बुधवार, 10 दिसंबर 2014

गीता "साधक-संजीवनी परिशिष्ट"।लेखक-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'।

                         ।।श्रीहरि:।।

गीता

"साधक-संजीवनी परिशिष्ट"।

लेखक-

श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराज'।

'श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'ने   गीता पर टीका-'साधक-संजीवनी' लिख दी और वो पुस्तकरूपमें प्रकाशित भी हो गयी।

उसके बादमें भी महाराजजीके मनमें गीताजीके बड़े विलक्षण और नये-नये भाव आते रहे।

तब गीताजीके सातवें अध्याय पर नये भावोंकी व्याख्या लिखकर पुस्तकरूपमें प्रकाशित की गयी।लेकिन नये-नये भाव तो और भी आने लग गये।

तब गीताजीके अठारहों अध्यायों पर गीताजीकी नयी व्याख्या लिखकर प्रकाशित की गयी,जिसका नाम था-"साधक-संजीवनी परिशिष्ट"।इसमें गीताजीका अर्थ पदच्छेद और अन्वय सहित दिया गया है।

इसमें ऐसे-ऐसे भाव थे कि जो 'साधक-संजीवनी'में नहीं आये।

तब आवश्यक समझकर वो भाव ('साधक-संजीवनी परिशिष्ट') 'साधक-संजीवनी'में जोड़ दिये गये।इसके बाद 'साधक-संजीवनी' पर यह लिखा जाने लगा-साधक-संजीवनी (परिशिष्ट सहित)।

{जिनके पास पुरानी साधक-है,उनको चाहिये कि यह नयी वाली साधक-संजीवनी (परिशिष्ट सहित) वाली भी लेकर पढें}।

इसके बाद भी गीताजीके और नये भाव आये,वो "गीता-प्रबोधनी"में लिखे गये।फिर भी नये-नये भाव तो आते ही रहे।…

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पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
http://dungrdasram.blogspot.com/

२.गीताजी कण्ठस्थ,याद करनेका उपाय।

                          ||श्रीहरि:||

गीताजी कण्ठस्थ,याद करनेका उपाय।

एक सज्जनने पूछा है कि हम गीताजी कण्ठस्थ करना चाहते हैं,गीताजी कण्ठस्थ होनेका उपाय बतायें।

उत्तरमें निवेदन है कि

गीताजी कण्ठस्थ करना हो तो पहले गीता साधक-संजीवनी,गीता तत्त्वविवेचनी,[गीता पदच्छेद अन्वय सहित] आदिसे गीताजीके श्लोकोंका अर्थ समझलें और फिर रटकर कण्ठस्थ करलें।

श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज बताते हैं कि छौटी अवस्थामें तो पहले श्लोक रटा जाता है और पीछे उसका अर्थ समझा जाता है तथा बड़ी अवस्थामें पहले अर्थ समझा जाता है और पीछे श्लोक रटा जाता है।

(जो श्लोक कण्ठस्थ हो चूके हों, उनकी आवृत्ति रोजाना बिना देखे करते रहें)।

जो श्लोक दिनमें कण्ठस्थ किये गये हैं,रात्रिमें सोनेसे पहले कठिनता-पूर्वक बिना देखे उनकी आवृत्ति करलें,इससे सुबह उठते ही (वापस बिना देखे आवृत्ति करोगे तो) धड़ा-धड़ आ जायेंगे।

महाराजजी बताते हैं कि
अगर कोई यह पूछे कि हम गीताजीका कण्ठस्थ पाठ भूलना चाहते हैं,कोई उपाय बताओ।तो भूलनेका उपाय यह है कि गीताजीका कण्ठस्थ पाठ गीताजीको देखकर करते रहो,भूल जाओगे अर्थात् कण्ठस्थ-पाठ भी गीताजीको देख-देखकर करोगे तो भूल जाओगे| इसलिये जिनको पूरी गीताजी याद (कण्ठस्थ) हो अथवा दो-चार अध्याय ही याद हो, उनको चहिये कि कण्ठस्थ-पाठ गीताजी देख-देखकर न करें।कण्ठस्थ-पाठ बिना देखे करें।

विशेष-

जो सज्जन गीताजीको याद करना चाहते हैं,उनके लिये 'गीता-ज्ञान-प्रवेशिका' (लेखक- श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज) नामक पुस्तक बड़ी सहायक होगी।इसमें गीता-अध्ययन सम्बन्धी और भी अनेक बातें बताई गई है।

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पता-

सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
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१.गीताजी कण्ठस्थ (याद) करनेका उपाय।

                          ||श्रीहरि:||


गीताजी कण्ठस्थ (याद) करनेका उपाय-  
 
 एक बार श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज से एक हैड मास्टर ने पूछा कि मनुष्य को कम- से कम क्या कर लेना चाहिये?  

