मंगलवार, 27 सितंबर 2016

बिगड़े वाक्य और चित्र इस श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के सत्संग वाले समूहमें कृपया न भेजें।

                    ॥श्रीहरिः॥

बिगड़े वाक्य और चित्र  इस (श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के) सत्संग वाले समूहमें कृपया न भेजें।

ये जो चित्रों पर श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के नाम से किसी ने कलाकारी और रंग देकर वाक्य बना कर अनधिकार चेष्टा की है - यह ठीक नहीं है।

इनमें श्री स्वामीजी महाराज की भाषा के अनुसार वाक्य भी नहीं है, बिगड़ गये हैं और अधूरे हैं।

  जिन चित्रों पर ये काँट छाँट की गई है, वे चित्र भी असली नहीं रहे-बिगड़ गये हैं।

श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के जिन लेखों और बातों में किसी पुस्तक या प्रवचन आदि का प्रमाण लिखा हुआ नहीं हो, तो वो हमें स्वीकार नहीं है। 

विश्वास करने लायक बात वही है जो किसी पुस्तक या प्रवचन से लेकर लिखी गयी हो और वो ही हमें स्वीकार है ; अन्य नहीं।

इसलिये  इन वाक्यों वाले चित्र कृपया इस श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के सत्संग वाले समूहमें न भेजें। 

{कोटेशन, सत्संग वाक्य बनाने वाले जो हैं,उन्होंने क्या पता कि किसी पुस्तक से लेकर लिखा है या अपने अनुमान से लिखा है?
आजकल ऐसी प्रवृत्ति देखने में आती है कि वाणी तो हो किसी और की तथा उसपर नाम लिख देते हैं किसी और का।
ऐसे ही कोई अपने मनसे गढ़कर लिख देते हैं और उसपर नाम किसी ग्रंथ या संत का लिख देते हैं। ऐसे कोई भी कुछ लिखदे,क्या पता लगे?
जिस वाणी का पता ठिकाना नहीं, उसका और ऐसी रिवाज का प्रचार करना उचित नहीं लगता।

वाट्स एप्प पर भेजे गये ओडियो- प्रवचनों की ऊपर लिखी तारीख और प्रवचन का विषय मिट जाता है। इसलिये ओडियो भेजने पर तारीख लिखना लाभदायक रहता है। उसको देखकर लोग अपने पास संग्रहीत प्रवचनों में से सुन लेते हैं या उस प्रवचन का विषय देखकर उनको यह तै करने में सहायता मिलती है कि यह हमारे सुना हुआ है या नहीं? अथवा यह सुनें या नहीं।
कई लोग वाट्स एप्प पर भेजे गये प्रवचनों को डाउनलोड नहीं करते हैं।
उनको तारीख और विषय देखने पर प्रवचन को डाउनलोड करने और सुनने की प्रेरणा मिलती है}। 

अधिक जानने के लिए कृपया इस पते (ठिकाने) पर देखें -

महापुरुषोंके नामका,कामका और वाणीका प्रचार करें तथा उनका दुरुपयोग न करें , रहस्य समझनेके लिये यह लेख पढें -

http://dungrdasram.blogspot.in/2014/01/blog-post_17.html?m=1

संत-वाणी यथावत रहने दें,संशोधन न करें|

('श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'की वाणी और लेख यथावत रहने दें,संशोधन न करें)।

http://dungrdasram.blogspot.com/2014/12/blog-post_30.html?m=1

बुधवार, 21 सितंबर 2016

भगवान के दर्शन की बात।(-श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज)।

                       ॥श्रीहरिः॥

भगवान के दर्शन की बात।

(-श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज)।

एक बालक ने श्रध्देश्रद्धेय  स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज से पूछा कि आपको भगवान के दर्शन हुए हैं क्या?

जवाब देते हुए तर्क की मुद्रा में श्री स्वामीजी महाराज बोले कि तुम अपना खजाना बताते हो क्या?

