मंगलवार, 3 मार्च 2015

लोगोंसे भला कहलानेकी और भला करवानेकी चाह छौड़ें।

राम

लोगोंसे भला कहलानेकी और भला करवानेकी चाह छौड़ें।

दुनियाँ है भोळी,है भोळी।
(राम नाम लेताँ शरमावै प्रगट खैले होळी,दुनियाँ है भोळी,है भोळी।

सँतों सार ग्रहणके सीरी,संतों सार ग्रहणके सीरी।
नाना मतको देख निरन्तर देखि भई दिलगीरी।।
[6:00 AM 3-3-2015] डुँगरदास राम: हेली म्हारी निरभै रहीज्यो ये।
औगुणगारी दुनियाँ ज्याँनें भेद मति दीज्यो।।
हेली म्हारी निरभै रीज्यो ये।
[7:06 AM 3-3-2015] डुँगरदास राम: अपने रामसे लगि रहिये।
जौं कोइ बादी बाद चलावै (तो) दोय बात बाँकी सहिये।।

[7:10 AM 3-3-2015] डुँगरदास राम: तेरे भावै कछू करो भलौ बुरौ संसार।
नारायण तूँ बैठिकै अपनौ भवन बुहार।।
[7:17 AM 3-3-2015] डुँगरदास राम: रज्जब रोष न कीजिये कोई कहौ क्यूँ ही।
हँसकर उत्तर दीजिये हाँ बाबाजी यूँ ही।।

मंगलवार, 10 फ़रवरी 2015

सूक्तियाँ-(-९)श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई सूक्तियाँ।

                   ।।श्रीहरि:।।

सूक्तियाँ-(-९)

श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई सूक्तियाँ।

सूक्ति-९.

कुबुध्द आई तब कूदिया दीजै किणनें दोष |
आयर देख्यो ओसियाँ साठिको सौ कोस ||

कथा-

साठिका गाँवके एक जने(शायद माताजीके भक्त,एक चारण भाई)ने सोचा कि इस गाँवको छोड़कर ओसियाँ गाँवमें चले जायँ (जो सौ कोसकी तरह दूर था)तो ज्यादा लाभ हो जायेगा;परन्तु वहाँ जाने पर पहलेसे भी ज्यादा घाटा दीखा; तब अपनी कुमतिके कारण पछताते हुए यह बात कहीं .

(हमारेमें जब दुर्बुध्दि आयी,तब यहाँसे कूदे,इस 'साठिका' गाँवको छौड़कर 'औसियाँ' गाँव जानेका निश्चय किया।जब यहाँ आकर देखा तो ऐसा लगा कि वहाँ ही(साठिकामें ही) रहते तो ठीक था; परन्तु अब क्या हो,साठिका तो वहाँ,इतनी दूर-सौ कोस रह गया।अब किसको दोष दें! यह कर्म(प्रारब्ध) तो खुदनें ही बनाया था)।

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पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
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रविवार, 8 फ़रवरी 2015

भगवानसे अरदास-(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)।

                      ।।श्रीहरि:।।

भगवानसे अरदास-

श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे की गयी भगवानसे प्रार्थना(तारीख-23.11.1993/1800 बजेवाली) इस प्रवचन(19990123/1300) में जोड़ी गई है।वो अलगसे भी है, पर फाइल बड़ी है।

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प्रभुसे प्रार्थना।(लेखक-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)।

                     ।।श्रीहरि:।।

प्रभुसे प्रार्थना।

(लेखक-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)।
                                
  हे नाथ! आपसे मेरी प्रार्थना है कि आप मुझे प्यारे लगें।केवल यही मेरी माँग है और कोई माँग नहीं। 
    हे नाथ! अगर मैं स्वर्ग चाहूँ तो मुझे नरक में डाल दें, सुख चाहूँ तो अनन्त दुःखों में डाल दें, पर आप मुझे प्यारे लगें। 
    हे नाथ! आपके बिना मैं रह न सकूँ, ऐसी व्याकुलता आप दे दें। 
    हे नाथ! आप मेरे हृदय में ऐसी आग लगा दें कि आपकी प्रीति के बिना मैं जी न सकूँ। 
    हे नाथ! आपके बिना मेरा कौन है? मैं किससे कहूँ और कौन सुने?
    हे मेरे शरण्य! मैं कहाँ जाऊँ? क्या करूँ? कोई मेरा नहीं। 
    मैं भूला हुआ कइयों को अपना मानता रहा। उनसे धोखा खाया, फिर भी धोखा खा सकता हूँ, आप बचायें!

    हे मेरे प्यारे! हे अनाथनाथ! हे अशरणशरण! हे पतितपावन! हे दीनबन्धो! हे अरक्षितरक्षक! हे आर्तत्राणपरायण! हे निराधार के आधार! हे अकारणकरुणावरुणालय! 
हे साधनहीन के एकमात्र साधन! हे असहाय के सहायक! क्या आप मेरे को जानते नहीं,मैं कैसा भड़्गप्रतिज्ञ(-भग्नप्रतिज्ञ),कैसा कृतघ्न,कैसा अपराधी, कैसा विपरीतगामी,कैसा अकरण-करणपरायण हूँ। अनन्त दुःखों के कारणस्वरूप भोगों को भोगकर-जानकार भी आसक्त रहनेवाला,अहित को हितकर माननेवाला, बार-बार ठोकरें खाकर भी नहीं चेतनेवाला,आपसे विमुख होकर बार-बार दुःख पानेवाला, चेतकर भी न चेतनेवाला, जानकर भी न जाननेवाला मेरे सिवाय आपको ऐसा कौन मिलेगा?