इसके उत्तर में श्री स्वामी जी महाराज ने बताया कि मनुष्य को कर तो लेना चाहिये अपना कल्याण। तत्त्वज्ञान। भगवान् का परम प्रेम प्राप्त कर लेना चाहिये। परन्तु इतना न हो सके तो कम- से कम इतना तो कर ही लेना चाहिये कि मनुष्य जन्म से नीचा न चला जाय (मनुष्य जन्म से नीचे न गिर जाय)।

अर्थात् इसी जन्म में भगवत्प्राप्ति न कर सके तो मरने के बाद वापस मनुष्य जन्म मिल जाय। पशु-पक्षी,कीट-पतंग आदि नीच योनियों में न जाना पङे। इतना तो कर ही लेना चाहिये। 

(तब उन्होंने पूछा कि)  इसका क्या उपाय है (कि वापस मनुष्य जन्म ही मिल जाय)?

इसके उत्तर में श्री स्वामी जी महाराज बोले कि गीता याद (कण्ठस्थ) करलें। क्योंकि-

गीता पाठ समायुक्तो मृतो मानुषतां व्रजेत् ।।१६।।
गीताभ्यासं पुनः कृत्वा लभते मुक्तिमुत्तमाम् ।। 
(गीता माहात्म्य,वराह पुराण)

अर्थात् , गीता-पाठ करनेवाला [अगर मुक्ति होनेसे पहले ही मर जाता है, तो] मरनेपर फिर मनुष्य ही बनता है और फिर गीता अभ्यास करता हुआ उत्तम मुक्तिको प्राप्त कर लेता है)। अस्तु।  

(इसलिये हमलोगों को चाहिये कि गीताजी याद करलें  और गीताजी का पाठ करें )।   


एक सज्जनने पूछा है कि हम गीताजी कण्ठस्थ करना चाहते हैं,गीताजी कण्ठस्थ होनेका उपाय बतायें।

उत्तरमें निवेदन है कि
गीताजी कण्ठस्थ करना हो तो पहले गीता साधक-संजीवनी,गीता तत्त्वविवेचनी,[गीता पदच्छेद अन्वय सहित] आदिसे गीताजीके श्लोकोंका अर्थ समझलें और फिर रटकर कण्ठस्थ करलें।

श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज बताते हैं कि छोटी अवस्थामें तो पहले श्लोक रटा जाता है और पीछे उसका अर्थ समझा जाता है तथा बड़ी अवस्थामें पहले अर्थ समझा जाता है और पीछे श्लोक रटा जाता है।

(जो श्लोक कण्ठस्थ हो चूके हों, उनकी आवृत्ति रोजाना बिना देखे करते रहें)।

जो श्लोक दिनमें कण्ठस्थ किये गये हैं,रात्रिमें सोनेसे पहले कठिनता-पूर्वक, बिना देखे उनकी आवृत्ति करलें,इससे सुबह उठते ही (वापस बिना देखे आवृत्ति करोगे तो) धड़ा-धड़ आ जायेंगे।

(बिना देखे गीता पाठ न करने से हानि बताते हुए कभी-कभी तर्क सहित और हँसते हुए- से   श्रीमहाराजजी बोलते थे कि) 

अगर कोई यह पूछे कि हम गीताजीका कण्ठस्थ पाठ भूलना चाहते हैं,कोई उपाय बताओ।तो भूलनेका उपाय यह है कि गीताजीका कण्ठस्थ पाठ गीताजीको देखकर करते रहो,भूल जाओगे अर्थात् कण्ठस्थ-पाठ भी गीताजीको देख-देखकर करोगे तो भूल जाओगे| 