बालक समझ भी नहीं पाया और बोल भी नहीं पाया कि अब क्या कहना चाहिये। फिर किसीने बालक को वहीं रोक दिया।

श्री स्वामीजी महाराज का कहना है कि 'जब लोग अपने लौकिक धन को भी (हरेक को) बताना नहीं चाहते, बताने योग्य नहीं समझते, तो फिर अलौकिक धन, पारमार्थिक खजाना (भगवान् के दर्शन आदि ) बताने योग्य है! अर्थात् हरेक को बताने योग्य नहीं है।' 

लोगों को अगर कह दिया जाय कि हाँ मेरे को भगवान के दर्शन हुए हैं तो लोगों के जँचेगी नहीं, उलटे तर्क पैदा होगा। दोषदृष्टि करेंगे। (इससे उनका नुक्सान होगा)।

(लोगों को बताने से विघ्न बाधाएँ भी आती है-)।

सेठजी श्री जयदयालजी गोयन्दका ने कहा है कि भक्त प्रह्लाद की भक्ति में इतनी बाधाएँ इसलिये आयीं कि उन्होंने भक्ति को (लोगों के सामने) प्रकट कर दिया था। (अगर प्रकट न करते तो इतनी बाधाएँ नहीं आतीं)।

श्री सेठजी ने भी गुप्त रीति से ही साधन किया है और सिद्धि पायी है।

चूरू की हवेली के ऊपर कमरे में उनको चतुर्भुज भगवान विष्णु के दर्शन हुए थे।

श्री स्वामीजी महाराज ने वहाँ पधार कर वो जगह बताई थी कि यहाँ श्री सेठजी को भगवान के दर्शन हुए थे।

श्री सेठजी मुँह पर चद्दर ओढ़े सो रहे थे उस समय भगवान् ने दर्शन दिये। कह, ऊपर चद्दर ओढ़ी होने पर भी भगवान दिखलायी कैसे पड़ रहे हैं?

उन्होंने चद्दर हटा कर देखा तो भगवान वैसे ही दिखाई दिये , जैसे चद्दर के भीतर से (साफ) दीख रहे थे। बीच में चद्दर की आड़ होने पर भी भगवान के दीखने में कोई फर्क नहीं पड़ा।

श्री सेठजी कहते हैं कि ऐसे चाहे बीच में पहाड़ भी आ जाय तो भी भगवान के दीखने में कोई फर्क नहीं पड़ेगा।

यह बात प्रसिद्ध है कि श्री सेठजी ने कई लोगों की मौजूदगी में भाईजी श्री हनुमान प्रसादजी पोद्दार को भगवान् के दर्शन करवाये थे।

भाईजी से जब कहा गया कि भगवान के चरण पकड़ो। तब उन्होंने चरण पकड़ने के लिये हाथ बढ़ाये , तो वो हाथ श्री सेठजी के चरणों में गये।

(कई लोगों के मन में जिज्ञासा रहती है कि ऐसे ही श्री स्वामीजी महाराज को भी भगवान् के दर्शन हुए थे क्या?

उनके लिये ये बातें काम की है) ।

आज ही एक पुराने सत्संगी सज्जन बोले कि श्री स्वामीजी महाराज ने मेरे सामने बताया है कि श्री सेठजी ने स्वामीजी महाराज से कहा कि आप अपनी भगवत्प्राप्ति (वाली सिद्धि) लोगों में प्रकट न करें तो अच्छा रहेगा ; क्योंकि (अयोग्य) लोग पीछे पड़ जाते हैं कि मेरे को भी करवादो, हमारे को भी भगवान के दर्शन करवादो आदि आदि।

(मेरे को जो भगवान के दर्शन हुए थे उसको) मैंने प्रकट कर दिया था जिसके कारण मेरे को भी मुश्किल का सामना करना पड़ा। अस्तु।

अपने को साधक मानने में हानि नहीं  है , हानि तो सिद्ध मानने में है। अपने को सिद्ध मानने में बहम भी हो सकता है पर साधक मानने में क्या बहम होगा।

जो अपने को साधक मानता है वह उन्नति करता ही चला जाता है (सिद्ध मानकर रुकता नहीं कि अब मेरे को क्या करना है,जो करना था सो तो कर लिया)। 

श्री सेठजी ने कहा है (इतने महान होकर भी) स्वामीजी अपने को साधक ही मानते हैं। (यह इनकी विशेषता है)।

