करे- श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी शीघ्र कल्याणकारी वाणीको सुरक्षित करें,उनमें कोई काँट-छाँट न करें,सेट पूरा रहने दें,अधूरा न करें। http://dungrdasram.blogspot.com/2014/12/blog-post_72.html

२.एक बार 'श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'से किसीने कहा कि गोस्वामी श्री तुलसीदासजी महाराजने जो रामायणमें यह चौपाई लिखी है कि

ढोल गवाँर सूद्र पसु नारी।
सकल ताड़ना के अधिकारी॥
(५/५९)।

(तो) इसमें स्त्रीजातीका तिरस्कार है,इसलिये "नारी"शब्द बदलकर(हटाकर) "चारी" (ढोल गवाँर सूद्र पसु चारी) कर देना चाहिये।

यह सुनकर श्री स्वामीजी महाराजने उनको डाँटते हुए गुस्सा जताकर जोरसे मना किया कि यह अन्याय है।उनकी(सन्तोंकी) वाणीमें काँट-छाँट,हेरा-फेरी नहीं करनी चाहिये,जैसा उन्होने लिखा है,वैसा ही रहने देना चाहिये।कोई उसको काँट-छाँट करता है या बदलाव करता है तो बड़ा अन्याय करता है।यह (वाणी बदलना) गोस्वामीजी महाराजकी हत्या करना है। 

(अधिक जाननेके लिये श्रीमहाराजजीकी पुस्तक "मातृशक्तिका घोर अपमान"(लेखक- स्वामी रामसुखदास) पढें)।

तथा-

"बात पते की " होनी चाहिये=

(श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज की बातों के साथ प्रमाण लिखा हुआ होना चाहिये)।

आजकल कई लोग श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के नाम की आड़ में दूसरों की बातें लिख देते हैं और

कई-कई तो अपने मन से, अपनी समझ की बात लिख कर उस पर नाम श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज का दे देते हैं कि यह बात उनकी है।

सज्जनों! यह बड़ा भारी अपराध है, झूठ है।

इससे सत्य बात के भी आड़ लग जाती है और उस पर लोगों का विश्वास नहीं रहता (जो लोगों के कल्याण की सामग्री में बड़ा भारी नुकसान है)। 

विश्वास करने लायक बात वही है जो किसी पुस्तक या प्रवचन से लेकर लिखी गयी हो, अथवा स्वयं उनके श्रीमुख से सुनी गयी हो।

(श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के जिन लेखों और बातों में किसी पुस्तक या प्रवचन आदि का प्रमाण लिखा हुआ नहीं हो, तो वो हमें स्वीकार नहीं है)। 

जिस बात या लेख में लेखक का नाम दिया गया हो,कृपया उसको हटावें नहीं और उस लेखक की जगह दूसरे लेखक का नाम भी न देवें। लेखक का नाम हटाना अपराध है।

श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के लेखों और बातों से उनका नाम हटाना अपराध है और दूसरों की बातों में या अपनी बातों में उनका नाम जोड़ना (कि यह बात उनकी है) भी अपराध है, जो कि पाप से भी भयंकर है।

श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज बताते हैं कि एक तो होता है पाप और एक होता है अपराध।

अपराध पाप से भी भयंकर होता है। पाप तो उसका फल भुगतने से मिट जाता है; परन्तु अपराध नहीं मिटता।

अपराध तो तभी मिटता है कि जब वो (जिसका अपराध किया गया है वो) स्वयं माफ करदे।

इसलिये हमें अपराध से बचना चाहिये। 

● संत-वाणीकी रक्षा करें ●।

परम श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी शीघ्र कल्याणकारी वाणीको सुरक्षित रखें,उनमें कोई काँट-छाँट न करें,सेट पूरा रहने दें,अधूरा न करें। 

प्रवचन और पुुस्तक आदि को पूूूूरी पेेश करेें,एक भी पृृष्ठ कम न रहे,इधर-उधर न हो। फाइल पूरी रहे। कोई भी फोल्डर,सेट या सामग्री पूरी लोड करनी चाहिये,अधूरी नहीं रखनी चाहिये;क्योंकि ऐसे अधूरी सामग्री लोड करने से, स्थापित करनेसे या कोपी(प्रतिलिपि) करनेसे कभी-कभी वो अधूरी ही रह जाती है। कारण,कि एक तो ऐसी सत्संग आदिकी सामग्रीमें रुचि रखनेवाले लोग कम है और उनमें भी ऐसी जानकारीकी कमी है।

दूसरी बात,कि कई लोग लापरवाही रखनेवाले होते हैं,बेपरवाही करते हैं,अधूरीको पूरी करनेका परिश्रम नहीं करते और कई तो पूरीको भी अधूरी कर देते हैं। इससे बड़ा नुक्सान होता है,महापुरुषोंकी वाणीका सेट बिखरता है और मूल-सामग्री दुर्लभ होती चली जाती है,जिससे लोगोंके कल्याणमें बड़ी कठिनता होती है,जो कि महापुरुषोंको पसन्द नहीं है।

इसलिये महापुरुषोंकी वाणीको यथावत रखनेका प्रयास करना चाहिये,इससे लोगोंको सुगमतासे उत्तम,असली चीज मिल जायेगी,पूरी चीज मिल जायेगी और उनका सुगमता-पूर्वक तथा जल्दी कल्याण हो जायेगा। 

 ● 

प्रवचनों की तारीख और नाम हटाना अपराध है ।

आजकल श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के सत्संग- प्रवचनों पर ध्यान देना चाहिए कि उनमें से तारीख और श्री महाराज जी का नाम तो नहीं हटा दिया गया है?।
...