इसलिये जिनको पूरी गीताजी याद (कण्ठस्थ) हो अथवा दो-चार अध्याय ही याद हो, उनको चहिये कि कण्ठस्थ-पाठ गीताजी देख-देखकर न करें।कण्ठस्थ-पाठ बिना देखे करें।

जो सज्जन गीताजीको याद करना चाहते हैं,उनके लिये 'गीता-ज्ञान-प्रवेशिका' (लेखक- श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज) नामक पुस्तक बड़ी सहायक होगी। इसमें गीता-अध्ययन सम्बन्धी और भी अनेक बातें बताई गई है।

श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी आवाजमें रिकोर्ड किये हुए दो प्रकारके गीता-पाठ उपलब्ध है। उनके साथ-साथ पाठ करनेसे गीताजी कण्ठस्थ हो जाती है।

अगर कोई गीताजी सीखना चाहें,तो इस पाठके साथ-साथ पढकर आसानीसे सीख सकते हैं।

गीताजीका शुद्ध उच्चारण कोई सीखना चाहें तो वो भी साथ-साथ पाठ करके सीख सकते हैं।

कोई गीताजी पढनेकी लय सीखना चाहें,कोई गीताजीकी राग सीखना चाहें,तो वो भी श्री महाराजजीकी वाणीके साथ-साथ पाठ करके सीख सकते हैं।

कोई गीताजी पढते समय उच्चारणमें होनेवाली अपनी भूलें सुधारना चाहें,गलतियाँ सुधारना चाहें,तो वो साथ-साथ पाठ करके सुधार सकते हैं।

कई लोग 'श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज' से पूछते थे कि हम गीता पढना चाहते हैं,हमको शुद्ध गीताजी पढना नहीं आता,क्या करें?

तब श्री महाराजजी उनसे कहते थे कि सुबह चार बजे यहाँ गीताजीके पाठकी कैसेट लगती है,उसके साथ-साथ गीताजी पढो।(गीताजी शुद्ध पढना आ जायेगा,सही पढना सीख जाओगे)।

उन दिनों प्रात:चार बजेसे श्री महाराजजीकी आवाजवाले पाठकी ये(नीचे बतायी गयी) कैसेटें ही लगती थीं। 
(आज भी हम वैसा कर सकते हैं)।

गीता-पाठ यहाँसे प्राप्त करें-

पहले प्रकार के गीता-पाठका पता- 
स्वर(-आवाज) -श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज | http://dungrdasram.blogspot.com/2014/12/blog-post_15.html


दूसरी प्रकारके गीता-पाठका पता- 
स्वर(-आवाज)-श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज | http://dungrdasram.blogspot.com/2014/12/blog-post_17.html

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पता-
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श्रद्धेय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
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मंगलवार, 9 दिसंबर 2014

पाँच श्लोक-पाठ और आवाज|(-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)| 

                          ||श्रीहरि:||

पाँच श्लोक-पाठ और आवाज |

(-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)| 

पाँच श्लोक आदिका पाठ उन महारुरुषों('श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज') की ही आवाजके साथ-साथ करेंगे तो अप्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष रूपमें अत्यन्त लाभ होगा।  

श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज द्वारा लोक-कल्याण-हित शुरु करवाये हुए  गीताजी(४/६-१०)के पाँच श्लोकोंका उन्हीकी आवाजमें पाठ यहाँसे प्राप्त करें- https://db.tt/moa8XQh7

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पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
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पुराने-प्रवचन शतक('श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज')।

                       ।।श्रीहरि:।।


पुराने-प्रवचन 


('श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'के सन् १९९१ से पहलेके कुछ पुराने सत्संग-प्रवचन)।

-समूह (शतक १ से ६)।

श्रध्देय  स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज के सन् १९९१ से २००५ तकके काफी प्रवचन इण्टरनेट पर अपलोड किये हुए हैं(सब नहीं,सन् १९९० के प्रवचन और इसके बादवालोंमें भी बीच-बीचमें हजारोंकी संख्यामें अपलोड नहीं हो पाये हैं।