इस प्रकार पारमार्थिक लाभ गोपनीय रखने में ही फायदा है। ऐसे अधिकारी मिलने दुर्लभ हैं जिनको ऐसी रहस्य की बातें बतायी जायँ।

अधिकारी को तो महापुरुष अत्यन्त गोपनीय रहस्य भी बता देते हैं-

श्रोता सुमति सुसील सुचि कथा रसिक हरि दास।
पाइ उमा अति गोप्यमपि सज्जन करहिं प्रकास।।

रामचरितमा.७। ६९(ख)।।

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बुधवार, 24 अगस्त 2016

दुख सहने से मुक्ति (-श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज)।

                       ॥श्रीहरिः॥

दुख सहने से मुक्ति

(-श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज)।

दुख आवे, तो दुख की खोज करनी (चाहिये) कि दुख क्यों आया-हमरेको दुख क्यों हुआ? 'सुखस्य दुःखस्य न कोऽपि दाता'(अध्यात्म रामायण, लक्ष्मण गीता २।६।६)। सुख दुख देने वाला है नहीं (दूसरा कोई- ) दूजा तो  है नहीं कोई। - नहिं कोई (-काहु न कोउ) सुख दुख कर दाता।
निज कृत करम भोग सबु भ्राता॥
(रामचरितमा.२।९२)।
सुख देने वाला (और दुख देने वाला कोई नहीं है। तो)  दुख क्यों आया? तो कहीं र कहीं अपनी भूल होगी।दुसरे को मत मानो कि इसने दुःख दे दिया...

(मेरे को दुख क्यों हुआ?- इस प्रकार खोज करेंगे तो कहीं न कहीं अपनी भूल निकलेगी,अपनी भूल का पता लगेगा कि दुख देने वाला दूसरा कोई नहीं है। मैं जो दुखी हुआ-यह मेरी भूल थी)।
...
(कोई गाली दे, तो लो मत-बदले में गाली दो मत,सहन करलो-)

निकलत गाली एक है उथलत गाल (गाली) अनेक। और
जे गाली उथलै नहीं  (तो) रहै एक की एक॥ एक ही रहेगी।

तो कितनी बढ़िया बात है। 'तांस्तितिक्षस्व' (गीता २।१४,१५; में ) भगवान कहते हैं (कि) तुम सहलो। 'आगमापायिनोऽनित्याः' ये 'मात्रास्पर्श' है आने जाने वाले अर (और) अनित्य है। इनको सहलो।

तो क्या होगा सहने से? (कह,) 'सोऽमृतत्वाय कल्पते॥' महाराज! मुक्ति हो जायेगी। अर (और) नहीं सहोगे तो दुख पाओगे अर मुक्ति भी नहीं होगी। अर सहलो तो उसमें ई (भी) खटपट नहीं होगी,कल्याण हो जायेगा।

इस वास्ते पहले अपणे (अपने) घर से ही ये शुरु करो - प्रेम करना,काम-धन्धा करना, सेवा करना - घर से शुरु करदो।

घर में माता पिता है, भाई भौजाई है, स्त्री पुत्र है - सब का पालन पोषण करो। अच्छी तरह से आदर करो। ...

श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के
"19970731_2000_Aapsi Khatpat Kaise Mite" नाम वाले प्रवचन के अंश से यथावत् )।

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मंगलवार, 23 अगस्त 2016

पारमार्थिक लाभ और हानि की क्या परीक्षा है? (-श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज)।

                           ॥श्रीहरिः॥

पारमार्थिक लाभ और हानि की क्या परीक्षा है?

(-श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज)।

पारमार्थिक लाभ और हानि की क्या परीक्षा है? 

कह,
हमारा क्रोध कम हुआक (हुआ क्या) , काम कम हुआक,लोभ कम हुआक,  अशान्ति कम हुईक, शान्ति ज्यादा रहीक, प्रसन्नता ज्यादा रहीक, भगवानकी स्मृति ज्यादा आईक, भगवानके नाम का जप ज्यादे (ज्यादा) हुआक और भगवान में मन ज्यादे लगा, (तो) लाभ हुआ और

झूठ, कपट, बेईमानी आदिक - ये आये (तो) हानि हुई। पारमार्थिक हानि हुई, व्यवहार की भी हानि हुई ...