    प्रभो! त्राहि माम्! त्राहि माम्!! पाहि माम्! पाहि माम्!! हे प्रभो! हे 
विभो! मैं आँख पसारकर देखता हूँ तो मन-बुद्धि-प्राण-इन्द्रियाँ और शरीर भी मेरे नहीं हैं, फिर वस्तु-व्यक्ति आदि मेरे कैसे हो सकते हैं! ऐसा मैं जानता हूँ, कहता हूँ, पर वास्तविकता से नहीं मानता। मेरी यह दशा क्या आपसे किञ्चिन्मात्र भी कभी छिपी है? फिर हे प्यारे! क्या कहूँ! हे नाथ! हे नाथ!! हे मेरे नाथ!!! हे दीनबन्धो! हे प्रभो! आप अपनी तरफ से शरण में ले लें।
बस, केवल आप प्यारे लगें। 

(-परमश्रद्धेय स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराज)।

(श्रीपञ्चरत्नगीता, पृष्ठ १७९-१८१ से)।

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गुरुवार, 5 फ़रवरी 2015

फेसबुकके सदस्योंसे नम्र निवेदन

                      ।।श्रीहरि:।।

फेसबुकके सदस्योंसे नम्र निवेदन-

फेसबुकके सभी सदस्योंसे विनम्र प्रार्थना है कि इसमें गन्दी,अश्लील सामग्री न भेजें।न ऐसी सामग्री साझा करें और न टैग करें।अगर कोई ऐसा करता है तो समझा-बुझाकर रोकें कि इस धार्मक-समुदायमें ऐसी सामग्री भेजते हो,तुम्हें शर्म आनी चाहिये।इसमें कई आदरणीय,पूज्य साधू-संत और माताएँ,बहनें हैं,कई परोपकारी सज्जन हैं।उन सबके सामने आप ऐसी सामग्री लाते हो! तुम्हें विचार होना चाहिये आदि आदि।फिर भी अगर वो न मानें तो तिरस्कार न करके उसको अपनी मित्रसूचीसे हटादें,जिससे कि उनकी वो सामग्री इस समुदायमें न दीखे।इस समुदायकी मर्यादा बनाये रखना हम सबकी जिम्मेदारी है।यह गड़बड़ आज कलमें ही ज्यादा होने लगी है।कृपया,इस पर ध्यान दें,नहीं तो हो सकता है कि अच्छे-अच्छे लोग इसको छौड़कर अलग हो जायँ।अगर ऐसा हुआ तो यह समुदाय आदरणीय न रहकर, ऐक गन्दा समुदाय बनकर रह जायेगा और इससे समाजकी बड़ी हानि होगी,उससे बड़ा भारी नुक्सान होगा।इसलिये पहले ही चेत जाना अच्छा है।आप सबका भला हो-इसी आशाके साथ आप सबका हितैषी…।

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सोमवार, 2 फ़रवरी 2015

असली मन्त्र और सरल साधन(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

                 ।।श्रीहरि:।।

असली मन्त्र और सरल साधन-

(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)

(सबसे सरल साधन-)

आप भगवान् के हो जाओगे तो आपका सब काम भगवान् का हो जायेगा।आप भगवान् के,घर भगवान् का कुटुम्ब भगवान् का,वस्तुएँ भगवान् की -यह मानलो तो आपका सत्संग करना सफल हो गया ! सबकुछ भगवान् का मानलें -इससे सरल उपाय और क्या बताऊँ?

(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी पुस्तक 'सीमाके भीतर असीम प्रकाश'४१ से)।

(असली मन्त्र-)

'हम भगवान् के हैं,भगवान् हमारे हैं' - यह असली मन्त्र है।इसे मानलो तो थोड़े दिनोंमें आपका जीवन बदल जायेगा।

(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी पुस्तक 'नये रास्ते नयी दिशाएँ',२१ से)।

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रविवार, 1 फ़रवरी 2015

सूक्तियाँ-(७-८)श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई सूक्तियाँ।

                     ।।श्रीहरि:।।

सूक्तियाँ-(७-८)

श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई सूक्तियाँ।

सूक्ति-७.

गारबदेसर गाँवमें सब बाताँरो सुख |
ऊठ सँवारे देखियै मुरलीधरको मुख||

शब्दार्थ-

मुरलीधर(भगवान).

सूक्ति-८.

आयो दरशण आपरै परा उतारण पाप |
लारे लिगतर लै गयो मुरलीधर माँ बाप ! ||

शब्दार्थ-

लिगतर(जूते).

कथा-

एक चारण भाई इस मन्दिरमें दर्शनके लिये भीतर गये,पीछेसे कोई उनके पुराने जूते(लिगतर) लै गया.तब उन्होने मुरलीधर(सबके माता पिता) भगवानसे यह बात कहीं;इतनेमें किसीने नये जूते देते हुए कहा कि बारहठजी ! ये जूते पहनलो ; मानो भगवानने दुखी बालककी फरियाद सुनली |

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