इन(सन् १९८९)से पहलेके ऐसे हजारों प्रवचनोंके आॅडियो कैसेट आज, अभी भी संग्रहमें पड़े हुए हैं,जो कार्यान्वित नहीं हो पा रहे हैं)।

उनमें सन् १९७५-१९८९ के बीचवाले कुछ प्रवचन यहाँ अपलोड किये गये हैं।

कुछ बादवाले प्रवचन, जिनके विषय हिन्दीमें लिखे गये हैं,वो भी यहाँ  पोस्ट (अपलोड) किये गये हैं |

डाउनलोड करने के लिए नीचे लिखे पतोंपर जायें। {सामग्रीके आगे दिये गये लिंक(Link) पर क्लिक करें}।

कल्याण के तीन सुगम मार्ग(पुस्तक व्याख्या)-
'श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'की यह वो पुस्तक है जिनकी व्याख्या स्वयं  उन्होने(बीकानेर २००१ में) की है।

'कल्याणके तीन सुगम मार्ग'(पुस्तक- व्याख्या)
लेखक और बोलनेवाले-व्याख्या करनेवाले-
परम श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज, बीकानेर २००१(2001)l (दिनांक-२००१०१२९ से २००१०२०८तकके प्रवचन)|

(वो भी यहाँसे प्राप्त करें)।
--- goo.gl/MsZrfp

SEP.1993 -S.S.S.RAMSUKHDASJI MAHARAJ (एक महीनेके प्रवचन विषय-सूची सहित)।
--- goo.gl/U7dSCP

OCT.1993 -S.S.S.RAMSUKHDASJI MAHARAJ (एक महीनेके प्रवचन विषय-सूची सहित)।
--- goo.gl/J7f8Ad

सुरक्षाकी दृष्टिसे यहाँ एकसौ प्रवचनोंका समूह(शतक-सौ प्रवचन) बनाया गया है और इस प्रकार वो प्रवचन छ: शतकोंमें विभक्त किये गये हैं।भविष्यमें और भी  प्रवचन उपलब्ध हुए तो वो भी इस शृंखलामें जोड़े जा सकते हैं।

'श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'के पुराने प्रवचन (01)-शतक नं.१)
--- goo.gl/wFP6gR

'श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'के पुराने प्रवचन (02)-शतक नं.२)
--- goo.gl/sulteG

'श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'के पुराने प्रवचन (03)-शतक नं.३)
--- goo.gl/HR97cl

'श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'के पुराने प्रवचन (04)-शतक नं.४)
--- goo.gl/tJIVbO

'श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'के पुराने प्रवचन (05)-शतक नं.५)
--- goo.gl/BTzCNa

'श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'के पुराने प्रवचन (06)-शतक नं.६)
--- goo.gl/1fsuI9

यहाँ भी देखें-
पुराने-प्रवचन-परम श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज के दुर्लभ (छूटे हुए) प्रवचन http://dungrdasram.blogspot.com/2013/09/blog-post_3586.html

विशेष-
'श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'के उपलब्ध ये सभी प्रवचन कोई सज्जन लेना चाहें,तो बिना पैसे लै सकते हैं।कम्पूटरसे कोपी-प्रतिलिपि बनाकर उनको नि:शुल्क-मुफ्तमें दी जायेगी।
सम्पर्क सूत्र-
मो.नं.
०९४१४७२२३८९  (09414722389)।
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पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
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गीता "साधक-संजीवनी"का प्राकट्य।लेखक-'श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'।

                    ।।श्रीहरि:।।

गीता "साधक-संजीवनी"का प्राकट्य।

लेखक-

'श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज' 

छोटी अवस्थासे ही मेरी गीतामें विशेष रुचि रही है । गीताका गम्भीरतापूर्वक मनन-विचार करने से तथा अनेक सन्त-महापुररुषोंके संग और वचनोंसे मुझे गीताके विषयको समझनेमें बड़ी सहायता मिली ।

गीतामें महान् संतोष देनेवाले अनन्त विचित्र-विचित्र भाव भरे  पड़े   हैं | उन भावोंको पूरी तरह समझनेकी और उनको व्यक्त करनेकी मेरेमें सामर्थ्य नहीं है । परन्तु जब कुछ गीताप्रेमी सज्जनोंने विशेष आग्रह किया, हठ किया, तब गीताके मार्मिक भावोंका  अपनेको बोध हो जाय तथा और कोई मनन करे तो उसको भी इनका बोध हो जाय- इस दृष्टिसे  गीताकी व्याख्या लिखवानेमें प्रवृत्ति हुई ।