(आप सच्चे हृदय से भगवान में लगो।रस्ता जरूर मिलेगा। अपनी भूलों का ज्ञान होगा-)
...
मैंने पुस्तक में पढ़ा है- ये श्रवण किया, मनन किया, निदिध्यासन किया, ध्यान किया, समाधि लगाई।

वे संत कहते हैं कि अरेऽ ये सब(श्रवण मनन निदिध्यान आदि) फालतू है बिचारे । - अरेऽ इसमें फँस गये हम तो ।

वे लिखते हैं खुद अपना अनुभव । मैंने पढ़ा (पढ़ी)  है पुस्तक । (वो लिखते हैं- ) यह तो बहुत मामूली बात थी हम समझे ही नहीं ।

अब अकल में आता हैऽऽरे! इतना समय बर्बाद किया है हमने तो । बहुत समय बर्बाद कर दिया। ...

श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के
19930730_0800_Laabh Kisme Hai Dhan Sangrah Se Haani... नामक प्रवचन के अंश।

(इसमें और भी कई उपयोगी बातें बताई गई है। कृपया पूरा प्रवचन सुनें)।

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बुधवार, 17 अगस्त 2016

धन और भोगोंकी तरफ मन बुद्धिका खिंचाव क्यों होता है?(-श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज)।

                       ।।श्रीहरिः।।

धन और भोगोंकी तरफ मन बुद्धिका खिंचाव क्यों होता है?

(-श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदासजी महाराज)।

...तो हमारा चित्त  द्रव्य(धन)की तरफ खिंचता है।  तो हमने भीतर द्रव्यमें (द्रव्यको) महत्त्वबुद्धि दी है ,हमने ही (दी है)  वो, इस वास्ते वो (महत्त्व) दी हुई बुद्धि उधर  खिंचती है। हम अगर उसको महत्त्व न दें तो बुद्धि नहीं खिंचेगी ।
. . .
परन्तु अगर अपना कोई उद्धार चाहता है तो भीतरसे ये पहले महत्त्वबुद्धि दी है इसको न रखे तो फिर हमारा मन नहीं खिंचेगा । ये इती(इतनी) बात, पक्की बात है।
. . .
भीतरसे वैराग्य हो, तो उसमें बुद्धि नहीं खिंचेगी । कह, कैसे नहीं खिंचेगी? पदार्थ है जो (तो) पदार्थमें तो मन खिंचता ही है ! भोगोंकी तरफ, रुपयोंकी तरफ मन खिंचता है।

तो मैं आपलोगोंसे एक प्रश्न कर सकता हूँ कि आपका हमारा जो वास्तवमें सत्संग है , वैष्णव है, भजन-ध्यान करते हैं । क्या उनका मन कभी मांसकी तरफ खिंचता है? अण्डोंकी तरफ खिंचता है? मछली की तरफ मन जाता है क्या? -मछली बिक रही है।

कह,ये कैसी बात है! मुर्दा छू जाय तो स्नान करें हम। मुर्दा है मुर्दा।प्राण चले गये ,ऐसे जो पशु है। वे तो मुर्दा है। उनको तो छूनेसे भी स्नान करना पड़ता है। तो फिर आपका मन जाता है? कह, कैसे जावे उसमें?

अच्छा ! आपका मन नहीं जाता , ऐसे किसीका भी मन न जाय तो क्या मांसकी दुकान चलेगी ?...

(श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के  "19930726_0800_Sansar Ka Khichaav Kaise Mite "

नाम वाले प्रवचनके अंश)।

(इसलिये मन उसीकी तरफ खिंचता है जिसको हमने महत्त्व दिया है, जिसको हमने अच्छा समझा है। अगर महत्त्व न दें तो मन खिंचेगा नहीं)।

अधिक जाननेके लिये कृपया यह प्रवचन पूरा सुनें।

गीता साधक-संजीवनी (लेखक -श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज) ६ ।३६ की व्याख्या भी पढ़ें)।

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मंगलवार, 16 अगस्त 2016

संतोंकी वाणीसे कल्याण।(-श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज)।