ऐसा देखने में आया है कि किसीने श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के कई प्रवचनों में से तारीख हटा दी है और श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज का नाम भी इन प्रवचनों में से हटा दिया है। यह किसी ने महान अपराध किया है; क्योंकि प्रवचनों के अन्दर तारीख रिकोर्ड करने की व्यवस्था स्वयं श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज ने करवायी थी।

मेरे (डुँगरदास राम के) सामने की बात है कि महाराज जी से पूछा गया कि (प्रतिलिपि आदि का काम करते समय या अन्य कारणों से) प्रवचन की कैसेटों पर लिखी हुई तारीख कभी-कभी साफ नहीं दीखती। मिट भी जाती है। लिखने में भी भूल से दूसरी तारीख लिख दी जाती है। ऐसे में सही तारीख का पता कैसे लगे? इसके लिये क्या करें?
तब श्री महाराज जी बोले कि प्रवचन के साथ ही (भीतर) में रिकोर्ड करदो (अगर ऊपर, तारीख लिखने में भूल हो जायेगी तो भीतरवाली रिकोर्ड सुनकर पकङी जायेगी,सही तारीखका पता लग जायेगा)। 

तब से ऐसा विशेषता से किया जाने लगा। इन प्रवचनों की भीतर से तारीख हटा कर किसी ने महाराज जी की वो व्यवस्था भंग की है। जो इसको आगे बढ़ाते हैं। एक प्रकार से वो भी इस अपराध में सामिल है।

इसलिए आज से ही ऐसे प्रवचन ग्रुप में न भेजें।
यह ऐसे हमें स्वीकार नहीं है।

जो रोजाना श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के नाम से पाँच बजे वाली सत्संग ग्रुपों में भेजते हैं, भीतर की रिकोर्ड तारीख हटा देते हैं। हम उस कार्य का बहिष्कार करते हैं।  सच्चे सत्संगियों को भी हमारी यही सलाह है। 

श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज के प्रवचनों साथ तारीख रहना आवश्यक है और उपयोगी भी है। जैसे, श्री स्वामीजी महाराज की कोई बात हमको बढ़िया लगी और हम उस बात को या प्रवचन को ठीक से समझने के लिये मूल प्रवचन सुनना चाहें, तो उस तारीख के अनुसार खोजकर वो प्रवचन सुन लेंगे,समझ लेंगे। अब अगर उस प्रवचन की तारीख ही हटा दी गयी,तो कैसे खोजेंगे और क्या सुनेंगे? कैसे समझेंगे? 

 (वाट्सऐप्प द्वारा भेजने से प्रवचन के ऊपर लिखी हुई तारीख मिट जाती है,अगर भीतर की हुई रिकोर्ड तारीख भी हटायी हुई है तो पता ही नहीं लगता कि यह कौनसा और कब का प्रवचन है तथा अपरिचित व्यक्ति को तो यह भी पता नहीं लगता कि यह प्रवचन है किनका? प्रवचन करनेवाले कौन हैं? क्योंकि भीतरमें रिकोर्ड किया हुआ श्री स्वामीजी महाराजका नाम भी हटाया हुआ है)।


 इसलिये प्रवचनों के ऊपर लिखी गयी तारीख और भीतर रिकोर्ड की गयी तारीख- दोनों रहनें दें,हटावें नहीं। श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज का नाम उनके प्रवचनों में से हटावें नहीं, रहनें दें। दूसरों को भी यह बात समझावें। 

● 

श्री स्वामीजी महाराज के संग्रहीत, मूल प्रवचनों के ऊपर लिखी हुई तारीखें पढ़ना भी सीखलें। 

 मूल प्रवचनों पर पहले वर्ष (सन्) लिखा हुआ है, वर्ष के बाद महीना और महीने के बाद तारीख लिखी हुई होती है,उसके आगे समय लिखा हुआ रहता है कि यह प्रवचन कितने बजे का है। फिर प्रायः उस प्रवचन नाम (विषय) भी लिखा हुआ रहता है। इण्टरनेट पर,ऑनलाइन भी ऐसा क्रम लिखा हुआ है। 


 इस प्रकार समझकर हमें महापुरुषों की वाणी से लाभ लेना चाहिये और भविष्य में भी सबको लाभ मिलता रहे,इसके लिये संतोंकी वाणीको सुरक्षित रखना चाहिये। कोई काँट-छाँट करे तो उसको रोकना चाहिये। यह बङे भारी लाभ की बात है। संतवाणी से दुनियाँ का बङा भारी हित होता है। यह बहुत कीमती चीज है। हरेक इसकी कीमत नहीं समझता। जिन्होंने इससे लाभ लिया वो कुछ इस विषय में जानते हैं। अधिक जानकारी के लिये श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज की वाणी ध्यान से सुनें और समझें।  

  मिलने का पता -   bit.ly/1satsang और bit.ly/1casett 

 http://dungrdasram.blogspot.com/2014/12/blog-post_30.html