×××

गीताका मनन-विचार करनेसे और गीताकी टीका लिखवानेसे मुझे बहुत आध्यात्मिक लाभ हुआ है  और गीताके विषयका बहुत स्पष्ट बोध भी हुआ है । दूसरे भाई -बहन भी यदि इसका मनन करेंगे, तो उनको  भी आध्यात्मिक लाभ अवश्य होगा - ऐसी मेरी व्यक्तिगत धारणा है।

गीताका मनन -विचार करनेसे लाभ होता है-इसमें मुझे कभी किंचिन्मात्र भी सन्देह नहीं है।
साधक-संजीवनी (लेखक-'श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'),प्राक्कथन,"टीकाके सम्बन्धमें "से।

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सोमवार, 8 दिसंबर 2014

पुराने-प्रवचन('श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज')-समूह।

                       ।।श्रीहरि:।।

पुराने-प्रवचन 

('श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'के सन् १९९१ से पहलेके कुछ पुराने सत्संग-प्रवचन)।

-समूह (शतक १ से ६)।

श्रध्देय  स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज के सन् १९९१ से २००५ तकके काफी प्रवचन इण्टरनेट पर अपलोड किये हुए हैं(सब नहीं,सन् १९९० के प्रवचन और इसके बादवालोंमें भी बीच-बीचमें हजारोंकी संख्यामें अपलोड नहीं हो पाये हैं।

इन(सन् १९८९)से पहलेके ऐसे हजारों प्रवचनोंके आॅडियो कैसेट आज, अभी भी संग्रहमें पड़े हुए हैं,जो कार्यान्वित नहीं हो पा रहे हैं)।

उनमें सन् १९७५-१९८९ के बीचवाले  कुछ प्रवचन यहाँ अपलोड किये गये हैं।

कुछ बादवाले प्रवचन, जिनके विषय हिन्दीमें लिखे गये हैं,वो भी यहाँ  पोस्ट (अपलोड) किये गये हैं |

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कल्याण के तीन सुगम मार्ग(पुस्तक व्याख्या)-

'श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'की यह वो पुस्तक है जिनकी व्याख्या स्वयं  उन्होने(बीकानेर २००१ में) की है।

'कल्याणके तीन सुगम मार्ग'(पुस्तक- व्याख्या)
लेखक और बोलनेवाले-व्याख्या करनेवाले-
परम श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज, बीकानेर २००१(2001)l (दिनांक-२००१०१२९ से २००१०२०८तकके प्रवचन)|

(वो भी यहाँसे प्राप्त करें)।
--- goo.gl/MsZrfp

SEP.1993 -S.S.S.RAMSUKHDASJI MAHARAJ (एक महीनेके प्रवचन विषय-सूची सहित)।
--- goo.gl/U7dSCP

OCT.1993 -S.S.S.RAMSUKHDASJI MAHARAJ (एक महीनेके प्रवचन विषय-सूची सहित)।
--- goo.gl/J7f8Ad

सुरक्षाकी दृष्टिसे यहाँ एकसौ प्रवचनोंका समूह(शतक-सौ प्रवचन) बनाया गया है और इस प्रकार वो प्रवचन छ: शतकोंमें विभक्त किये गये हैं।भविष्यमें और भी  प्रवचन उपलब्ध हुए तो वो भी इस शृंखलामें जोड़े जा सकते हैं।

'श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'के पुराने प्रवचन (01)-शतक नं.१)
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'श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'के पुराने प्रवचन (02)-शतक नं.२)
--- goo.gl/sulteG

'श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'के पुराने प्रवचन (03)-शतक नं.३)
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पुराने-प्रवचन-परम श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज के दुर्लभ (छूटे हुए) प्रवचन http://dungrdasram.blogspot.com/2013/09/blog-post_3586.html

विशेष-

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सम्पर्क सूत्र-

मो.नं.
०९४१४७२२३८९  (09414722389)।

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