।।श्रीहरिः।। 

संतोंकी वाणीसे कल्याण ।

(-श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज)।

जैसे हनुमानजी महाराजकी कोई प्रशंसा करे (कि). हनुमानजी देवता है। तो देवता मानना हनुमानजीकी निन्दा है (प्रशंसा नहीं,
क्योंकि) हनुमानजी भगवानके भक्त हैं। तो भक्तोंका दर्जा देवताओंसे भी ऊँचा होता है .ऐसे संतोंका दर्जा कवियोंसे ऊँचा होता है ।

कविकी कवितासे कल्याण नहीं होता। संतोंके बचनोंसे और उनकी बाणीसे कल्याण होता है ,उध्दार होता है । लोक परलोक- सब सुधरते हैं।

ऐसे गोस्वामीजी महाराज की कविता बहुत विलक्षण है। तो इनमें संतकी बाणी है और कविताकी ट्टाष्टिसे भी बडी ऊँची कविता है ।

कविता ही नहीं है। जैसे, श्रुति और स्मति कहते हैं । बेदों(वेदों) की बाणी (वाणी है) वो श्रुति कहलाती है (और)  ऋषियोँकी वाणी है वो स्मृति (कहलाती) है।...

. . .ऐसे श्रुतिकी तरह कवि लोग कहते हैं और लोगोंमें स्मृतिकी तरह उनकी बाणीका आदर है। ऐसे श्री गोस्वामीजी महाराज हुए हैं।
(उनकी वाणीसे कल्याण होता है)  ...

(-श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के  19930725_0800_Tulsidasji Ki Vaani Ki Vilakshanta R...
नामवाले प्रवचनका अंश)।

(आनन्दकानने ह्यस्मिन् ...  काशीको  आनन्दवन कहते है. . .)।

अधिक जाननेके लिये कृपया पूरा प्रवचन सुनें।

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शनिवार, 13 अगस्त 2016

सुहागिन स्त्री को एकादशी व्रत करना चाहिये या नहीं ? कह, करना चाहिये।

                         ॥श्रीहरिः॥

सुहागिन स्त्री को एकादशी व्रत करना चाहिये या नहीं ?  कह, करना चाहिये।   

एक बहन श्रद्धेय  स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके

दिनांक 13-12-1995/,0830 बजेका सत्संग पढकर पूछतीं है कि क्या स्त्रीको व्रत नहीं करना चाहिए?

उसके उत्तरमें निवेदन इस प्रकार है -

शास्त्रका कहना है कि

पत्यौ जीवति या तु स्त्री उपवासं व्रतं चरेत् ।
आयुष्यं हरते भर्तुर्नरकं चैव गच्छति ।।

(अर्थ-)

जो स्त्री पति के जीवित रहते उपवास- व्रत का आचरण करती है वह पति की आयु क्षीण करती है और अन्त में नरक में पड़ती है।

(गीताप्रेस के संस्थापक - श्रद्धेय सेठजी श्री जयदयालजी गोयन्दका द्वारा लिखित 
तत्त्व चिन्तामणि, भाग 3, 
नारीधर्म, पृष्ठ 291 से)।

पत्यौ जिवति या योषिदुपवासव्रतं चरेत् ।
आयुः सा हरते भर्तुर्नरकं चैव गच्छति ॥

विष्णुस्मृति 25 ।

(इस भाव के वचन पाराशर स्मृति 4/17; अत्रि संहिता 136; शिवपुराण,रुद्र.पार्वती.54/29,44; और स्कन्दपुराण ब्रह्म. धर्मा. 7/37; काशी उ.  82/139; में भी आये हैं। "क्या करें क्या न करें " नामक पुस्तक से)। 

इस शास्त्र वचनकी बात सुनकर जब कोई बहन पूछती थीं तो

श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज बताते थे कि सुहागिन स्त्री 
सुहागके व्रत (करवा चौथ आदि) कर सकती हैं (इसके लिये मनाही नहीं है)।

कोई पूछतीं कि एकादशी व्रत भी नहीं करना चाहिए क्या?

तब उत्तर देते थे कि

एकादशी (आदि) व्रत करना हो तो पतिसे आज्ञा लेकर कर सकती है।

कुछ और उपयोगी बातें ये हैं- 

प्याज और लहसुन का तो कई जने सेवन नहीं करते,पर कई लोग गाजरका भक्षण कर लेते हैं।

लेकिन यह भी ठीक नहीं है; क्योंकि 'सेठजी श्री जयदयालजी गोयन्दका' (बिना एकादशी के भी) गाजर खाने का निषेध करते थे।

श्री सेठजी एकादशीके दिन साबूदाना खानेका भी निषेध करते थे कि इसमें चावलका अंश मिलाया हुआ होता है।

(आजकल साबूदाने भी नकली आने लग गये )।

एकादशी के दिन चावल खाना वर्जित है ; क्योंकि ब्रह्महत्या आदि बड़े-बड़े पाप एकादशी के दिन चावलों में निवास करते हैं, चावलों में रहते हैं । ऐसा ब्रह्मवैवर्त पुराण में लिखा है।

जो एकादशी के दिन व्रत नहीं रखते,अन्न खाते हैं, उनके लिये भी एकादशी के दिन चावल खाना वर्जित है।

स्मृति आदि ग्रंथों को मुख्य मानने वाले स्मार्त एकादशी व्रत करते हैं और भगवानको,(तथा वैष्णवों, संन्तो-भक्तों को) मुख्य मानने वाले वैष्णव एकादशी व्रत करते हैं ।

एकादशी चाहे वैष्णव हो अथवा स्मार्त हो; चावल खाने का निषेध दोनों में है। वैष्णव एकादशी व्रत करनेवालों को भी चाहिये कि वैष्णव एकादशी के दिन तो चावल खाना छोङे ही, स्मार्त एकादशी के दिन भी चावल न खायें। 

परम श्रद्धेय सेठजी श्री जयदयालजी गोयन्दका और श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज वैष्णव एकादशी व्रत,वैष्णव जन्माष्टमी व्रत आदि ही करते थे और मानते थे ।

एकादशी आदि व्रतोंके माननेमें दो धर्म है-

एक वैदिक धर्म और एक वैष्णव धर्म।

(एक एकादशी स्मार्तोंकी होती है और एक एकादशी वैष्णवोंकी होती है।

स्मार्त वे होते हैं) जो वेद और स्मृतियोंको खास मानते हैं,वे भगवानको खास नहीं मानते।

वेदोंमें,स्मृतियोंमें भगवानका नाम आता है इसलिये वे भगवानको मानते हैं (परन्तु खास वेदोंको मानते हैं) और

वैष्णव वे होते हैं जो भगवानको खास मानते हैं, वे वेदोंको,पुराणोंको इतना खास नहीं मानते जितना भगवानको खास मानते हैं।

( वैष्णव और स्मार्तका रहस्य परम श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज ने 19990809/1630 बजे वाले प्रवचन में भी बताया है ।

कृपया  वो प्रवचन इस पते पर जाकर  सुनें -)

(पता:- 
https://docs.google.com/file/d/0B3xCgsI4fuUPTENQejk2dFE2RWs/edit?usp=docslist_api )।

 http://goo.gl/eeqKqL 

वेदमत,पुराणमत आदिके समान एक संत मत भी है,(जिसको वेदोंसे भी बढकर माना गया है)।

...
चहुँ जुग तीनि काल तिहुँ लोका । 
भए नाम जपि जीव बिसोका ॥
बेद पुरान संत मत एहू । 
सकल सुकृत फल राम सनेहू ॥

(रामचरितमा.1/27)।
...

एकादशीको हल्दीका प्रयोग नहीं करना चाहिये; क्योंकि हल्दीकी गिनती अन्नमें आयी है (हल्दीको अन्न माना गया है)।

साँभरके नमक का प्रयोग भी एकादशी आदि व्रतोमें नहीं करना चाहिये ; क्योंकि साँभर झील (जिसमें नमक बनता है,उस) में कोई जानवर गिर जाता है,मर जाता है तो वो भी नमकके साथ नमक बन जाता है (इसलिये यह नमक अशुद्ध माना गया है)।

सैंधा नमक काममें लेना ठीक रहता है। सैंधा नमक पत्थरसे बनता है,इसलिये अशुद्ध​ नहीं माना गया।

एकादशीके अलावा भी फूलगोभी नहीं खानी चाहिये। फूलगोभी में जन्तु बहुत होते हैं और इसको निषिद्ध भी माना गया है।

[बैंगन भी नहीं खाने चाहिये। शास्त्र का कहना है कि जो बैंगन खाता है,भगवान उससे दूर रहते हैं]।

उड़द और मसूरकी दाळ भी वर्जित है। श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज' बताते हैं कि नमक जल है (नमक को जल माना गया है और जल के छूत लगती है)। जिस वस्तु में नमक और जल का प्रयोग हुआ हो,ऐसी कोई भी वस्तु बाजार से न लें; क्योंकि इनके छूत लगती है।

(अस्पृश्यके स्पर्श हो गया तो स्पर्श दोष लगता है।

इसके अलावा पता नहीं कि वो खाद्य पदार्थ किस घरका बना हुआ है और किसने, कैसे बनाया है)।

हींग भी काममें न लें; क्योंकि वो चमड़ेमें  डपट करके, बन्द करके रखी जाती है,नहीं तो उसकी सुगन्धी चली जाय अथवा  कम हो जाय ।

हींगकी जगह हींगड़ा काममें लाया जा सकता है।

सोने चाँदी के वर्क लगी हुई मिठाई नहीं खानी चाहिये; क्योकि ये (वर्क गाय या) बैलकी आँतमें रखकर बनाये जाते हैं। बैलकी आँतमें छोटासा सोने या चाँदीका टुकड़ा रखकर, उसको हथौड़ेसे पीट-पीटकर फैलाया जाता है और इस प्रकार ये सोने तथा चाँदीके वर्क बनते हैं।

इसलिये न तो वर्क लगी हुई मिठाई काम में लावें,न खावें और न मिठाईके वर्क लगावें।

इस के सिवाय अपना कल्याण चाहने वालों को (बिना एकादशी के भी) मांस,मदिरा तथा और भी अभक्ष्य खान-पान आदि नहीं करने चाहिये, इनसे बचना चाहिये और लोगों को भी ये बातें बताकर बचाना चाहिये ।

लाखकी चूड़ियाँ काममें न लावें; क्योंकि लाखमें लाखों (अनगिनत) जीवोंकी हत्या होती है।

मदिरामें भी असंख्य जीवोंकी हत्या होती है। मदिरा बनाते समय पहले उसमें सड़न पैदा की जाती है,जो असंख्य जीवोंका समुदाय होता है। फिर उसको भभके से, गर्म करके उसका अर्क (रस) निकाला जाता है। उसको मदिरा कहते हैं। इसकी गिनती चार महापापों (ब्रह्महत्या, सुरापान,सुवर्ण या रत्नोंकी चोरी और गुरुपत्निगमन) में आयी है। 

तीन वर्ष तक कोई महापापीके साथमें रह जाय,तो (पाप न करने पर भी) उसको भी वही दण्ड होता है जो महापापीको होता है।

जिस घर में एक स्त्री के भी अगर गर्भपात करवाया हुआ हो तो उस घर का अन्न खाने योग्य नहीं होता (और उस घर का जल भी पीने योग्य नहीं होता)। 

श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज उस घर का अन्न नहीं खाते थे (उस घर की भिक्षा का अन्न लेना छोड़ दिया था)। गर्भपात ब्रह्महत्या से भी दूना पाप है। 

अधिक जानने के लिये श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज की पुस्तक - "पहापाप से बचो" पढ़ें।

गर्भपात का प्रायश्चित्त- 

अगर कोई गर्भपात का पाप मिटाना चाहें तो श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज ने उसका यह उपाय (प्रायश्चित्त) बताया है -

बारह महीनों तक रोजाना (प्रतिदिन) भगवान् के सवा लाख नाम का जप करें। 

(ये जप बिना नागा किये रोजाना करने चाहिये। षोडस मन्त्र या चतुर्दश मन्त्र से जप जल्दी और सुगमतापूर्वक हो सकते हैं)। 

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